निसंदेह मौजूदा दौर में भारत के सितारे गर्दिश में हैं . चीन के फौजी जवान बार-बार भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए भारत को धमकाते रहते हैं . पाकिस्तान के आतंकवादी और फौज दोनों मिलकर न केवल भारत की सीमाओं पर अपितु भारत के अन्दर -कभी मुंबई , कभी बोधगया , कभी दिल्ली ,कभी बंगलुरू और आये दिन कश्मीर में - भी मार काट मचाये हुए हैं.आर्थिक मोर्चे पर भी स्थिति बेहद चिंतनीय है . विदेशी मुद्रा भण्डार छीज रहा है . आयात-निर्यात संतुलन देश के पक्ष में नहीं है . डालर के सापेक्ष रुपया दयनीय स्थति में पहुँच गया है. इस नाजुक स्थति में भारत को अमेरिकी और यूरोपीय निवेशकों के नाज़ -नखरे उठाने पड़ रहे हैं . विदेशी निवेशकों को मनचाही लूट और मनचाही कानूनी छूट की लाल कालीन बिछाई जा रही है . सार्वजनिक क्षेत्र, सेवा क्षेत्र , वीमा क्षेत्र , बैंकिंग क्षेत्र ,टेलीकाम क्षेत्र और खुदरा व्यापार इत्यादि में विदेशी निवेश को शतप्रतिशत छूट देकर हमने देश को आर्थिक गुलामी के मोड़ पर ला खडा किया है . इन हालात के लिए देश का वर्तमान नेतत्व और सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार तो जिम्मेदार है ही साथ ही 'प्रतिगामी ' आर्थिक नीतियाँ और व्यवस्था के भृष्ट तत्व भी जिम्मेदार हैं . देश के पूँजीवादी राजनैतिक दल भी कमोवेश इस असहनीय दुरावस्था के लिए किंचित जिम्मेदार हैं . आजादी के ६ ६ साल बाद भी देश की जनता 'वास्तविक राष्ट्रवाद' की चेतना से कोसों दूर है . महज मुठ्ठी भर पत्रकार ,मीडिया कर्मी और स्वनामधन्य वुद्धिजीवियों के अलावा इन शब्दों के निहतार्थ भी जन-मानस तक नहीं पहुँच पा रहे हैं . गाहे -बगाहे उग्र-राष्ट्रवाद का नारा लगाकर कुछ लोग देश में विभ्रम अवश्य पैदा करते रहते हैं. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो उसे दिखना भी चाहिए . भारत को केवल चुनावी या वैधानिक लोकतंत्र ही नहीं बल्कि ऐंसा शक्तिशाली लोकतंत्र होना चाहिए कि देश का 'अन्त्यज' भी उसको परिभाषित करने की क्षमता रखता हो और जिस लोकतंत्र का नाम सुनकर चीन -पाकिस्तान थर-थर कांपते हों . एक पुनर्जागरण ,एक रेनेसा ऐंसा हो की भारत में प्रजातांत्रिक राष्ट्र तो हो किन्तु 'बनाना ' गणतंत्र नहीं बल्कि समृद्ध राष्ट्र निष्ठ - समाजों आत्मनिर्भर - व्यक्तियों, समर्पित - नेताओं , जन-अनुकूल नीतियों और बहु विध संस्कृतियों का समवेत स्वर में क्रांतिकारी सिंहनाद हो! शोषण विहीन भारत ही अपने मदमस्त पड़ोसियों को काबू में रखने में समर्थ हो सकेगा … ! एक तरफ करोड़ों नंगे भूंखे हों और एक तरफ चंद समृद्धि के पहाड़ खड़े हों तो किसका राष्ट्र? कैसा राष्ट्र ? पागल- जंगखोर आतंकवादियों से मुकाबला तो फौज कर लेगी किन्तु देश के अन्दर मौजूद अनगिनत राष्ट्रघातियों से मुकाबला कौन करेगा ?
