बुधवार, 14 अगस्त 2013

वर्तमान दौर की नीतियों से देश की संप्रभुता ओर स्वाधीनता खतरे में;-

     जो -जो राष्ट्र अतीत में कभी किसी'परराष्ट्र' के  गुलाम थे  और कठिन संघर्ष और बलिदानों की कीमत पर आजाद हुए वे सभी हर साल  अपनी आजादी की सालगिरह पर जश्न अवश्य  मनाते हैं, शहीदों की कुर्बानी को अवश्य याद करते हैं ,  उन्हें नमन करते हैं और संकल्प लेते हैं कि  वे न केवल शहीदों का बलिदान याद रखेंगे ,  न केवल अपने मुल्क की आजादी को  अक्षुण रखेंगे बल्कि उसे समृद्धशाली और  सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न बनाने की ओर निरंतर पीढी -दर-पीढी अग्रसर होते रहेंगे .  हम भारत के 'जन-गण ' भी अपने 'वतन की आजादी का पर्व 'पन्द्रह  अगस्त' को मनाते हैं ,हम  हर साल इस दिन देश के अमर शहीदों को याद करते हैं ,उनके संघर्षों को याद करते हैं.वतन की आजादी ,उसका नव-निर्माण और  उसकी संप्रभुता और अखंडता की शपथ लेते हैं इस दिन भारत की राजधानी दिल्ली में और प्रदेशों की राजधानियों में सरकारी तौर  पर जश्न मनाया जाता है और इस दौर के 'राष्ट्र नायक '    देश की आवाम को  देश भक्ति का ज्ञान देते हैं  हालाँकि इन  वेचारों  को स्वयम भी  राष्ट्र की 'संप्रभुता' का अर्थ  मालूम नहीं होता . वे अपने संविधान के मूलभूत संकल्प  को या तो जानते ही नहीं या फिर  प्रमाद वश उसकी जानबूझकर अनदेखी किया करते हैं .यदि किसी  ने ज़रा सी ईमानदारी दिखाई कि  उसे हासिये पर धकेलने  के लिए ये 'व्यवस्था' तैयार बैठी है .
                                       पंद्रह अगस्त 1947   को ' यूनियन जेक ' की जगह 'तिरंगा ' लहराया  तो लोग समझे की देश आजाद हो गया जबकि इस तारीख  को तो  भारत [इंडिया] केवल अंग्रेजी दस्तावेजों में ही   इन्द्राज  हुआ था .  अंग्रेज तो भारत-पाकिस्तान का बंटवारा करके  कुटिल मुस्कान के साथ चले गए किन्तु पूरा भारतीय उप महादीप लहू लुहान कर गए . वे   इस प्रायदीप में लगभग 527  देशी  रियासतों को  छुट्टा छोड़ गए . भारत  -नेपाल  , भारत-चीन , भारत -पाकिस्तान के बीच सीमाओं का कभी न खत्म होने वाला झगडा छोड़ गए .अंग्रेज लोग  इस  खंड-खंड 'राष्ट्र'  में   हिन्दू-मुस्लिम के, वर्ण भेद के , जातीयता के संघर्षों का  बीज वपन कर इंग्लेंड  चले  गए . इस रक्तरंजित  राष्ट्र की सामाजिक  दुरावस्था  से , सामंतशाही से  और गुलामी जनित दरिद्रता से परिपूर्ण  भारत को    '' सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक-धर्मनिरपेक्ष-समाजवादी  गणराज्य " के   निर्माण का संकल्प  जिन महान नेताओं ने  लिया था ;यदि  उनके प्रति यह आधुनिक पीढी कृतज्ञता प्रकट  करती है तो कोई एहसान नहीं करती . निसंदेह यह महान कार्य करने  वाले बलिदानियों  की   संख्या  लाखों में हो सकती है  किन्तु "को न नसाइ  राज पद पाई " आजादी के बाद जो सत्ता में प्रतिष्ठित हुए थे - वे पंडित नेहरु ,सरदार पटेल  और डॉ आंबेडकर तो  इसके श्रेय भाजन  हो गए किन्तु शेष सभी के बलिदान को यह राष्ट्र भूलता चला गया .
