गुरुवार, 7 अगस्त 2014

इन दिनों कांग्रेस -भाजपा जैसी और भाजपा -कांग्रेस जैसी हो रही है !



   वैसे तो   भाजपा की  दोगली आर्थिक नीति  को परिभाषित  करना कोई मुश्किल काम नहीं है।  यह सुविदित है कि  यूपीए-१ और यूपीए-२ के दरम्यान जब भाजपा विपक्ष में थी  तो उसने तत्कालीन मनमोहन सरकार  को तथा संसद को परेशान  करते हुए  न तो कोई सार्थक भूमिका अदा की और न ही कोई   प्रत्यक्ष मदद की थी   ।  किन्तु वह  अपने वित्तपोषक आकाओं के  हित  में  तथा अमेरिकी दवाव में  निरंतर मजदूर -किसान के विरोध में लिए जाते रहे  हर फैसले में  परोक्षतः भागीदार रही है। यूपीए सरकारों का  को कोई भी काम -संसद और उसके  बाहर आसान नहीं रहा।  यूपीए -२  द्वारा जब २००८ में बीमा विधेयक लाया गया तब , जब वन-टू- थ्री - एटमी  करार लाया गया तब और  विगत लोक सभा के  सत्र समापन के दरम्यान   लोकपाल  बिल  लाया गया तब -इन  सभी मौकों पर भाजपा के सांसदों ने संसद में जो उत्पात मचाया -संसदीय इतिहास में तो  उसकी कोई  सानी  नहीं है।  उसके सापेक्ष आज  के विपक्ष  - कांग्रस  -लेफ्ट और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का  संयुक्त प्रतिरोध १९ भी नहीं है। शहीद भगतसिंह और उनके महान क्रांतीकारी  साथियों  ने जिस ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट तथा अन्य श्रम  विरोधी कानूनों  के खिलाफ  तत्कालीन अंग्रेज सरकार के खिलाफ और  गुलाम भारत की जनता को जगाने के लिए असेम्ब्ली में बम फेंके थे। वर्तमान मोदी सरकार उन्ही कानूनो को धड़ाधड़ पारित कर रही है। केंद्र सरकार के इन नकारात्मक मंसूबों के खिलाफ वामपंथ तथा अन्य गैर कांग्रेस -गैर भाजपाई  विपक्ष का  संघर्ष  तो शिद्द्त से जारी है। किन्तु  कांग्रेस और उसका शीर्ष नेतत्व  किसी भी मोर्चे पर गंभीर नहीं है
                              लगता है कि  कांग्रेस ने भाजपा की  ही भूमिका दुहराना शुरू कर दिया है। अतीत में जब  भाजपा  विपक्ष में रही  और उसने जिस तरह लगातार संसद की कार्यवाहियों को बाधित किया  है  वही अब कांग्रेस  दुहराने का रोल कर रही है  ,स्पीकर को अपमानित करना   ,टेबिलें उखाड़ना   ,माइक तोड़ना  , मीडिया के समक्ष नोटों की गड्डियां उछालना  और संसद में पेश किये गए बिल इत्यादि के  कागज फाड़कर मंत्रियों के मुँह  पर फेंकना  , ये  कीर्तिमान तो अभी तक   खंडित नहीं हुए हैं। लेकिन यदि कांग्रेस  सांसदों ने या राहुल गांधी ने   मजबूरन भाजपा का ही अनुशरण  किया और थोड़ा सा  आक्रामक रुख अपनाया है  तो   जेटली जी को मिर्ची नहीं लगनी चाहिए।सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को विपक्ष की आवाज नहीं  दवाना  चाहिए। स्पीकर की मनमानी का आरोप लगने की नौबत नहीं आनी  चाहिए।