वर्तमान दौर की आर्थिक-वैदेशिक और सामरिक नीति को चूँकि यूपीए और एनडीए दोनों का वरद हस्त प्राप्त है अतएव देश के ये दोनों बड़े राजनैतिक समूह और उनका नेतत्व करने वाले बड़े दल कांग्रेस और भाजपा भी इस हालात के लिए जिम्मेदार हैं . इन दोनों में से सत्ता में कौन है इससे व्यवस्था की सडांध पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता . देश को रसातल में ले जाने के लिए यह 'आर्थिक उदारीकरण ' की पूँजीवादी नीति ही प्रमुखत : जिम्मेदार है . इसके चलते देश के बाहर की ताकतें तिजारत के बहाने भारतीय रक्षा तंत्र में अन्दर तक घुसपेठ कर चुकी हैं . आधुनिक सूचना एवं संचार क्रांति के फलस्वरूप हमारे दुश्मनों को देश की सामरिक तैयारियों की समस्त सूचनाएं मुफ्त में मिल रहीं हैं . हमारे जवान कहाँ कब कितनी संख्या में पहुँच रहे हैं इसकी जानकारी दुश्मन को पहले से ही उपलब्ध है तो सीमाओं पर हमारे जाबाँज सेनिकों का बलिदान कैसे रुक सकता है? बाह्य और आंतरिक संघर्ष के कारण भारत न तो गरीबी से लड़ पा रहा है , न तो सही ढंग से आधुनिकीकरण कर पा रहा है और न ही चीन या पाकिस्तान को मुँह तोड़ जवाव दे पा रहा है . जिस देश का रक्षा मंत्री एक जग जाहिर सूचना देने में तीन दिन लगा दे और जिस देश के विपक्षी संसद ही न चलने दे उस देश का केवल 'भगवान्' ही मालिक है . इन हालातों में ये उम्मीद करना कि अमेरिका की तर्ज पर पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों का नामोनिशान मिटा दो यह केवल' मौसमी बतरस ' के सिवाय कुछ नहीं है.
वेशक पड़ोसी देशों के अन्दर भी अनेक चुनौतियां हैं . पाकिस्तान में भी हर जगह मारकाट मची है , उनकी अर्थ व्यवस्था बदहाल है . गरीबो, मेंहगाई और क्षेत्रीयता से पाकिस्तान बजबजा रहा है . आतंकवाद परवान चढ़ा है . अमेरिका चीन और सउदी अरब से जो मदद मिलती है वो पाकिस्तान की आदमखोर -जंगखोर सेना के दोजख में समा जाती है . दुनिया जानती है कि भारत की सीमाओं पर पाकिस्तान को कोई ख़तरा नहीं है किन्तु भारत का हौआ खडा किये बिना उसे सउदी अरब , चीन तथा अमेरिका से मदद नहीं मिल सकती . पाकिस्तान का भारत पर निरंतर आक्रमण करते रहना उसकी इसी भिखमंगेपन की वजह है . इसी तरह चीन भी तिब्बत के अलगाव वादियों को -दलाई लामा को भारत में शरण दिए जाने से हमेशा खुन्नस से भरा रहता है , हालंकि वो जानता है कि भारत से उसे कोई ख़तरा नहीं क्योंकि उसकी सैन्य तयारियाँ भारत से दस गुना ज्यादा हैं . चीन के सापेक्ष भारत को प्रवाह के विपरीत तैरना पड़ रहा है . चीन ने दो-दो मोर्चे एक साथ भारत के खिलाफ खोल रखे हैं . एक सीमाओं पर और दूसरा व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में . आर्थिक विकाश की दौड़ में भारत से आगे बने रहने के चक्कर में वो सीमाओं का विवाद वनाये रखना चाहता है . इसीलिये कभी कभार उसके फौजी झंडा डंडा लेकर भारत की सीमा में घुस आते हैं . भारत की सेनाओं को अपने देश के लोकतंत्रात्मक विधान के आदेश पर सीमाओं पर अनुशाशन बनाए रखना आता है . जबकि पाकिस्तान और चीन की फौजें बेलगाम हैं और उन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं हैं . ऐंसे असभ्य और बर्बर - पागलों से घिरे होने के वावजूद भारत अपना आपा नहीं खोता जब तक कि पानी सर से ऊपर न गुजर जाए . क्योंकि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा और वास्तविक लोकतंत्र है . पाकिस्तान का लोकतंत्र तो पाकिस्तानी फौज के बूटों तले सिसकता रहता है और चीन में तो लोकतंत्र शब्द ही वर्जित है . लोकतंत्र क्या है इसे जानने के लिए दुनिया भारत की ओर देखती है. दुनिया को पाकिस्तान और चीन से तो सिर्फ युद्ध की दुर्गन्ध ही हासिल होगी . पाकिस्तान में अमन रहे ,पाकिस्तान में लोकतंत्र रहे यह पाकिस्तान के हक़ में है किन्तु उसे यह तभी नसीब होगा जब वो अपने पड़ोस में एक लोकतांत्रिक और सहिष्णु राष्ट्र के रूप में भारत की कद्र करना सीखे . केवल १ ९ ७ १ के बँगला देश मुक्तिसंग्राम की पराजय के दंश से प्रेरित होकर भारत से स्थाई बैर रखना पाकिस्तान के भी हित में कदापि नहीं है .
यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों ने ,पाकिस्तान की आर्मी ने और पाकिस्तान की कुख्यात आई एस आई ने भारत के खिलाफ अनवरत 'युद्ध' छेड़ रखा है . वे केवल कश्मीर के अलगाव वादियों , छग के नक्सलवादियों के मददगार या मुम्बई के हमलावरों के सरपरस्त या सीमाओं पर भारतीय फौजियों की धोखे से हत्या करने वालों के 'आका' ही नहीं हैं; बल्कि वे नेपाल के रास्ते ,राजस्थान के रास्ते ,खाड़ी देशों के रास्ते ,कश्मीर के रास्ते व् समुद्री मार्गों से भारत में अरबों रुपयों की नकली 'करेंसी' खपाने,मादक पदार्थों की तस्करी कराने के लिए बाकायदा योजनायें बनाकर ,उन्हें अमल में लाने के लिए दुनिया भर में कुख्यात हैं . भारत से डरे होने के कारण भारत को उसकी सीमाओं पर परेशान करने के लिए पाकिस्तान के हुक्मरान निरंतर अमेरिका और चीन से मुफ्त में प्राप्त हथियारों का जखीरा और उन्नत तकनीकि प्राप्त करते रहते हैं .निसंदेह अमेरिका और चीन के आपसी सम्बन्ध कभी सामान्य नहीं रहे किन्तु वैश्वीकरण,उदारीकरण और बाजारीकरण के अधुनातन दौर में भारत की उभरती संभावनाओं से आक्रान्त होकर ये दोनों वीटो धारक शक्तिशाली राष्ट्र भारत को एक विशाल बाज़ार के रूप में इस्तेमाल करते रहने की चाहत तो रखते हैं किन्तु इसके साथ-साथ पाकिस्तान स्थित भारत विरोधी तत्वों के बारे में मौन रहते हैं . यदि उन्हें ओसामा-बिन-लादेन से या अल-कायदा से परेशानी थी या है तो वे आधी रात को बिन बुलाये मेहमान की तरह ड्रोन हमलों से पाकिस्तान की संप्रभुता का चीर हरण करते हुए उसके घर में घुसकर मार सकते हैं . यदि दाउद या हाफिज सईद भारत को बर्बाद करने के लिए पाकिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल कर रहे हैं और भारत उसके प्रतिकार का कोई कदम उठाता है तो भारत को संयम वरतने की सलाह दी जाती है . यदि भारत कोई कठोर कदम उठाता है तो पाकिस्तान के पक्ष में अमेरिका और चीन दो-दो शक्तिशाली राष्ट्र वीटो स्तेमाल करने को मौजूद हैं , जबकि भारत का सुख-दुःख में साथ देने वाला एकमात्र मित्र राष्ट्र 'सोवियत संघ ' अब नहीं रहा . उसकी जगह जो पन्द्रह देशों का ढुलमुल फेडरेशन है उसमें आज का 'रूस ' भारत की कोई खास मदद नहीं कर सकता .
