युग बदलते रहते हैं . व्यवस्थाएं बदलती रहती हैं . सभ्यताएँ बनती -बिगडती रहती हैं. राष्ट्रों की सीमायें बदल जाया करती हैं. इतना ही नहीं इस धरती का तो अखिल ब्रह्मांड के सापेक्ष भूगोल भी बदलता रहता है . किन्तु एक चीज है जो दुनिया में कभी नहीं बदलती . कोई उसे बदलना भी चाहे तो नहीं बदल सकता . वो है धार्मिक या मज़हबी गुरु-घंटालों में भोले-भाले लोगों या धर्मभीरु जनता की अन्ध - आस्था . यही वजह है कि अब धर्म केवल ' अफीम ' ही नहीं बल्कि उसका सर्वकालिक धंधा भी बन चूका है . दुनिया के ज्ञात-अज्ञात सभी धर्मो-मतों-पंथों या 'दर्शनों' में एक चीज उभयनिष्ठ है, वो है धर्मभीरु जनता का इन गुरु घंटालों के द्वारा निरंतर ठगा जाना और इन महाठगों के व्यभिचार पर व्यवस्था की मौन स्वीकृति .
आधुनिक विज्ञान तकनीकी और सूचना सम्पर्क क्रांति के दौर में तो इन 'गुरु घंटालो' का धन्धा बहुराष्ट्रीय निगमों या मल्टी नेशनल कम्पनियों को भी मात दे रहा है . इन[ अ]- धार्मिक उस्तादों के उत्पादों को दुनिया की धर्मभीरु जनता न केवल ज्यादा पैसे देकर खरीदती है बल्कि इन घटिया उत्पादों में उसकी अगाध - अन्धश्रद्धा के कारण इन तथाकथित धार्मिक-आध्यात्मिक-दार्शनिक -भावातीत -धर्मौपदेशकों को दुनिया भर की सरकारों से भी परोक्ष मदद और विभिन्न तरह की छूट मिला करती है . इन्हें इनकम टेक्स ,सेल टैक्स से तो छूट है ही किन्तु इन्हें अपने -अपने अखाड़े -आश्रम -गुरुकुल या 'ठिये ' बनाने के लिए भी उपयुक जमीन -प्लाट फ्री फ़ोकट में मिल जाया करते हैं . ये धर्म-उपदेशक दुनिया भर में समान रूप से इस बात के लिए भी[ कु] - ख्यात हैं कि वे 'राज्यसत्ता' या क़ानून के प्रति जबाबदेही से बचने का विशेषाधिकाररखते हैं . कुछ तो अपने-आपको धरती पर ईश्वर-गॉड या अल्लाह का उत्तराधिकारी भी मानते हैं . जबकि सभी धर्मों-मज़हबों का सार -तत्व कहता है कि :-
" एकम सत विप्रा वहुधा वदन्ति " अर्थात सत्य या ईश्वर एक ही है और लोग उसे नाना प्रकार से कहते-सुनते रहते हैं . " ईश्वरः सर्वभूतानाम ह्र्देशे अर्जुन तिष्ठति, भ्राम्यन सर्व भूतानि यंत्रारुढ़ानी मायया " याने :-कस्तूरी कुण्डल वसे मृग ढूंढ़े वन माहिं . ऐंसे घट -घट राम हैं दुनिया देखे नाहिं . .
