संघ परिवार और भाजपा की पुरजोर चेष्टा है कि एन-केन प्रकारेण केंद्र की सत्ता हासिल की जाए। नरेद्र मोदी को प्रधान मंत्री बना जाए। संघ का अजेंडा लागू किया जाए। यूपीए की गफलतों,नाकामियों और उससे जनता की नाराजी को वोटों की शक्ल में बदलकर जन -समर्थन अपनी ओर करने के विभिन्न क़दमों के बरक्स सेलिब्रटीज को ,कलाकारों को ,फ़िल्मी हस्तियों को ,पत्रकारों को और रिटायर्ड अफसरों को तो भाजपा टिकट दे ही रही है , साथ ही दल बदलुओं -भ्रस्ट नेताओं को ,धनकुबेरों को और महाभ्रष्ट बाहुबलिओं को भी संसद में बिठाने का अवसर प्रदान कर रही है। हालांकि ममता ,जय ललिता और 'आप' के तेवर भी कुछ ऐंसे ही हैं किन्तु इनकी कोई खास औकात नहीं है कि बिना भाजपा या बिना कांग्रेस के समर्थन के ये दुमछल्ले दल केंद्र की सत्ता का कोई कोना भी छू सकें।इन चिंदी चोरों को बजाजी का शौक भले ही चर्राया हो किन्तु ये सभी अगंभीर किस्म की राजनीति के खुरचन मात्र हैं ! इसीलिये मीडिया भी इन्हें कुछ खास तवज्जो नहीं दे रहा है ।
मीडिया के केंद्र में अभी तो फिलहाल केवल मोदी सिरमौर हैं। विभिन्न सर्वे और सूचनाएँ बता रहीं हैं कि आगामी लोक सभा चुनाव के उपरान्त गठित होने जा रही १६ वीं लोक सभा में एनडीए का कुनबा बढ़ता जा रहा है। ये कयास भी लगाए जा रहे हैं कि आगामी केंद्र सरकार के गठन हेतु न केबल एनडीए को वांछित बहुमत हासिल होने जा रहा है बल्कि अकेले भाजपा ही 'सिंगल लार्जेस्ट पार्टी ' के रूप में २०० सीटों का आंकड़ा पार करने जा रही है। देश के प्रमुख शहरों के परम्परागत सटोरिये तो नरेद्र मोदी को १०० % भारत का भावी प्रधानमंत्री मान चुके हैं।हो सकता है आसन्न भविष्य में राजनैतिक सीनेरियो इससे कुछ अलग हो ! सम्भव है कि इतिहास इन सभी पूर्वानुमानों को २००४ की तरह ही गलत साबित कर दे! किन्तु अब गुंजाइश कम ही है। काश ऐंसा हो जाए कि एनडीए-यूपीए दोनों ही सत्ता से बाहर हो जाएँ ! काश यह सम्भव हो कि एंडीऐ की सरकार ही न बन पाये !यदि बन भी जाए तो कम से कम यही सम्भव हो कि 'नमो' पीएम न बन सकें! भले ही अटलनुमा कोई और चेहरा सामने आ जाए ! वास्तव में मोदी अब व्यक्ति नहीं रह गए हैं। वे उन तमाम विचारधाराओं के प्रतीक बन चुके हैं जो देश के मजदूरों - गरीबों ,किसानों और अल्पसंख्यकों के हितों से ऊपर,देश की गंगा जमुनी तहजीब से ऊपर ,देश के सार्वजनिक उपक्रमों से ऊपर,कार्पोरेट लाबी को , भृष्ट पूंजीपतियों को , सत्ता के दलालों को और देश की सम्पदा को लूटने वालों को वरीयता प्रदान करती है।
