शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

दुर्गा शक्ति नागपाल [ब्युरोक्र्सी बनाम राजनीति]

  गौतमबुद्ध नगर में पदस्थ एस डी एम् और  मात्र दो वर्षीय कार्यकाल  की अनुभवी जूनियर  आइ ए एस  अधिकारी- दुर्गा शक्ति नागपाल  को निलंबित किये जाने पर देश में और देश के  बाहर भी  भारतीय राजनीती और ब्यूरोक्रेसी पर विभिन्न मत-मतान्तर दरपेश  हुए   हैं . उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव पर आरोप  हैं कि  उन्होंने अखिलेश सरकार को सही कानूनी राय  नहीं दी और उन पर ये भी आरोप है कि दुर्गा शक्ति को सस्पेंड करने के लिए झूठ और फरेब का सहारा लिया गया .कदलपुर गाँव की  अवैध मस्जिद की दीवार गिराने के बहाने 'रेतमाफिया ' ने अखिलेश सरकार पर दवाव डालकर इस नवोदित अतिउत्साही महिला अधिकारी को सस्पेंड कराने में जो भूमिका अदा की है वो किसी से छिपी नहीं है . यु पी- आइ ए एस- एसोसिएसन ने संगठित होकर इस संदर्भ में सरकार से  अपना प्रतिवाद अवश्य जताया किन्तु उनके बीच के ही सरकारी चमचों और  सपा  द्वारा पालित-पोषित संरक्षण प्राप्त -आरक्षण प्राप्त कतिपय विभीषणों ने आइ ए एस  असोसिएसन के  इस एकजुटता अभियान की  ही हवा निकाल दी थी.  किन्तु अब जबकि स्वयम मुलायमसिंह जी ही दुर्गा शक्ति का निलंबन समाप्त  कराने के लिए मध्यस्थता कर रहे हैं तो  उन चमचों को बड़ी कोफ़्त हो रही है .
                                    वास्तव में अवैध खनन माफिया,स्थानीय भ्रष्ट नेताओं  और उनके  टुकड़ खोर वकीलों  को दुर्गा शक्ति नागपाल से बेहद तकलीफ थी , वे किसी बहाने की तलाश में थे और वो उन्हें 'मस्जिद की दीवार गिरने ' से मिल गया . निशाचरों के चक्रव्यह में 'दुर्गा शक्ति' को घेर लिया गया . सिर्फ   जन आन्दोलन की ताकत ही उसे बचा सकती थी  . लेकिन जन आन्दोलन के लिए न्यायिक बिलम्ब आड़े आ रहा था  . विधायक जी सीना तानकर  कह रहे थे  "हमने उसे ४२ मिनिट में सस्पेंड करा दिया"  . राजनीति  की इस निहायत ओछी हरकत को  जनता  ने, मीडिया ने, सोनिया गाँधी ने  और  आए ऐ एस असोसिएसन ने  एक स्वर में नामंजूर कर दिया था.  जनाक्रोश को भांपकर उ. प्र . सरकार ने बहरहाल 'युद्ध विराम '  कर लेना ठीक समझा और दुर्गा शक्ति नागपाल को पुन : पदस्थ  कराने -निलंबन खत्म करने का फैसला किया  है .
                      अखिलेश सरकार ,सपा और उसके मत्रियों के अलोकतांत्रिक कार्यों और  वयानों से यूपी में राजनैतिक पारा आसमान पर जा  पहुंचा था   . कुछ ईमानदार - क़ानून विदों और सेवा निवृत  वरिष्ठ अधिकारीयों  की राय  है कि राज्य एवं केंद्र सरकार दोनों को यह अधिकार है कि यदि किसी अधिकारी को उसके निलंबन  योग्य चार्ज हैं तो वे आवश्यक आदेश पारित कर सकते हैं . परन्तु केंद्र-राज्य के मध्य असहमति की स्थति में 'केंद्र' के आदेश अंतिम माने जायेंगे . दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को ख़ारिज करने का  पूरा हक केंद्र सरकार को है किन्तु राजनीतिक नफ़ा नुक्सान के बरक्स केंद्र सरकार ने अभी तक कोई कारगर हस्तक्षेप नहीं किया है .फिर भी एक निजी याचिका के रूप में ,अवमानना का  मामला सुप्रीम   कोर्ट में  होने से इस प्रकरण में न्यायिक संभावनाएं पूर्णरूपेण  सुरक्षित हैं.  याने दुर्गा शक्ति  यदि निर्दोष हैं और वे वास्तव में किसी षड्यंत्र की शिकार हुई हैं तो उन्हें न्याय अवश्य मिलेगा .  किन्तु इस सन्दर्भ के निमित्त जन-आन्दोलन की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता .   हालांकि जिम्मेदार अधिकारी वर्ग ने शुतुरमुर्ग की मुद्रा अख्त्यार कर ली है  और जनता का एक बड़ा हिस्सा  हमेशा की तरह इस प्रकरण में भी  किसी   'अवतार'  के लिए आशान्वित है .