अर्थात ईश्वर सभी प्राणियों में समान रूप से समान भाव से स्थित है ,लोग भ्रमवश या अज्ञान के कारण उसे[इश्वर को ] अपने से बाहर देखते हैं या खोजते हैं . कुछ को तो यही भ्रम है कि ज्ञान या ईश्वर सिर्फ उनकी वपौती है . भारत में ऐंसे 'महाज्ञानी' पर- उपदेशक बहुतायत से पाए जाते हैं . उनका कहना है कि यदि वे न होते दुनिया नर्क हो जाती . मेरा मानना है कि ये 'पाखंडी' न होते तो यह धरती और खूबसूरत होती और दुनिया में यह सम्प्रदायवाद,आतंकवाद नस्लवाद भी न होते . निसंदेह इन परजीवियों से भारत बहुत ज्यादा पीड़ित है
भारत में ये बाबा -स्वामी,संत-बापू ,उपदेशक,आस्था-संस्कार चेनलों पर जनता को दिन रात ज्ञान की गंगा में डुबो-डुबो कर स्वर्ग भेज रहे हैं . उनका यह पाखंड केवल आर्थिक -सामाजिक विशेषाधिकार तक ही सीमित नहीं है . यहाँ भारत में तो 'नारी देह शोषण' का अधिकार भी ,स्वामियों ,शंकराचार्यों ,मठाधीसों, बाबाओं ने युगों-युगों से से प्राप्त कर रखा है . भगवान् रजनीश ,जयेंद्र सरस्वती,स्वामी चिन्मयानन्द ,भीमानंद, से लेकर तथाकथित 'संत' आशाराम बापू तक सभी पर समय-समय पर न केवल 'यौन - शोषण' अपितु हत्या के भी आरोप भी लगते रहे हैं. कुछ पर मुकद्दमें चल रहे हैं . कुछ को जमानत पर ही जिदगी गुजारनी पड़ रही है . कुछ को उनके किये की सजा भी मिली और जेल भी हो आये. किन्तु पीड़ितों को समाज में पुनः उचित स्थान मिले,उनके पारिवारिक और वैयक्तिक जीवन की भरपाई हो सके , शारीरिक ही नहीं बल्कि' पीड़ित नारी को भावात्मक पुनर्स्थापन के निमित्त समाज और 'राज्य' की ओर से कोई उचित सदाशयता प्राप्त हो , ऐंसा कोई ठोस कदम अभी तक समाज के प्रबुद्ध वर्ग की ओर से और वास्तविक एवं उच्च आदर्शों के आग्रही साधू- संतों- महात्माओं की ओर से इस विमर्श में अभी तक नहीं उठाया गया है . सरकार और विधायिका की ओर से भी कोई अपेक्षित उल्लेखनीय कदम अभी तक नहीं उठाया गया है . सभी दूर पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने का अभिप्राय - अपराधी को पकड़ने ,जेल भेजने ,कड़ी सजा देने की मांग तक सीमित है . कोई कठोर क़ानून की पैरवी कर रहा है , कोई पुलिस ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन की मांग करता दिखाई देता है , कोई समाज की सोच को बदलने की बात करता है , कोई महिलाओं के पहनावे में खोट देखता है और कोई वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था को इस 'यौन-उत्पीडन' के लिए जिम्मेदार मानकर इस व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की बात करता है , जबकी इस देश में इन दिनों हर -रोज इन नारी -उत्पीडन या यौन शोषण की घटनाओं से देश में लाखो'अनाम' माता-बहिने- बहु-बेटियां' की तादाद वेशुमार हो चुकी है . उनके आंसू पोंछने ,उन्हें शारीरिक,मानसिक,सामाजिक और आर्थिक रूप से पुनः स्थापित करने के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए . लोकतंत्र के चौथे खम्बे के रूप में मीडिया को इस संदर्भ में जन-जागरण अभियान चलाना चाहिए न केवल टी आर पी के लिए इन घटनाओं को नमक -मिर्च लगाकर पेश किया जाता रहे . वेशक बलात्कारियों को फांसी की सजा दिलाई जाए चाहे वो अपराधी -नेता हो ,आम आदमी हो या कोई तथाकथित संत या बापू ही क्यों न हो . वेशक आसाराम के आपराधिक चरित्र से हिन्दू -धर्मावलम्बी वेहद शर्मिंदा हैं किन्तु समाज के कतिपय साधू महात्माओं ने और स्वयम स्वामी शंकराचार्य स्वरूपानंद जी सरस्वती ने आसाराम को साधू-संत न मानकर एक मामूली कथावाचक और ग्रहस्थ ही माना है . देश के विद्द्वान वुद्धिजीवी और प्रगतिशील साधू समाज ने आसाराम को ' विजनेस मेन ' की उपाधि से विभूषित किया है . इसलिए धर्मभीरु जनता को भी चाहिए की आसाराम के आश्रम से ,उसके उत्पादों से और उसकी 'रासलीला से दूर ही रहे .