चूँकि गठबंधन की राजनीति का दौर है कुछ भी अप्रत्याशित सम्भव है। भले ही 'नमो ' देश के प्रधानमंत्री न बन पाएं, किन्तु यूपी में और खास तौर से काशी-बनारस में धर्मनिरपेक्ष दलों की वर्तमान दुर्दशा याने आपसी फूट बता रही है कि यदि मोदी 'वनारस' से लोक सभा का चुनाव लड़ते हैं तो उनकी जीत १००% पक्की है। मोदी की यह जीत गुजरात से बाहर पहली होगी और यह बेशक कट्टर पूँजीवाद की जीत होगी ! मोदी की वनारस से जीत याने 'कट्टर साम्प्रदायिकता ' की जीत होगी ! मोदी की बनारस से जीत याने नाजीवाद की आग को हवा देना जैसा है। मोदी की वनारस से जीत याने भारत में 'फासिज्म' का उदय ! वनारस की, यूपी की और भारत की धर्मनिरपेक्ष - जनतांत्रिक ताकतें यदि एकजुट होकर मोदी को वनारस में जीतने से नहीं रोक सकतीं तो उनको प्रधानमंत्री बनने से भी नहीं रोक सकेंगीं ! मोदी यदि वनारस से संसद में जाते हैं तो इसके लिए न केवल यूपीए बनाम कांग्रेस जिम्मेदार होगी ,न केवल माफिया डॉन मुख्तार अंसारी जैसे तथाकथित मसलमानों के स्वयंभू ठेकेदार जिम्मेदार होंगे ,न केवल केजरीवाल जैसे ढपोरशंखी अराजक नेता जिम्मेदार होंगे ,न केवल मुरली मनोहर जोशी-लालकृष्ण आडवाणी-लालजी टण्डन और सुषमा स्वराज जैसे रणछोड़दास जिम्मेदार होंगे ,न केवल ममता -माँयावती-जयललिता जैसी अहंकारी नेत्रियां जिम्मेदार होंगी ,न केवल मुलायम,नीतीश नवीन और पासवान जैसे जातीयतावादी और फिरका परस्त - मौका परस्त जिम्मेदार होंगे - बल्कि वे राजनैतिक शक्तियां भी मोदी की जीत के लिए जिम्मेदार होंगी जिन्होंने तटस्थता का रुख अपनाया हुआ है। जिन्होंने अतीत में लगातार अल्पसंख्यकों का,दलितों का और पिछड़ों का भरपूर राजनैतिक दोहन किया है वे नेता और दल भी मोदी रुपी प्रचंड आंधी के आह्वान के लिए जिम्मेदार माने जायेंगे। अभी तक जो यूपीए और इन क्षेत्रीय दलों ने किया है वो सब मोदी की जीत का इंतजाम मात्र है।
अब यदि भाजपा या संघ परिवार भी 'हिन्दुत्व 'और विकाश के मुद्दे पर यही करता है और मोदी को वनारस से जिता ले जाता है तो इसमें क्या शक है ? यदि अल्पसंख्यक समाज के ध्रुवीकरण की ही प्रतिक्रिया स्वरुप बहुसंख्यक समाज भी ध्रुवीकृत होकर 'नमो' को जीत दिलाता है तो मोदी की इस जीत के लिए न सिर्फ मुस्लिम कट्टरपंथी तमाम नेता बल्कि वे भी जिम्मेदार होंगे जो नहीं जानते कि नरेंद्र मोदी फ़ासिज्म के घोड़े पर सवार होकर पूँजीवाद का अश्वमेध करने क्यों जा रहे हैं ? जो यह नहीं जानते कि मोदी और संघ परिवार साम्प्रदायिकता का नरमेध करने के लिए इतने उतावले क्यों हो रहे हैं ? जो लोग यह सब नहीं जानते और फिर भी आज 'नमो' का जाप कर रहे हैं तो इसे सामूहिक हाराकिरी के अलावा क्या कहा जा सकता है ? न केवल बनारस के रास्ते, बल्कि मध्यप्रदेश ,गुजरात ,राजस्थान ,दिल्ली और छ्ग से मोदी के राज्यारोहण की सम्भावनाएँ अत्यधिक बलबती होती जा रही हैं। इसकी वजह क्या है ?