                                     भारत राष्ट्र का निर्माण   भले ही   तत्कालीन  सेकड़ों सामंतों और रियासतों के विलय उपरान्त   संभव हुआ  हुआ हो, किन्तु   इस महत कार्य  याने 'राष्ट्र निर्माण  का श्री गणेश तो  प्रथम स्वाधीनता संग्राम से ही प्रारम्भ हो चूका था  और इस महानतम कार्य को  अमली जामा पहनाया   -  कांग्रेस और  महात्मा गाँधी  ने , शहीद  भगत सिंह-आजाद-सुखदेव -राजगुरु  की शहादत ने  ,  उनकी वोल्शैविक  क्रांति की तर्ज पर बनाई गई - क्रांतिकारी 'हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी  'ने   ,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और उनकी  आजाद हिन्द फौज ने,  सीमान्त गाँधी अब्दुल गफ्फार खान और उन के लाल कुर्ती दल  ने  , मुंबई समेत देश भर के मेहनतकशों की हड़ताल  ने,  तत्कालीन इंडियन  नेवल स्ट्राईक ने और  इतिहास के पन्नों पर नाम नहीं जिनका - उन तमाम अज्ञात  महान बलिदानियों ने  इस टूटे-फूटे क्षत-विक्षत सेकड़ों साल की  गुलामी  से पीड़ित 'भारत'  को अपने प्राणों का अर्ध्य  देकर मूर्त रूप दिया था . आजदी के पर्व पर भी  हम उनको,उनकी कुर्बानी को और उनके  महान  संकल्प को  विस्मृत कर दिया करते हैं .
                       अपने हमवतन शहीदों -क्रांतिकारियों के अलावा भारतीय स्वाधीनता संग्राम में तत्कालीन   दुनिया के अनेक महानायकों  एवं    मित्र राष्ट्रों  का भी विशेष योगदान रहा है.  लेनिन, टालस्टाय , ज्यां पाल सात्र ,आइन्स्टीन, मैक्स मूलर, एनी  वेसेंट और कार्ल मार्क्स जैसे महान दार्शनिक निरंतर भारत की जनता के पक्ष में ;दुनिया भर में अलख जगाते रहे .   दुनिया के अनेक  महान क्रांतिकारी लोग  जो 'साम्राज्यवाद' से नफरत करते थे उनका भारत की जनता से भाईचारा सर्वविदित है  . द्वतीय विश्व युद्ध   का तो सारी दुनिया की आजादी में  महत्वपूर्ण योगदान रहा है.     निसंदेह महायुद्ध हो या खंड युद्ध उससे मानव इतिहास में  कोई सकारात्मक परिणाम शायद ही निकला हो  किन्तु द्वतीय महायुद्ध ने भारत की आजादी में परोक्ष सहयोग दिया था.  इसका  जिक्र कम ही होता है  कि  दुनिया में इस्लाम की  'खिलाफत' को पूंजीवादी क्रांति ने  ख़त्म   किया और  ब्रिटिश साम्राज्यवाद का  सूर्यास्त -द्वतीय महायुद्ध  से संभव हुआ.  न केवल भारत बल्कि  अधिकांस  देशों पर इन्ही दो ताकतों का वर्चस्व रहा है,आज भी  ये ताकतें 'सभ्यताओं के संघर्ष' के नाम पर   दुनिया को तवाह करने पर तुली हुई हैं . विश्व शांति ,अमन ,भाईचारा ,समाजवाद  सब  हासिये पर चले गए हैं क्योंकि दुनिया अब 'एक् ध्रुवीय ' हो चली है .  गनीमत है कि  भारत में इन मूल्यों को अभी भी सम्मान प्राप्त है.    