अपने आर्थिक नेटवर्क की बदौलत आशाराम अभी तक जेल के सीकचों से बाहर हैं . उनके एक' वर्ग विशेष' के अनुयायी ही हर बार की तरह इस बार भी ढाल बनकर आशाराम को बचाने में जुटे हैं. हालांकि जोधपुर पुलिस ने२७ अगस्त को , उनके इंदौर स्थित आश्रम में बड़े सम्मान से न केवल जोधपुर पुलिस थाने में ३० अगस्त तक 'अनिवार्य उपस्थति' का' सम्मन ' थमाया अपितु भारत छोड़कर विदेश भागने की संभावनाओं से भी ताकीद कर दिया है. पुलिस ने देश भर में आसाराम का 'देश न छोड़ने और पुलिस की नजरों में बने रहने' का नोटिफिकेसन जारी कर दिया है. अब आसाराम की गिरफ्तारी का रुक पाना एक चमत्कार ही हो सकता है . उन्हें अपने शुभ-अशुभ कर्मों का दंड इसी जन्म में भोगना पद सकता है क्योंकि जनता के सब्र का प्याला भर चूका है . सुप्रीम कोर्ट ,संसद और मीडिया की नज़रों में अब महिला उत्पीडन' एक सबसे जघन्य अपराध बन चूका है , कोई भी बच नहीं सकता फिर भी यदि आसाराम को अभी भीअपनी 'ताकत' का गरूर है तो येइस देश की जनता का, महिलाओं का और खास तौर से देश के संविधान का भी अपमान है.
आसाराम से जुड़े आर्थिक हितग्राहियों का स्वार्थ तो सर्वविदित है . किन्तु यक्ष प्रश्न ये है की कुछ महिलायें क्यों आशाराम को ' केरेक्टर सर्टिफिकेट' देने पर आमादा हैं ? इसका धर्मभीरु गोरखधन्धा क्या है? निसंदेह आसाराम में धूर्तता कूट -कूट कर भरी है , उसे जनता को ठगना आता है . जहां तक जनता के ठगे जाने का सवाल है तो ये तो बहुश्रुत है की ठगे जाने को सैकड़ों -हजारों मिलेंगे उन्हें मूर्ख बनाने वाला होना चाहिए . आसाराम इस युक्ति में खरे उतारते हैं . उनकी अर्ध अश्लील और भौंडी वाक्पटुता से पुरुषों से महिलायें ज्यादा गुमराह होती रही हैं . यही वजह है कि जब भी आसाराम पर कोई लांछन लगता है तो महिलायं ढाल बनकर खड़ी हो जाती हैं और आसाराम को कठघरे तक ले जाना पुलिस और कानून के लिए यह परेशानी का सबब हुआ करता है . समाज की यही वह परजीवी अमर्वेलि है जो अद्ध्यात्म को पाखंड और साम्प्रदायिकता से जोडती है .देश के विकाश को अवरुद्ध करती है और जनता को नकारा बनाती है,इतिहास साक्षी है कि अतीत में इन्ही ढोंगी बाबाओं और पर-उपदेशक पाखंडियों के कारण विदेशी आक्रमण का मुकाबला करने में तत्कालीन जनता और शासक नाकाम रहे और देश को हजारों साल की गुलामी का भुक्त भोगी होना पड़ा . इस आधुनिक 'ग्लोवल विलेज'युग में भी भारत की शोषित जनता और उत्पीडित महिलाओं को अपने असली दुश्मन की पहचान नहीं है तो क्या किया जा सकता है ? आजकल कुछ महिलायें तो इन बाबाओं के आश्रम में ही अपना जीवन गुजार रही हैं , कुछ ने तो इस व्यवस्था से समझौता ही कर लिया है . यह वर्तमान व्यवस्था की त्रासद बिडम्बना है .