                                                            भारत की अधिकांस जनता 'अवतारवादी' है .  उसे प्राकृत आपदाओं, आसमानी विपत्तियों,भूकम्प -सुनामी इत्यादि   हर समस्या और चुनौती से निपटने के लिए ' चौबीस अवतार' या  'दशावतार चाहिए . अधुनातन साइंस और टेक्नालोजी के युग में भी विराट  जन-समूह  के एक खास 'वर्ग' को  हर युग में , हर जगह  एक अदद चमत्कारी -हीरो चाहिए . उसे यदि  राम,कृष्ण,गौतम, गाँधी जैसा अवतार मिल भी जाए तो वो  उन्हें  भी रिजेक्ट कर  देगा  .  किसी को  राम का यह काम पसंद नहीं , किसी को कृष्ण का यह चरित्र पसंद नहीं , कोई गौतम की धज्जियां  उढ़ाने  लगेगा ,कोई गांधी को कमजोर और  गोडसे को देश  भक्त बताकर किसी और  समकालिक  चरित्र   को महिमा  मंडित करने लगेगा . दरसल यह वर्ग  विश्वव्यापी है . यह तो फिर भी मान्य  किया जा सकता है कि  अलौकिक संकट या आपदा के लिए  उसे अलौकिक और चमत्कारी 'अवतार' ही  चाहिए .  जो लोग  शारीरिक,मानसिक ,सामाजिक ,आर्थिक या बौद्धिक रूप से  नितांत अपूर्ण हैं, नियति या कुदरत ने जिन्हें 'मानवोचित' क्षमताओं से  महरूम रखा है  वे  यदि इस 'अवतारवाद' के फंडे  पर यकीन  करते हैं  तो कोई खास फर्क नहीं पड़ता।।  किन्तु जो लोग भ्रष्टाचारियों को जानबूझकर बार-बार  सत्ता शिखर पर बिठाते  रहते हैं  उन्हें व्यवस्थागत विसंगतियों और सत्ता प्रतिष्ठान की आक्रमकता  से कोई  शिकायत  नहीं होना चाहिए . उन्हें  वर्तमान शासक वर्ग के 'वर्ग चरित्र' को  भी जानना-समझना चाहिए .उसके प्रतिकार का  उचित समाधान करना चहिये . भारत जैसे  लोकतांत्रिक देश में  यह प्रतिकार अहिंसक  जन-आन्दोलन के रूप में  किया जाता रहा है और अब भी किया जा रहा है . अब यह सिद्ध हो गया है कि -अन्यायी और भ्रष्ट शासक वर्ग को इस जन - आन्दोलन  की ताकत  से आसमान से जमीन पर लाया जा सकता है .
