भारत और पाकिस्तान के बीच प्रस्तावित सचिव स्तर की द्विपक्षीय वार्ता अर्थात 'फ्लेग मीटिंग'से पूर्व भारत स्थित पाकिस्तान उच्चायोग द्वारा कश्मीरी-अलगाववादियों और उग्रवादियों से चर्चा करने की हिमाकत से नाराज भारत सरकार ने पाकिस्तान से आइन्दा कोई बातचीत नहीं करने का ऐलान किया है। भारत में कुछ लोग इस नीति का समर्थन कर रहे हैं। उधर भारत - सरकार के इस कदम को पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार ने भी निराशजनक बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। चूँकि मियाँ नवाज शरीफ इस समय इमरान खान और जनाब कादरी साहिब के आंदोलनों के बीच सेंडबीच' जैसे बन चुके हैं। इसलिए उनकी हालत तो सांप छछूंदर की हो गई है। पाकिस्तान स्थित भारत के सनातन दुश्मनों - आतंकियों और कश्मीरी अलगाववादियों को ,आईएसआई और आदमखोर सेना को -नवाज शरीफ और उनकीब लोकतांत्रिक सरकार का भारत से बातचीत करना बिलकुल पसंद नहीं है।शरीफ का भारत से दोस्ती की चर्चा करना और खास तौर से भारत के वर्तमान बड़बोले शासकों से कश्मीर पर बात करना पाकिस्तान की फौज को कतई पसंद नहीं है। यही वजह है कि खुद पाकिस्तान का मौजूदा निजाम अर्थात 'हुकूमत-ए -पाकिस्तान ' ही नहीं चाहता कि कश्मीर पर भारत के साथ कोई सार्थक बातचीत हो। इस बातचीत में तीसरे पक्ष के रूप में अलगाववादियों को लेना उसकी साम्प्रदायिक मजबूरी हो सकती है।एक रणनीति के तहत ही पाकिस्तान ने वर्तमान दौर की बातचीत को उसी पुराने ढर्रे पर आरम्भ किया कि वार्ता ही न हो और यदि हो तो पाकिस्तान की आवाम के सामने शेर बनकर जाएँ ताकि इमरान खान या मुल्ला कादरी के आन्दोलनों से आवाम को दूर कर सकें।
यही तजवीज आजमाने के लिए नवाज सरकार ने कश्मीरी अलगाववादियों और तमाम आतंकवादियों को निमंत्रण दे दिया। नतीजा सामने है। इसी तरह भारत में भी कुछ 'स्वयंभू देशभक्त' विद्वानों का ,मीडिया - मुगलों का और साम्प्रदायिकता का चस्मा लगाए बैठे महानुभावों का पाकिस्तान के नेताओं और वहाँ की हुकूमत पर रंचमात्र भरोसा नहीं रहा । इसीलिये वे मौजूदा सरकार के इस कदम को कि पाकिस्तान से 'कोई बातचीत नहीं ' को सही ठहरा रहे हैं। बेशक जो लोग भारत -पाकिस्तान के बीच शान्ति-मैत्री और भाईचारे के हिमायती है वे मायूश हैं।पाकिस्तान में करोड़ों मेहनतकश -मजदूर -किसान हैं जो भारत पाकिस्तान के बीच अम्न शान्ति और मैत्री चाहते हैं। इसी तरह भारत की अधिसंख्य आवाम और करोड़ों मेहनतकश मजदूर - किसान भी इन दोनों मुल्कों के बीच स्थाई शांति और अमन चाहते हैं। इस लक्ष्य को पाने के लिए बहुतही गंभीर, संजीदगी औरखुले दिमाग के कूटनीतिक प्रयाशों की सख्त आवश्यकता है। बिना बातचीत,बिना संवाद और बिना संपर्कों के यह संभव नहीं।जब वर्तमान भारत सरकार के एक प्रशंशक और हिमायती स्वयंभू कूटनीतिज्ञ कम-पत्रकार पाकिस्तान में दुर्दांत हत्यारे हाफिज सईद से बातचीत करने जा सकते हैं तो एक चुनी हुई सरकार से बात नहीं करना कहाँ तक उचित है ?