आसाराम के दुराचरण पर केवल आसाराम की महिला प्रवक्ता ही नहीं, उनकी तथाकथित शिष्याएं ही नहीं बल्कि उमा भारती ,स्मृति ईरानी जैसी अन्य नेत्रियाँ भी उनकी पक्ष में खड़ी हो गईं हैं. क़ानून को तो मामले की पड़ताल करना जरुरी है. देश को और समाज को सच का सामना करने में हिचकिचाहट नहीं होना चाहिए .आसाराम यदि वाकई निर्दोष हैं तो क़ानून की मदद करनी चाहिए और कोर्ट से बरी होकर दुनिया के सामने अपनी 'सत्यनिष्ठा ' प्रकट करनी चाहिए . लोग कह रहे हैं कि यदि वे दुष्कर्म '- दोषी नहीं हैं तो क़ानून से क्यों भाग रहे हैं ?दिल्ली और राजस्थान की पुलिस के वांछित अपराधी - तथाकथित आध्यात्मिक 'गुरु' क़ानून से डरकर इधर-उधर क्यों भाग रहे हैं . आसाराम ने [२५] अगस्त को इंदौर में छोटी सी प्रेस कांफ्रेंस में , घुमा-फिराकर एक ही बात की है कि 'लोग मुझ पर आरोप लगाते रहते हैं किन्तु मैं निर्दोष हूँ ' मैं एक चमत्कारी संत हूँ . वगैरह … वगैरह …! गिरफ्तारी से बचने के लिए वे अपने इंदौर स्थित खंडवा रोड पर स्वयम के भव्य आश्रम में 'एकांतवास' कर रहे हैं . उनके अनुयाइयों के अनुसार '२७-२८'अगस्त को सूरत[गुजरात] में होने जा रहे 'कार्यक्रम' से पहले वे इंदौर में तीन दिवसीय 'एकांत-चिन्तन ' कर रहे हैं .
.यह एक आश्चर्यजनक किन्तु कटु सत्य है कि आशाराम पर जब-जब ऐंसे कदाचार-दुराचार के आरोप लगते हैं , वे इंदौर अवश्य आते है . उनका आर्थिक और तथाकथित 'आध्यत्मिक' साम्राज्य ना केवल अहमदावाद इंदौर बल्कि रतलाम ,भोपाल,जबलपुर,बेतूल, छिंदवाडा ,खंडवा,सूरत तथा मुबई तक फैला हुआ है . उत्तर भारत के छग और मध्यप्रदेश में तो आसाराम ने गहरी पकड बना रखी है . इसीलिये यहाँइंदौर में वे डेरा डाले हुए है . उन्हें लगता है कि पैसे और अनुयाइयों की ताकत से वे फिर क़ानून से बच जायँगे . किन्तु "रहिमन हाँडी काठ की , चढ़े ना दूजी बार " अब आसाराम के सामने एक ही विकल्प है 'क़ानून के सामने अपना पक्ष रखो ' निर्दोष हो तो सम्मान पाओ और दोषी हो तो कठोर दंड भुगतने के लिए तैयार रहो . सच्ची आध्यात्मिक आस्था है तो ईश्वर शरणम गच्चामि… !