दुनिया का सबसे बड़ा और भारत का सबसे कट्टर साम्प्रदायिक ,अतुल्य ताक़तवर एवं तथाकथित गैरराजनैतिक संगठन "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ'जिसका सृजनहार हो , छद्म विकाशका नारा जिसका अलमबरदार हो, कट्टर हिंदुत्व् वाद जिसका सरपरस्त हो ,देश-विदेश के अधिकांश सरमायेदार - पूँजीपति जिसके मुरीद हों ,जो कांग्रेस समेत तमाम गैरभाजपाई पार्टियों की असफलताओं और कमजोरियों को तो अतिश्योक्तिपूर्ण ढंग से निरंतर बखान करता रहता हो किन्तु देश में हुए अब तक हुए अनेक बेहतरीन कामों के बारे में मौन रहता हो,जो देशव्यापी मैराथान -विराट आम सभाओं में न केवल बार-बार गुजरात विकाश का झूँठ परोसता रहा हो बल्कि आकर्षक योजनाओं के लालीपाप को प्रस्तुत करते रहने में भी अव्वल रहा हो ,जो ततसम्बन्धी परिवर्तन के लिए वैकल्पिक नीतियों पर चुप्पी लगाए रखता हो,जिसे मीडिया को साधने का हुनर आता हो ,जो कारण थापर जैसे पत्रकारों के जहरीले सवालों को शंकर की तरह पीने में माहिर हो ,जो परिवार की झंझटों से दूर हो ,जो अपने ही वरिष्ठों का निसंकोच लतमर्दन करने में निपुण हो , जो सामाजिक -जातीय -क्षेत्रीय आकांक्षाओं के दोहन में निष्णात हो ,जो न केवल गुजरात बल्कि भारत के तमाम 'सत्ता के दलालों 'का आकर्षण केंद्र बन चुका हो ,वो वनारस से देश का सांसद क्यों नहीं बन सकता ? यदि सांसद बन सकता है तो देश का प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकता ?
वर्गीय स्वार्थों में बटे धर्मनिरपेक्ष दलों की आपसी खींचतान के कारण, सामाजिक - जातीय -साम्प्रदायिक विषमता के कारण, निर्धन -निर्बल किसान -मजदूर और दीगर सर्वहारा वर्ग में अपनी वर्गीय चेतना का अभाव और संघर्षों की शक्ति को संसदीय ताकत में बदल पाने का माद्दा या हुनर नहीं होने के कारण, उनके हरावल दस्तों के असंगठित होने के कारण ,कांग्रेस- यूपीए की विनाशकारी नीतियों का धर्मनिरपेक्ष -जनतांत्रिक विकल्प अभी तो भ्रूण अवश्था में भी नहीं है। एनडीए का या भाजपा का या मोदी का आर्थिक दर्शन यूपीए का ही आर्थिक दर्शन है। यूपीए -एनडीए के डॉ मनमोहनसिंह के विनाशकारी आर्थिक विकल्प से चिपके रहने के कारण देश की अधिसंख्य आवाम का जीवन दूभर हो चूका है। देश की आवाम को भृष्टाचार और कुशाशन से तब तक निजात नहीं मिल सकती जब तक इन नीतियों को नहीं बदला जाता। चूँकि मोदी का दर्शन वाही है जो यूपीए का है ,कांग्रेस का है या डॉ मनमोहनसिंह का है। जब कांग्रेस के पराभव का पूरा इंतजाम डॉ मनमोहनसिंह कर चले हैं तो 'नमो' का 'विजयपथ ' इतना आसान क्यों नहीं होगा ? मोदी भारत के प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकते ?
श्रीराम तिवारी
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