                                                         वर्तमान पूँजीवादी -अर्धसामंती व्यवस्था में  यदि कोई शख्स-स्त्री या पुरुष  प्रमाणित तौर   से अत्यंत मेधावी  और प्रकृति प्रदत्त तमाम शक्तियों से सम्पन्न हो,अधिकार सम्पन्न हो , जिसके कन्धों पर व्यवस्था संचालन  का भार हो  और उसे  किसी  मानवकृत   और  व्यवस्था गत समस्या से  जूझना  पड़े तो यह कोई  अप्रत्याशित  घटना  तो नहीं है . अपनी संविधानिक जिम्मेदारी छोड़    उसे महज   'त्राहिमाम-त्राहिमाम '   करने की   आवश्यकता    क्यों  होनी चाहिए ?अभिप्राय यह है की" दुर्गा शक्ति नागपाल" को  किंचित भी मायूस  नहीं होना चाहिए . जनता की अपेक्षाओं और सहयोग  के अनुरूप  साहस  के साथ  राष्ट्रनिष्ठता पर अडिग रहते हुए इस आक्रांत कारी निजाम से डटकर मुकबला करना  चाहिए . उन्हें और आवाम को जानना चाहिए कि कांग्रेस और भाजपा के समर्थन के निहतार्थ क्या हैं ? क्या यह सही नहीं कि  मध्यप्रदेश में ईमानदार अधिकारी होना गुनाह है.  कर्नाटक में भाजपा सरकार क्यों गिरी ? यह सभी को मालूम है  क्या भाजपा इतनी जल्दी भूल गई ?  मध्यप्रदेश में खनन माफिया का सत्ता धारी  पार्टी भाजपा से क्या सम्बन्ध है ये  जग जाहिर है. यहाँ तो   ईमानदार अधिकारी को डम्फर से कुचल कर मार दिया जाता  है . यहाँ पर  जिन  बेइमान और भ्रष्ट अधिकारीयों के पास अकूत धन-दौलत है उन्हें प्रमोसन अवश्य  मिलता है  और ऐंसे अधिकारी केवल  और  केवल सत्ता के दलाल  हुआ करते  हैं .  कांग्रेस और सोनिया जी को यूपी के 'दुर्गा शक्ति' मामले में उदारता दिखाने या हस्तक्षेप करने  से पहले यह जरुर जानना चाहिए था  कि  हरियाणा में आइ ए एस अधिकारी खेमका ने अपनी सर्विस लाइफ़ में ४० बार स्थान्नान्तरण क्यों  भुग्ता ? श्री राबर्ट बाड्रा  जी के 'गड़बड़ झालों पर  जब खेमका ने पर्दा डालने से इनकार किया तो उन्हें अब धमकियां  क्यों  मिल रही  हैं ?   राजस्थान में ,गुजरात में ,बंगाल में ,तमिलनाडु में ,आंध्र में  ईमानदारी की सनक वाले अधिकारी मारे-मारे क्यों  फिर रहे है ? ये कांग्रेस और भाजपा के लिए अबूझ प्रश्न तो नहीं है .  देश भर में लाल फीताशाही  के लिए बदनाम   सत्ता के  दलाल बने हुए अधिकारी ऐयाशी में ,देशद्रोह में लिप्त हैं . उन्हें सस्पेंड या बरखास्त  करने वाला कोई' ४२ मिनिट ' वाला  नेता अब तक इस देश में पैदा क्यों नहीं हुआ ?
              यह   शतप्रतिशत सही है कि  देश के  अधिकांस व्यरोक्रेट्स  भ्रष्ट और सत्ता के चारण - भाट  हैं .  ब्रिटिश शासन के दौरान तो  फिर भी अधिकारी वर्ग में कम से कम इंग्लॅण्ड के राजा  या रानी के प्रति भक्तिभाव होने से चारित्रिक  शुचिता और अनुशासन  प्रियता का भाव हुआ करता था .  आजादी के बाद भारत का व्युरोक्रेट्स  वर्ग दुनिया का सबसे भ्रष्ट  तम तबका बन चूका है . राजनीति को पाप का घडा बना डालने में देश की व्यरोक्रेशी  सबसे अधिक उत्तरदायी है .अधिकांस  राज्नीतिज्ञों  के अशिक्षित   होनेतथा पापपंक  में डूबे होने  से अधिकारी वर्ग देश को लूटने के लिए  स्वतंत्र होता चला गया. जनता समझती है कि  उसकी तमाम परेशानियों के लिए केवल राजनीतिग्य ही जिम्मेदार हैं जबकि ऐंसा नहीं है .आज यदि  देश की संप्रभुता  खतरे में है और आर्थिक  व्यवस्था यदि   बदहाल है तो ये व्युरोक्रेट्स भी  इस दुर्दशा के  लिए बराबर के साझीदार हैं .   कहीं -कहीं तो उच्चाधिकारी  इतने भ्रष्ट  हैं कि भ्रष्टाचार भी शर्मा जाए .  इतने भ्रष्ट तो राजनीती में भी नहीं हैं .