राष्ट्रीय अखवारों की खबर है कि शाहजहांपुर उत्तरप्रदेश की १६ वर्षीय एक किशोरी ने भी आरोप लगाया है कि 'इलाज के बहाने आशाराम बापू ने उसे कमरे में बुलाया और दुष्कर्म किया'हालाँकि यह प्रकरण अभी पुलिस थाने में विधिवत दर्ज नहीं हुआ है . लगता है आशाराम में बाकई कोई शैतानी आत्मा का निवास है जो दुष्कृत्य की दैवीय शक्ति से परिपूर्ण है. चूँकि शैतान किसी कानून को नहीं मानता वो उस से ऊपर हुआ करता है. अतएव बलात्कार, यौन शोषण इत्यादि शब्द उसके लिए वर्जित नहीं हैं . इस तरह के घोर अलोकतांत्रिक और नैतिकताओं के 'अराजक' व्यक्तित्व के रूप मे भी आसाराम को एक खास राजनैतिक पार्टी द्वारा और कुछ महिला नेत्रियों द्वारा समर्थन दिया जाना नितांत दुर्भाग्य् पूर्ण है . ये पीड़ित महिलाओं का घोर अपमान है .
आशाराम और उनके लड़के नारायण साईं को नज़दीक से जानने वाले वेहिचक कहते हैं कि हवाला,सट्टा , मनी लांड्रिंग और विभिन्न प्रकार के जीवन उपयोगी - उत्पादों -औषधियों के उत्पादन - विक्रय जैसे कारोबार के अलावा हर शहर में आश्रम-गुरुकुल इत्यादि के नाम पर महँगी जमीनों की खरेद -फरोख्त में भी इन दोनों पिता-पुत्र को कुख्याति हासिल है . उनसे जुड़े अंडर वर्ल्ड के माफिया, कालाबाजारी करने वाले ,स्टेक होल्डर्स ,फ्रेंचायजी तथा लाभार्थी नहीं चाहेंगे कि आशाराम का आर्थिक साम्राज्य खतरे में पड़े. इसके लिए वे आशाराम के कुक्रत्यों की या तो अनदेखी किया करते हैं या फिर परदे के पीछे राजनैतिक सौदेबाजी करते हुए जमाने भर में ढिंढोरा पीटेंगे कि देखो देश की वर्तमान केंद्र सरकार हमारे आध्यत्मिक गुरु को नाहक बदनाम कर रही है . यह सुविदित है कि केंद्र या राजस्थान की सरका र का आसाराम से कुछ भी लेना -देना नहीं है . आशाराम की इन दोनों सरकारों से कोई आपसी रंजिस भी नहीं थी. फिर क्यों आसाराम के बहाने कुछ नेता केंद्र सरकार या राजस्थान सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं? जिस पीडिता ने आसाराम पर आरोप लगाए हैं या मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दिए हैं उसको गलत साबित करना तो आशाराम और उनके 'साम्राज्य' के बाएं हाथ का खेल था किन्तु ये 'महापुरुष'' परम ग्यानी ' भूल गए :-
पुरुष बली नहिं होत है , समय होत बलवान .
भीलन लूटीं गोपिका , वहि अर्जुन वहि वान . .
याने आसाराम के दिन अब लद चुके हैं ,यौन-उत्पीडन पर महिलायें अब खामोश नहीं रहने वालीं ,अब नारी सिर्फ भोग्या नहीं रही ,अब महिलाओं को गरिमा के साथ वास्तविक समता-साहस और सम्मान के साथ जीने के लिए किसी 'बाबा' अवतार या स्वामी की दरकार नहीं रही. भारतीय नारी अब अबला नहीं बल्कि सबला होने के लिए कटिबद्ध हो चुकी है . यही वजह कि जमाने भर में ऐंसा प्रतीत होने लगा कि भारत तो अब 'यौन शोषण' के लिए अभिशप्त हो चूका है . जबकि हकीकत ये है कि नारी का शोषण अतीत में अधिक हुआ करता था और प्रतिकार की कोई गुंजाईस नहीं थी . किन्तु इस नए दौर में महिलाओं ने अपने सम्मान अपने स्त्रीत्व,अपने नारीत्व की रक्षा के लिए संघर्ष करना सीख लिया है. इसलिए अब कोई माता , बहिन , बेटी या महिला चुपचाप उत्पीडन-शोषण -दमन सहते रहने के लिए किसी कोने में रोते बैठे रहने के लिए बाध्य नहीं है. क्योंकि लोकतंत्र और क़ानून उनके लिए भी है और किसी को सत्ता में बिठाने या हटाने की वोटिंग क्षमता को महिलायीं भी अब अच्छी तरह से जान गई हैं .