                                             भारत  राष्ट्र के निर्माण का श्रेय  प्राय :   रवीन्द्रनाथ टेगोर ,अरविन्द  घोष ,लाल-बाल -पाल    पंडित नेहरु ,सरदार पटेल  ,सुब्रमन्यम भारती   मौलाना  आजाद , डॉ राजेन्द्र प्रसाद , श्यामा प्रसाद मुखर्जी और डॉ भीमराव आंबेडकर तक सीमित कर दिया जाता है  और न केवल भारत से  बल्कि सारी दुनिया  से , जिस कारण से ब्रिटिश हुकूमत को भागना  पडा वो -बहुत कम लोग जानते हैं .  दुनिया में साम्यवाद का उदय, द्वतीय विश्व युद्ध  और 'सोवियत क्रांति '  ये तीन फेक्टर ऐंसे  हैं  जिसके कारण ब्रिटेन में 'टोरी ' पार्टी की पहली बार हार हुई और 'लेबर पार्टी जीती . लेबर पार्टी ने १९४६ के अपने घोषणापत्र में साफ़ लिखा था कि  यदि हम चुनाव में  जीते तो  न केवल 'इंडिया' बल्कि सारी दुनिया  को आजाद कर देंगे . लेबर पार्टी जीती , एटली  प्रधानमंत्री बने और ब्रिटिश जनता की खास तौर  से लेबर पार्टी और उसके हमदर्द मजूरों-किसानों की आकांक्षा  का उन्हें आदर करना पडा. लार्ड माउन्ट वेटन  को भेजकर भारत की आजादी का सरंजाम करना पडा . इस दरम्यान भारत में 'अंग्रेजो भारत छोडो , जेल भरो आन्दोलन परवान चढ़ रहा था  और भारत के बाहर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज  उत्तर पुर्व से हमले करते हुए असाम तक आ चुकी थी. अंडमान निकोबार  पर आजाद हिन्द फौज का कब्जा हो चूका था .   निसंदेह  आजादी के बाद का  नेतत्व और सरकार दोनों ही  देश की  नई  पीढी को आजादी का  सही  इतिहास  बता पाने  में असमर्थ  रहे हैं.   भारत राष्ट्र की संप्रभुता को स्थापित करने में ,उसे परिभाषित करने में , उसे एक निष्कंटक राष्ट्र के रूप में स्थिर करने में हम अभी तक असफल रहे हैं .
    किसी   ' राष्ट्र ' की संप्रभुता को   परिभाषित किये  बिना उसके 'गुलाम'  या 'आजाद ' होने का तात्पर्य वेमानी है .  मानव सभ्यताओं के उत्थान-पतन के साथ ही   संप्रभु  'राष्ट्र' शब्द की  परिभाषाएँ  भी देश-काल और परिस्थितियों  के अनुरूप  निरंतर  परिवर्तनशील रही हैं . किसी एक राष्ट्र या कौम की आजादी या गुलामी   दूसरे  किसी  अन्य राष्ट्र या कौम  की आजादी या गुलामी   के बरक्स - अन्योंन्याश्रित होते हुए भी  उसकी अंतर्वस्तु या  सार रूप में सर्वथा भिन्न हो सकती है .एक साथ गुलाम होने वाले या एक साथ आज़ाद होने वाले दो पृथक राष्ट्र अपनी सामाजिक,सांस्कृतिक और भौगोलिक संरचना अर्थात आंतरिक बुनावट और ऐतिहासिक सिलसिले के कारण 'राष्ट्र' को और उसकी संप्रभुता को  भिन्न अर्थों में अभिव्यक्त  किया करते हैं .इसीलिये  यह जरुरी नहीं कि किसी एक  देश की 'आजादी ' किसी दूसरे  देश की आजादी  के समतुल्य हो . इससे यह भी स्वयम सिद्ध है कि  यह भी आवश्यक नहीं कि  एक साथ 'आजाद' हुए राष्ट्र सामान रूप से शक्तिशाली या समृद्ध हों या सामान रूप से लोकतांत्रिक , धर्मनिरपेक्ष  या समाजवादी हों . चीन -पाकिस्तान या दक्षिण अफ्रीका के सापेक्ष भारत में कहीं बेहतर लोकतंत्र है  किन्तु प्रति व्यक्ति आय में भारत इन तीनों  देशों से पीछे है . इन देशों की संप्रभुता को किसी से कोई ख़तरा नहीं जबकि भारत की अखंडता और संप्रभुता पर संकट के बादल सदा मंडराते रहते हैं .