                                      वेशक    इन उच्चाधिकारियों  में से यदा-कदा जब  कुछ नए -नए युवा अधिकारीयों  के ह्रदय   में ,फ़िल्मी स्टायल की ,रावडी राठौर जैसी , खाकी जैसी, 'सिंघम ' जैसी  या 'गंगाजल' जैसी  देश  भक्ति ,जनसेवा और  ईमानदारी   की हिलोरें उठती हैं तो  फिल्मों में तो अवश्य वही  होता है जो 'दर्शक' पसंद करता है किन्तु वास्तविकता के धरातल पर यह 'दुर्गा शक्ति चालीसा'   प्रारंभ हो जाता है .भ्रष्ट व्यवस्था के कल पुर्जे यहाँ ढीले होने लगते हैं तब शासक वर्ग 'अनुशासन ' के ब्रह्माश्त्र से इस तात्कालिक वर्गीय अन्तर्विरोध को 'टाईट '  कर दिया करता है . अर्थात दुर्गा शक्ति को भी  जल्दी ही संतुष्ट कर दिया जाएगा , उनकी  चार्ज   सीट   या तो वापिस ले ली जायेगी या केंद्र सरकार के कार्मिक विभाग के नियमानुसार उन्हें अपील के थ्रू आरोप मुक्त कर दिया जाएगा . या   किसी अच्छी जगह पर पोस्टिंग दे दी जायेगी .  यदि उन पर लगाए गए चार्ज सही भी  पाए गए और नौकरी से जाना पडा तो भी कोई हर्ज नहीं क्योंकि तब हिन्दुत्वादी  पक्ष से उन्हें अखिलेश और सपा से भिड़ा दिया जाएगा .   यदि दुर्गा शक्ति का कनेक्शन सोनिया जी से जुडा तो  कांग्रेस की ओर से उन्हें राजनीती में उतार दिया  जाएगा और दुर्गा शक्ति रुपी प्रकरण का  अस्थायी बुलबुला शांत हो जाएगा .

                           जनता को याने उन लोगो को जो वास्तव में इस वर्तमान महाभ्रष्ट व्यवस्था को सुधारने या बदलने की चाहत रखते हैं ऐंसे  देशवासियों को  इस तरह के  व्यक्तिवाद से ज्यादा  उम्मीद नहीं रखना चाहिए कि  कोई एक चना -भाड़  फोड़  देगा . किसी खास नेता या अधिकारी की वकालत करने के बजाय देश की आवाम को इस तरह के  'मुद्दे' की  न केवल  शल्य क्रिया करनी होगी , अपितु इन घटनाओं के बरक्स ईमानदार  ,देशभक्त और बलिदानी  - लोगो को एकजुट करते हुए वैकल्पिक नीतियों  का निर्धारण  भी करना होगा .  न केवल राष्ट्रीय दुश्चिंताओं,व्यवस्थागत दोषों  अपितु  वैश्विक चुनौतियों  के अनुरूप आगे बढ़ाते हुए संयुक संघर्ष की समग्र चेतना का विस्तार  भी  करना चाहिए . तब शायद  इस व्यवस्था में  कोई ठोस बदलाव हो सके  या कोई  क्रांति की झलक इस देश  का उद्धार कर सके . कुछ लोग विगत दिनों देश भर में भ्रष्टाचार मिटाने ,लोकपाल लाने और क्रांति कराने का दम भरते हुए कभी रामलीला मैदान में ,कभी जंतर-मंतर पर केवल स्वांग  भरते रहे , फेस बुक और मीडिया में उन्हें बड़े -बड़े  क्रांतिकारी तमगे दिए गए किन्तु जब भ्रष्टाचार के जंग में 'दुर्गा शक्ति '  ने जंग का बीड़ा उठाया तब अन्ना  हजारे , किरण बेदी ,बाबा रामदेव ,केजरीवाल और सुब्रमन्यम स्वामी अपने-अपने दडवों  में जा छिपे . इनमें से  किसी ने भी इस जमीनी लड़ाई में ' दुर्गा शक्ति नागपाल ' का साथ तो दूर  शाब्दिक 'समर्थन  भी  नहीं दिया क्यों ?
                                      जो 'सबला ' मात्र २५  साल की उम्र  में यूपीएससी फेस करते हुए ; आई ए एस की आल इंडिया  रेंक में ८७५ की लिस्ट में२० वां स्थान प्राप्त कर ले , जिसने कंप्यूटर साइंस  की उच्च्तम  शिक्षा प्राप्त की हो , जो निहायत ईमानदार  ,देशभक्त और निर्भीक हो, जिसे देश की जनता का भरपूर समर्थन और आदर मिले , जो राष्ट्र की संपदा को लूटने वाले 'डाकुओं' पर वक्र दृष्टि  रखती हो, जिसको  स्वयम सोनिया गाँधी  और केंद्र सरकार की सदाशयता प्राप्त  हो जिसको-,भाजपा ,माकपा ,भाकपा और देश भर के मीडिया कर्मियों  का   -बुद्धिजीवियों का समर्थन प्राप्त  हो ,   ओर्र जिसका नाम ही 'दुर्गा शक्ति ' हो उस एस डी एम् - 'दुर्गा शक्ति नागपाल'  को  कुटिल राजनीतिज्ञों  के एक छिछोरे समूह  से घबराने की जरुरत नहीं है.  उसे सत्य पथ पर अडिग रहना चाहिए .