इस जघन्य अपराध के कारण आसाराम अन्दर से वेहद घबराए हुए हैं, किन्तु अपने आत्मविश्वाश को वनाये रखने की नाहक चेष्टा में और अपने वचाव में हास्यापद हरकतें भी कर रहे हैं . एक ओर तो उन्होंने अपने वचाव में कुछ खास धंधेबाज लोगों को 'आन्दोलन' के काम पर लगा दिया है , दूसरी ओर वे स्वयम अपने वचाव के बहाने 'श्रेष्ठतम पुरषों ' पर घटिया लांछन लगा-लगा कर जनता का ध्यान डायवर्ट कर रहे हैं . वे समाज और देश में साम्प्रदायिक कटुता के बीज भी बो रहे हैं . महात्मा गौतम बुद्ध,श्रंगी ऋषि ,गुरु नानक देव , अहिल्या और ययाति जैसे मिथकों को पेश कर न केवल अपनी तुलना कर रहे हैं अपितु अपने बचाव के निमित्त इन महापुरुषों की छवि को भी धूमिल कर रहे हैं .
अवयस्क लड़की के साथ 'कुकर्म' करने वाले इस देश में अकेले आशाराम बापू ही नहीं हैं . रोज -रोज दिल्ली,मुंबई,और जोधपुर ही नहीं बल्कि सारा भारत इन दिनों 'पुरुषत्व'प्रदर्शन के लिए दुनिया में मशहूर हो रहा है .१५ अगस्त को जोधपुर में आशाराम बापू जैसे दुराचारी ने ने जो किया वो अपराध जगत में सबसे घृणित और निंदनीय कुकृत्य है .सुश्री उमा भारती ने तो बाकायदा प्रेस और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के समक्ष आशाराम को क्लीन चिट दे दी हैं . दुष्कृत्य की शिकार लड़की के साथ हमदर्दी दिखाने ,या उसके साथ हुए जघन्य कुकर्म की मेडिकल रिपोर्ट इत्यादि की जानकारी लिए बिना ,अस्पताल में पीडिता से मिले बिना ही उमा भारती और प्रभात झा जैसे भाजपाइयों ने अपनी छवि को ही बट्टा लगा दिया है . प्रभात झा तो खैर घोर पुरातनपंथी और पितृसत्तामक सामन्त्कालीन व्यवस्था के पिछलग्गू हैं किन्तु उमा भारती को क्या हो गया ? कहीं वे नारी वेश में प्रछन्न या खंडित व्यक्तित्व तो नहीं हैं. उनके द्वारा एक दुराचारी को बचाया जाना और एक अबोध बालिका को झुन्ठा बताना निसंदेह न केवल निंदनीय बल्कि मर्मान्तक है . सुश्री उमा भारती का नारीत्व सन्देहास्पद हो चूका है . और इसीलिये शायद वे एक निर्दोष निरीह अवयस्क बालिका के साथ दुराचार करने वाले कपटी लम्पट और ऐय्याश 'बाबा ' आशाराम को 'बिना कोर्ट या क़ानून के अंतिम निर्णय का इंतज़ार किये ही 'निर्दोष' बताकर समस्त नारी जाति को अपमानित किया है . ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि उमा भारती ,प्रभात झा और उनकी पार्टी दिल्ली में और केंद्र में सत्ता में नहीं है वरना आशाराम जैसे पापी के एक इशारे पर पुलिस उस लड़की की ऍफ़ आई आर ही नहीं लिखती . शायद उस पीडिता को और उसके सपरिजनों को कब का मार दिया गया होता . ईश्वर शीला दीक्षित जी को उम्रदराज करे , अशोक गहलोत को लम्बी उम्र दे की वे दोनों पूरी ईमानदारी से उस पीडिता के 'संरक्षण' में खड़े हो गए जो आशाराम जैसे 'राक्षस की हवस का शिकार हुई है . अधिकांस जागरूक लोग ,माध्यम वर्ग और धर्मभीरु लोग जानते हैं कि आशाराम एक ऐंसा 'नरपशु' है जिसने दर्जनों निर्दोषों को मरवा दिया है . उसने न जाने कितनी महिलाओं ,विवाहित,अविवाहित और अवयस्क या कुमारी कन्याओं का लगातार यौन शोषण किया है . यह साधू संत कुछ नहीं केवल' ठग विद्द्या' में सिद्धहस्त आपराधिक मानसिकता का 'चुटकुलेबाज' है . यह शेम्पू, सावून,तेल आसन, माला ,अगरवत्ती ,कपूर, पोथी से लेकर अपनी फोटो तक बेचता है और देश-विदेश के बदमाशों को इसने अपने 'विशाल आर्थिक साम्राज्य' में भर्ती कर रखा है . विगत दिनों दिल्ली में जो मुठ्ठी भर लोग उसके समर्थन में जुलुस या प्रदर्शन कर रहे थे उनको या तो ये सब मालूम नहीं या वे सभी आशाराम के जर - खरीद गुलाम थे . भाजपा ने यदि वोट की राजनीति के मद्देनज़र आशाराम को बचाने की कोशिश की तो यह दाव उसके लिए उलटा भी पड़ सकता है . हिन्दू समाज में सोचने समझने की क्षमता है कि भाजपा का चाल -चेहरा -चरित्र क्या है ?उमा भारती के बारे में भी देश की महिलाओं का नज़रिया विपरीत हो सकता है .
जोधपुर की इस घटना के बाद तुरंत मुंबई में और फिर दिल्ली में भी महिला उत्पीडन की शिकायतें देश भर में चर्चित हैं. देश भर में इन पीड़ित महिलाओं या लड़कियों के दुःख दर्द में सहानुभूति व्यक्त की जा रही है . महाराष्ट्र और केंद्र सरकार की आलोचना हो रही है , लोग बहुत नाराज हैं , किन्तु किसी ने भी कहीं भी किसी बलात्कारी को सही नहीं ठहराया जैसा कि उमा भारती और प्रभात झा ने आशाराम जैसे बलात्कारी को सही और पीडिता को गुनाहगार ठहराया है . यह नाकाबिले बर्दास्त स्थति है .