                                 भारत  की संप्रभुता  के लिए तीन खतरे हैं  - एक तो वर्तमान आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण  के परिणामस्वरूप देश की सार्वजनिक संपदा और तिजारत  को विदेशी नीति नियामकों के द्वार पर बंधक बना  देने से नव-उपनिवेशवाद का खतरा .  देश की संप्रभुता को   दूसरा ख़तरा  चीन और पाकिस्तान के नापाक गठजोड़ से उत्पन्न हुआ है .  तीसरा ख़तरा भारत के अन्दर ही मौजूद है   भ्रष्ट सरकारी   तंत्र  , अराजकता ,नक्सलवाद ,साम्प्रदायिक कट्टरवाद ,क्षेत्रीय अलगाववाद ,चुनावी  गड़बड़ी ,जातिवाद  और आर्थिक असमानता के भयानक बिशाणु  -भारत की संप्रभुता और अखंडता को अन्दर से चुनौती दे रहे हैं .  सीमाओं पर चीन-पाकिस्तान घात लगाए बैठे हैं . पाकिस्तान की सेना निरंतर 'शीज फायर' का उल्लंघन कर रही है . पाकिस्तानी फौज और   आतंकवादी  भारतीय सैनिकों की धोखे से हत्याएँ  कर रहे हैं . देश की वेशकीमती सबमरीन पनडुब्बी आई एन एस सिंधुरक्षक  को तबाह कर दिया गया है. ऐंसे  संकटकालीन दौर में - देश  की जनता को व्यक्तियों के नायकत्व की जय-जय कार करने के बजाय ,सत्ता के लालचियों पर बहस करने के बजाय -राष्ट्र की  सुरक्षा  जैसे  गम्भीर  मुद्दों पर चिंतन -मनन करना चाहिए . न केवलवैयक्तिक स्वार्थों का  चिंतन -मननअपितु सामूहिक स्वार्थों पर आधारित भारत राष्ट्र की संप्रभुता -एकता -अखंडता के लिए भी चिंतन -मनन और विमर्श किया जाना चाहिए .  वेशक  जो भी भारतीय अपने देश से  से जितना पा रहा है उसके समानुपात में अपने हिस्से की आहुति दे तो ही  देश  की संप्रभुता सुरक्षित  रह सकती है . इस तरह के चिंतन या सोच से काम नहीं चलेगा की देश को 'भगतसिंह ' तो  सेकड़ों  हजारों चाहिए  किन्तु  वे  पड़ोसियों के घर पैदा हों मेरे घर में नहीं .   राष्ट्र निर्माण का अभिप्राय सिर्फ हर पांच साल में चुनाव  करवा लेना भर नहीं है बल्कि  वतन     पै  मरने वालों ने जो सपना देखा था उसे पूरा करना भी जरुरी   है .              
                                                        विष्णुगुप्त  चाणक्य  से लेकर   मैजनी  तक , गैरीबाल्डी  से लेकर सरदार पटेल तक और जार्ज वाशिंगटन से लेकर नेल्सन मंडेला तक सभी ने राष्ट्रीय एकीकरण या राष्ट्र पुनर्निर्माण के शानदार  उदहारण पेश किये हैं . हमें पंद्रह अगस्त पर ही  नहीं अपितु  राष्ट्रीय आपदा और संप्रभुता के संदर्भ में  भी इन  महान विभूतियों  के व्यक्तित्व और कृतित्व का  स्मरण रखना चाहिए .  शायद हम मौजूदा संकट का मुकबला कर सकें और अमर शहीदों के सपनो  का  भारत बना सकें …।  स्वाधीनता दिवस अमर रहे …। स्वाधीनता  संग्राम में  और देश की सीमाओं पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले अमर शहीदों को क्रांतिकारी अभिवादन …! 
                                            shriram tiwari    

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