              हालाँकि    देश के बहुमत जन की कांग्रेस और भाजपा में कोई आष्था नहीं है , लेकिन दाँव -पेंच और मतों के ध्रुवीकरण से ये दो बड़े  दल  ही  देश  की सत्ता पर बारी-बारी से काबिज हो रहे हैं। यदि १६ वीं लोक सभा के सकल मतों  के प्रतिशत पर दृष्टिपात किया जाए  तो स्पष्ट हो जाएगा कि भाजपा के ३० %और कांग्रेस या यूपीए के १८ % मिलकर भी  बहुमत  में नहीं हैं। शेष विपक्ष के  ५२ %  मत प्रतिशत बहुमत में होते हुए भीउसकी भूमिका  सरकार और संसद में नाकाफी   है। कार्पोरेट नियंत्रित मीडिया , देश का पूँजीपति  और सामंत वर्ग ही नहीं बल्कि विदेशी  आवारा पूँजी  का सभ्रांत लोक भी यह  मानकर भाजपा के साथ हो लिया था कि  कि   वह उनके लिए  कांग्रेस से बेहतर 'हितसंवर्धक' है। संघ परिवार और उसकी आनुषंगिक राजनैतिक शाखा के रूप में  भाजपा   का  सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और उद्दाम पूँजीवाद अब कांग्रेस के 'सर्व-धर्म-समभाव'और ढुलमुल पूंजीवाद पर भारी  पड़ रहा  है।  वैचारिक धरातल पर सोनिया गांधी या राहुल गांधी भले ही कंगाल हों किन्तु  स्वाधीनता संग्राम के मूल्यों  का असर कांग्रेस की जड़ों में अभी भी बाकी है।  कांग्रेस  को यदि फिर से उठ खड़ा होना है तो उसके नेतत्व को  चाहिए कि  अपने किये धरे के  लिए  और अपनी अधोगामी-विनाशकारी नीतियों के लिए देश की जनता  से  माफ़ी मांगे। कांग्रेस को और उसके नेतत्व को समझना होगा कि  मंहगाई  , कुशासन  ,  साम्प्रदायिक -उन्माद ,भृष्टाचार और फासिज्म से लड़ने के लिए  देश और दुनिया में केवल वामपंथ ही  सही  मायनों में ईमानदारी  से  संघर्ष करता रहा है । इस लड़ाई में कांग्रेस को  वामपंथ का साथ  देना चाहिए।
                  राहुल गांधी को संसद में वो व्यवहार नहीं करना चाहिए जो उन्होंने विगत ६ अगस्त को संसद में किया। उनकी  नारेवाजी  में वनावटीपन  झलकता है  "यहाँ  एक व्यक्ति की ही सुनी जाती है ""स्पीकर सुमित्रा महाजन पक्षपाती हैं " "वी वान्ट जस्टिस " ये सब नारे सही भी हों तो  भी इनका  उपयोग कर संसद  की  कार्यवाही  बाधित करना उचित नहीं है। अन्यथा आवाम की नजर में  भाजपा और कांग्रेस में क्या फर्क रह जाएगा ?वैसे भी कांग्रेस और भाजपा को एक  ही पायदान पर खड़ा किया जाता रहा है।  किन्तु भाजपा के सर्वसत्तावाद और  आक्रामक पूँजीवाद के सापेक्ष  कांग्रेस का उदारवादी -जनवादी और लोकतांत्रिक चेहरा  ही ज्यादा स्वीकार्य किया जाता  रहा  है।  कांग्रेस में  राहुल गांधी हों या और कोई नेता हों   उन्हें कांग्रेस के वेसिक सिद्धांतों  की और विनाशकारी  मनमोहनी अर्थशाश्त्र  की खामियों की ठीक से  जानकारी होनी चाहिए। बहुत सोच समझकर  संयम  के साथ संसद में अपनी  भूमिका अदा करने से जनता  जिम्मेदार वर्तमान विपक्ष  को  आइन्दा पुनः सत्ता सौंप सकती है। क्योंकि  देशी-विदेशी पूँजीपतियों  के अलावा -मोदी सरकार से कोई भी खुश नहीं है। देश में चारों ओर  हा-हा-कार मचा है।  धर्मान्धता ,साम्प्रदायिक दंगे ,कुशासन ,हत्याएँ ,महँगाई , बेकारी ,निजीकरण ,ठेकाकरण ,और माफिया राज का दौर जारी है। कांग्रेस को या उसके नेतत्व  को  हताशा या निराशा में ज्यादा उत्तेजित होने की जरुरत नहीं है। उन्हें अपनी पार्टी से वंशवाद और चमचावाद को   खत्म करने की ओर कदम बढ़ाने चाहिए। कांग्रेस को  थोड़ा सा सब्र और थोड़ा सा नीतिगत  आत्मालोचन जरुरी है। बाकी का काम तो  भाजपा और एनडीए सरकार से नाराज जनता खुद  ही आसान  कर देगी। दरसल  इन दिनों  कांग्रेस -भाजपा  जैसी और भाजपा -कांग्रेस  जैसी हो रही  है ! यह देश के हित  में नहीं है।

                        श्रीराम तिवारी 

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