मीडिया के माध्यम से और संघ परिवार के 'कनबतिया'प्रोग्राम की असीम अनुकम्पा से भारत में लोक सभा चुनाव के बरक्स इन दिनों एक छवि का निर्माण किया जा रहा है कि गुजरात के महान[?] मुख्यमंत्री और भाजपा तथा एनडीए के तथाकथित प्रतीक्षारत प्रत्याशी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी मानो वनारस और वडोदरा से संसद में पहुँचने वाले हैं और भाजपा एक सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के रूप में राष्ट्रव्यापी स्पष्ट जनादेश पाकर अपने एनडीए अलायंस को साथ लेकर मोदी के नेत्तव में महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के समक्ष पेश होगी कि 'लो हुजूर हम आ गए हमें शपथ दिलाओ '!कि लाल किले पर भगवा झंडा फहराने का वक्त आ गया है। कि भारत को अब लोकतंत्र नामक 'बिजूके' की,धर्मनिरपेक्षता के पुरातन मूल्यों कि अब कोई जरुरत नहीं क्योंकि एक अदद फुहरर देश की सेवार्थ अब संघ परिवार ने पैदा कर लिया है।
राजनीति यदि तथाकथित अनेक संभावनाओं से भरी पड़ी है तो जो कुछ परिदृश्य सप्रयास निर्मित किया जा रहा है, तश्वीर इसके उलट क्यों नहीं हो सकती है? जैसे कि मान लो कांग्रेस अपने दिग्गज और धर्मनिरपेक्ष चेहरे -दिग्विजयसिंह को वनारस से चुनाव लड़ा दे.तमाम गैर भाजपाई पार्टियां - सपा , वसपा , वामपंथ , नवोदित 'आप' और समस्त धर्मनिरपेक्ष -जनतांत्रिक ताकतें एकजुट होकर दिग्विजयसिंह को जिताने में जुट जाएँ तो मोदी को वनारस से हराया क्यों नहीं जा सकता ? मानलो मोदी वनारस से हार जाएँ और उन्हें हराने वाला कोई भी हो ,भले ही वे दिग्विजयसिंह ही न हों ! मोदी वनारस से हारते हैं तो यूपीसे उनका अधिक से अधिक सीट लाने का मनोरथ भी पूरा कैसे हो सकेगा ? तब जरूरी नहीं कि भाजपा को उसके चापलूसों ने अपने काल्पनिक सर्वे में जो २०० से ज्यादा सीटें एडवांस में दिलवा दीं वे मिल ही जाएँगी ! तब जरूरी नहीं कि एनडीए का कुनवा २७२ को छू सके ! तब जरूरी नहीं कि 'गुजरात नरेश ' वड़ोदरा से जीतकर भारत के प्रधानमन्त्री बन ही जाएँ ! तब यह भी तो सम्भव है कि वनारस कि ही तरह धर्मनिरपेक्षता की राष्ट्रव्यापी जीत भी प्रत्याशित हो !
चूँकि कांग्रेस[यूपीए] , सपा , वसपा , वामपंथ ,जदयू ,नवीन पटनायक ,जयललिता तथा अन्य कई भाजपा विरोधी पार्टियाँ और धर्मनिरपेक्ष पार्टियां हैं और वे सभी चाहें तो न केवल वनारस बल्कि अखिल भारतीय पैमाने पर धर्मनिरपक्ष मतों का विभाजन रोकर कटटर साम्प्रदायिकता का ,फासिज्म का ,पाखंड की विजय का रास्ता रोक सकते है. जनतांत्रिक ताकतों का अभी भी देश में बहुमत है। धर्मनिरपेक्ष ताकतों की एकजुटता से ही निरंकुश शासकों के आसन्न संकट को रोका जा सकता है। यदि एकजुट नहीं होंगे तो लतियाये जायेंगे और फिर दशकों तक लोकतंत्र की वापिसी के लिए संघर्ष करना होगा। अभी तक तो केवल वामपंथ ही भारत में धर्मनिरपेक्ष - जनतांत्रिक शक्तियों की एकता के लिए निरंतर प्रयास रत रहा है लेकिन कांग्रेस सपा ,वसपा , जदयू ,आप और अन्य सभी दल अपने निहित स्वार्थजन्य - अहंकार के चलते मोदी की आंधी को केवल सत्ता परिवर्तन समझने की भूल कर रहे हैं। इन सभी को चाहिए कि अपने -अपने पार्टी आफिस की दीवारों पर जनाब अल्लामा इकबाल साहिब की ये पंक्तियाँ लिख लें ताकि विवेक जागृत होने की कुछ तो सम्भावना बनी रहे।
"वतन की फ़िक्र कर नांदां ,मुसीबत आने वाली है,
तेरी बर्बादियों के मशविरे हैं आसमानों में ,
न संभलोगे तो मिट जाओगे ,हिंदोस्ताँ वालो ,
तुम्हारी दास्ताँ भी न होगी दस्तानों में "
श्रीराम तिवारी
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