हालांकि इस घटना से पहले १६ दिसंबर-२०१२ को दिल्ली में चलती बस में गेंग रेप और २२ अगस्त को मुंबई में पत्रकार लड़की के साथ गैंग रेप हुआ . २३-अगस्त -२०१३ को पुनः दिल्ली में घटित बलात्कार की घटना तो मात्र भारतीय समाज की खदबदाती हाँडी का उफान भर है , ये तो वे घटनाएं हैं जो अपराधियों की किसी चूक से या पीड़ितों के साहसपूर्ण प्रतिकार से जनता - क़ानून और प्रशासन के सामने दरपेश हुईं हैं. दरसल पूरा देश इन घटनाओं से आप्लावित है . नारी उत्पीडन, कन्या उत्पीडन , बाल यौन शोषण , गेंग रेप तथा दुष्कर्म के साथ-साथ अमानवीय नृशंस व्यहार अथवा हत्या जैसे जघन्य अपराधों के लिए
भारतीय समाज इन दिनों सारे संसार में बुरी तरह बदनाम हो चला है . ऐंसा भी नहीं है कि देश का सम्पूर्ण समाज ही 'कामान्धता' का शिकार हो चूका है . अधिकांस पुरुष और युवा अपनी करियर या पारिवारिक ,सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग हैं , अधिकांस को अपने समाजगत ,सम्प्रदायगत मूल्यों में गहन आश्था है . किन्तु बढ़ती हुई आबादी और गिरते हुए पूँजीवादी आर्थिक-सामाजिक अवमूल्यन ने गुमराह लोगों की भी समाज में मात्रा बढ़ा दी है . इसमें कदाचित वर्तमान दौर के बाजारबाद और खुलेपन की भी भूमिका हो सकती है . वास्तविकता क्या है यह तो समाज शास्त्री या 'मनोवैज्ञानिक ही बता सकते हैं , मेरा अनुमान यही है कि अब भारतीय नारी शोषण -उत्पीडन को छिपाने में विश्वाश नहीं करती और यही वजह है कि मीडिया के मार्फ़त देश और दुनिया को रोज-रोज नयी -पुरानी तत्संबंधी आपराधिक घटनाएँ दरपेश हो रही हैं. शोषण से लड़ने की उसके प्रतिकार की यह चाहत ही ज़िंदा समाज और प्रवाहमान सभ्यता की पहचान है .
देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में ,बड़े-छोटे सभी तरह के शहरों-कस्वों जैसे - छिंदवाडा ,खंडवा,रतलाम ,देवास, उज्जेन और इंदौर में आशाराम के ऊपर न केवल दुष्कर्म के, न केवल' नारी-शोषण' के , न केवल आर्थिक घोटाले के, बल्कि जमीनों की खरीद -फरोख्त में गुंडागर्दी के और तांत्रिक क्रिया इत्यादि के संदर्भ में हुई मौतों के - बेहद संगीन आरोप लगते रहे हैं हैं . इन तमाम वारदातों के परिप्रेक्ष में आशाराम बापू पर सी बी आई जाँच की मांग गंभीरता से की जा रही है .
आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी और देश के ख्यात सामजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ एडवोकेट सतपाल आनद ने रजिस्टार जनरल ,सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया ,को ई -मेल भेजकर सी बी आइ जाँच की मांग की है . उन्होंने कहा कि न केवल आशाराम द्वारा उत्पीडित बच्ची को न्याय मिले बल्कि उसे दस-लाख रूपये की धनराशि भी दी जाये .उन्होंने मांग की है कि न केवल आशाराम द्वारा उत्पीडित अपितु - मुंबई दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में 'यौन-उत्पीडन' की शिकार महिलाओं को- न केवल तत्काल उचित न्याय मिले बल्कि बिना किसी हीले -हवाले के तत्काल दस लाख रूपये पीड़िता के खाते में जमा कराये जाएँ . स्मरण हो कि विगत दिनों मध्यप्रदेश में ऐंसे ही एक प्रकरण में दुष्कर्म पीडिता एक बच्ची को दस लाख रूपये की राहत के लिए एडवोकेट सतपाल आनंद ने पहले सेसन कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक लड़ाई लड़ी थी किन्तु जब हाई कोर्ट में उनकी याचिका ठुकराई गई तो वे सुप्रीम कोर्ट गए और वहा से उस पीड़ित बालिका को दस लाख रूपये दिलाये जाने का आदेश पारित कराया . उन्होंने रजिस्टार जनरल आफ -सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया को आशाराम के तमाम धनबल-बाहुबल और आपराधिक कृत्यों की जांच कराने के लिए केंद्र को आदेशित करने बाबत अनुरोध किया है . आसा है कि अब और किसी आसाराम को आइन्दा और अपराध करने की इजाजत ये देश नहीं देगा .
श्रीराम तिवारी