केवल इस बिना पर कि पाक उच्चायोग ने कश्मीरी आतंकियों से बातचीत का प्रोग्राम क्यों बनाया तो यह बहाना बेहद बचकाना है। दरसल विगत ६८ साल से भारत की लोकतांत्रिक सरकारें बड़ी संजीदगी से जिस हुकमत-ए -पाकिस्तान से लगातार द्विपक्षीय चर्चा करती रही हैं। वो पाकिस्तान सरकार तो खुद ही दुनिया में आतंकवाद और साम्प्रदायिकता की सबसे खतरनाक निशानी है। भारत ने बड़ी से बड़ी मुश्किल के दौर में भी बातचीत का अर्थात 'अम्न और शांति ' का दामन नहीं छोड़ा। इसीलिये हर बार पाकिस्तानी पाखंडी सरकारों, नेताओं और पाकिस्तानी फौज को मुँह की खानी पड़ी है। आज सारे संसार में भारतीय लोकतंत्र को सम्मान से देखा जाता है जबकि पाकिस्तानी लोकतंत्र और वहाँ के चुनाव का आलम तो ये है कि इमरान खान और कादरी जी के लाखों समर्थक आज इस्लामावाद को घेरे बैठे हैं। नवाज शरीफ तो खुद ही सऊदी- अरब , अमेरिका और पाकिस्तानी फौज के रहमो करम से अपनी जान बचा पाये थे। वे तो कठपुतली हैं जिसकी डोर सेना के हाथ में है। यह दुनिया जानती है कि पाकिस्तानी फौज क्या चाहती है ? पाकिस्तान के कटटरपंथी और कश्मीरी अलगाववादी क्या चाहते हैं ? वे भारत -पाक वार्ता के पक्षधर नहीं हैं। वे चाहते हैं कि भारत को बाहर से और भीतर से कमजोर कर परमाणुविक युद्ध की आग में धकेल दिया जाए। लेकिन हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है की हम क्या चाहते हैं ? पाकिस्तान की आवाम क्या चाहती है ? दरसल भारत -पाकिस्तान के बहुसंख्य जन-गण युद्ध और आतंक से घृणा करते हैं। वे अमन और विकाश के लिए लालायित हैं। इसके लिए हरकिस्म की फितरत उन्हें मंजूर होगी। जो पाकिस्तान के दो टुकड़े कर यदि अयूब खान जैसे खूखार पाकिस्तानी जनरल की युद्ध पिपासा शांत कर सकते हैं , जो परवेज मुसर्रफ को आगरा बुलाकर बिरयानी खिला कर कारगिल के बहाने पाकिस्तान में सत्ताच्युत करवा सकते हैं, जो बेनजीर भुट्टो के बाप को भी भारत से एक हजार साल तक लड़ने की तमन्ना से वंचित कर सकते हैं , वो धीर-वीर- गंभीर -जिम्मेदार भारत की जनता और फौज क्या पाकिस्तान की इस वर्तमान हुकूमत , उसके उच्चायोग और मुठ्ठी भर बिगड़ैल - कश्मीरी उग्रवादियों - अलगाववादियों की मीटिंग मात्र से छुइ-मुई हो जाएगी? बल्कि इस तरह के प्रयोजनों से भारत की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। भारत जैसे दुनिया के महानतम लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए तो यही ठीक होगा कि वो पाकिस्तान के उकसावे में न आये। सीना ठोककर बातचीत के 'एरिना ' में जोहर दिखाए। दुनिया को जताए कि भारत तो हर हाल में बातचीत को ही प्रमुखता देता है। किन्तु उसकी विफलता के लिए पाकिस्तान पहले से ही मंसूबे बांधकर चल रहा है। भारत को अपनी असल इमेज दुनिया को बार-बार बताना चाहिए कि वह पाकिस्तान की तरह जंगखोर ,रक्तपिपासु और दोगला नहीं है। बल्कि भारत तो अहिंसा , न्याय और बंधुत्व का अलम्बरदार है। युद्ध तो भारत के लिए अंतिम विकल्प है। वह पाकिस्तान की जनता से आह्वान करे कि वो अपनी फौज की युद्ध पिपासा का साधन न बने। भारत की आवाम को भी शिद्द्त से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अपने नेताओं को पड़ोसियों से विद्वेश के लिए प्रेरित न करें। दुनिया के किसी भी मुल्क से बातचीत के दरवाजे बंद न किये जाएँ। 'वसुधैव कुटुंबकम' का नारा जिस भारत ने विश्व को दिया हो उसे अपने सनातन पड़ोसी और घर के ही बिग्ड़ेलों की वजह से 'पथ विचलित' होने की जरुरत नहीं है।
श्रीराम तिवारी
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