बुधवार, 28 अगस्त 2013

मेहनत का रुपया ही डालर को हरा सकता है [कविता]

        


     भारत  के जनतंत्र को , लगा भयानक रोग .

     राजनीति  में घुस गए , घटिया शातिर लोग . .



   नई  आर्थिक नीति  अब , करती नए सवाल .

    दुनिया के  बाज़ार में , रुपया क्यों बदहाल . .


    क्यों रूपये की हार है , क्यों डालर की जीत .

     क्या  अदभुत  ये नीति है ,पूँजीवाद  से प्रीत . .


     आदमखोर पूँजी हुई , कपट कलेवर युक्त .

     चोर-मुनाफा खोर हैं , इस युग में भयमुक्त . .


     बढ़ते व्यय के बज़ट  की ,अविचारित यह नीति .

     ऋण पर ऋण लेते रहो, गाओ खुशी  के गीत . .



     कवन विकाश कारण किये , राष्ट्र रत्न नीलाम .

    औने -पौने बिक गए , बीमा टेलीकाम . .


    लोकतंत्र की पीठ पर ,  लदा  माफिया राज .

     ऊपर से नीचे तलक , हुआ 'कमीशन' काज . .

  
  विश्व बैंक से   कर  रहे , मनमोहन अनुबंध .

    नव- निवेशकों  पर नहीं, कहीं  कोई प्रतिबन्ध  '. .  


   
पूँजी मिले विदेश से , किसी तरह तत्काल .

मल्टीनेशनल  को नहीं , रूचि यहाँ फिलहाल . .


कोटि  जतन  मिन्नत करी ,खूब नवाया भाल .

  डालर लेकर आये ना ,  साहब  गोरेलाल . .


   डालर-डालर सब  भजें  , रुपया  भजे  न कोय .

    मेहनत  का  रुपया भजो , तो जय-जय भारत होय . .



       श्रीराम तिवारी
   



 

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