                               आज के गलाकाट प्रतिस्पर्धी दौर में  बड़ा अफसर  बनना  बहुत   बड़ी बात है .  उत्तर भारतीयों द्वारा   खाये जाने वाले 'बड़े' की तरह . पहले उड़द  को  दाल  में बदलने की कठिन प्रक्रिया ,फिर दाल को गलाओ , दाल लगभग सड़  जाए तो उसे बुरी तरह पीसो ,    पिसी हुई   दाल के कई स्टेप पार कर 'बड़े' बनाओ ,फिर तेल में  तलो  ,जब अच्छी तरह से तल  जाएँ तो छांछ  में दो-चार दिन  के लिए डुबाये रखो और इसके बाद उस 'बड़े' को शक्कर  दही के साथ  चट  कर  जाओ . जमाने का दस्तूर तो यही है कि  यदि बड़ा बनना है तो बहुत कुटना -पिसना  होगा . और एक बात बड़ा  बना ही खाए जाने के लिए है . अब ये व्यक्ति विशेष  पर निर्भर  है कि   बड़ा बनना है या छछूंदर .   छछूंदर याने नेता ,याने खनन माफिया का दलाल , याने नॉन मेट्रिक  -अर्ध शिक्षित ,याने जातिवाद-सम्प्रदाय वाद  के पोखरों में मुँह  मारने वाला अधम-प्राणी .याने  विधायक नरेन्द्र सिंह  भाटी -जिस पर मर्डर,किडनेपिंग और दंगे भड़काने के संगीन आरोप हैं और  यदि वो जनता के बीच  ऐलान करे कि " मैंने उस एस डी एम् -दुर्गा शक्ति का मात्र ४२ मिनिट में तबादला करा दिया "
                                            तो भृष्टाचार रुपी साँप  के गले में फंसे छछूंदर की तरह -अब सपा और अखिलेश के लिए  गोस्वामी जी कह गए हैं :-  उगलत बने न लीलत केरी .  भई  गत साँप  छछूंदर केरी।  जिन लोगों को अपनी एकजुट संघर्ष शक्ति पर भरोसा नहीं वे ही  किसी 'अवतार' या हीरो का इन्तजार करते हैं .  जिस कौम को बचपन से ही सिखाया गया हो की :-
                                              जब -जब होय धरम की हानि . बाढहिं  असुर अधम अभिमानी . .                    वो तो भगवान् या अवतार का इन्तजार कर सकती है किन्तु   जिन लोगों को  मालूम है कि'दुर्गा शक्ति नागपाल' प्रकरण तो  वर्तमान व्यवस्था के  आंतरिक वर्गीय अन्तर्विरोध की एक  ऐसी  चिंगारी  मात्र थी  जो   'जनता-जनार्दन' रुपी आक्रोश की  आंधी बनकर   क्रांति की ज्वाला में  बदल सकती थी .  जनता के मूड को भांपकर इस मामले में स्वयम मुलायम सिंह जी ने  हस्तक्षेप किया और दुर्गा शक्ति नागपाल  का  निलम्बन निरस्त  कराने के प्रयास तेज कर दिए  हैं  . दुर्गा शक्ति को क़ानून के दायरे में देशभक्तिपूर्ण सिद्धान्तवादिता से सदैव अडिग रहना चाहिए . इस घटना से उन्हें ये भी सबक लेना   चाहिए कि  व्युरोक्रेशी सर्वशक्तिमान नहीं है . दर्शल व्यूरोक्रेशी  के ऊपर  व्यवस्थापिका है और उसके ऊपर कार्यपालिका है . कार्यपालिका के ऊपर विधायिका है और विधायिका से उपर देश की जनता है .  जनता के साथ जो रहेगा  वह कभी  परास्त नहीं होगा . जनता के साथ रहने  के लिए भ्रष्टाचार ,कदाचार और साम्प्रदायिकता से दूर रहना होगा .
   
                                                               श्रीराम तिवारी
                             

 

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