निसंदेह पश्चिमी देश भारत को एक खतरे के रूप में तो नहीं देखते किन्तु वे चीन के विराट भाग्योदय से आक्रान्त हैं . चूँकि चीन की सैन्य शक्ति लगातार बिकराल होती जा रही है और अमेरिका सहित तमाम गैर साम्यवादी पूँजीवादी राष्ट्र चाहते हैं की भारत बलि का बकरा बने याने चीन का मुकबला करे . उधर चीन के वर्तमान नेतत्व की समझ है की आधुनिक नव-उदारवादी दुनिया के बाज़ार में भारत उनका प्रमुख प्रतिद्वंदी या प्रतिश्पर्धि है . लगता है कि न केवल वैश्विक बाज़ार में अपितु सीमाओं के विवाद पर चीन ने भारत को घेरने की जो रणनीति बना रखी है उसमें पाकिस्तान उसका सबसे बड़ा 'मोहरा ' है . पाकिस्तान की आज़ादी पसंद -अमनपसंद आवाम को भारत से सनातन शत्रुता को मोह त्यागना होगा वरना भारत के साथ 'सनातन संघर्ष ' में पाकिस्तान का असितत्व ही समाप्त हो जाएगा . भारत का तो जितना बिगड़ना था सो बिगड़ लिया अब तो पाकिस्तान की बारी है . उसे ' चीन के इस झांसे में नहीं आना चाहिए कि "दुश्मन का दुश्मन दोस्त हुआ करता है "
निसंदेह भारत को चीन और पाकिस्तान के नापाक गठजोड़ से जूझना पड़ रहा है . भारत के नीति निर्माता -केंद्र सरकार ,संसद ,सेनायें और 'जनता ' सजग हैं कि देश को अनावश्यक युद्ध की विभीषिका से जितना संभव हो बचाया जाए . भारत में जिम्मेदार राजनीतिक पार्टियां और विपक्ष भी अपने पड़ोसी राष्ट्रों की काली करतूतों से वाकिफ है और संकट की अवस्था में सत्ता और विपक्ष तथा पूरा भारत एक जुट मुकाबले के लिए तैयार है भारत को अपनी सामरिक क्षमता और ' प्रथम आक्रमण न करने के सिद्धांत ' पर पूरा यकीन है किन्तु देश में कुछ जज्वाती लोग हैं जो 'खून का बदला खून ' या १ ९ ७ १ की तरह भारत विजय के लिए लालायित हैं उन्हें सब्र करना ही होगा क्योंकि इस दौर में बात सिर्फ तोप - तमंचे की नहीं बात ' एटम बम , हाइड्रोजन बम ,नापाम बम . की भी इस दौर में फितरत है . भले ही चीन और पाकिस्तान को इनके इस्तमाल से दुनिया रोक ले किन्तु 'आतंकवादियों ' को कौन रोक सकता है . उन्हें रोकने का उपाय एक ही है केवल 'अमन पसंद आवाम ' के सामूहिक प्रतिरोध से ही उन्हें रोक जा सकता है .
इन नापाक इरादों को भारत में तब तक सफलता नहीं मिल सकती जब तक कि उन्हें भारतीय सरजमीं से मदद न मिल जाए अर्थात जब तक भारत के ही कुछ गैर जिम्मेदार -स्वार्थी या लापरवाह तत्व पाकिस्तान रुपी कुल्हाड़ी के 'बैंट ' नहीं बन जाते तब तक पाकिस्तान के नापाक तत्व भारत का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते . कहावत है कि साँप इंसान को डर के कारण डस लेता है ,पाकिस्तान भी भारत से डरता है और इसीलिये वह भारत को सदैव काटने को आतुर रहता है .
कभी अफगानिस्तान स्थित भारतीय दूतावास पर पाक प्रशिक्षित तालिवानियों का हमला, कभी कारगिल पर हमला ,कभी पूंछ -राजोरी में भारतीय सीमाओं में घुसपेठ और भारतीय नागरिकों या फौजियों की छिपकर जघन्य ह्त्या ये तमाम हमले एकतरफा हैं और भारत के खिलाफ पाकिस्तान की दुर्दांत सेना के परोक्ष आक्रमण का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं . भारतीय रणनीतिकार , सेन्य विशेष्ज्ञय और सेना यह सब जानते हैं किन्तु भारत सरकार "युद्ध नहीं शान्ति चाहिए " के सिद्धान्त का पालन करने को वचनबद्ध है . क्योंकि सीमित युद्ध की अवस्था में तो भारत किसी भी मोर्चे पर पाकिस्तान को शिकस्त दे सकता है किन्तु पाकिस्तान को मिल रहे अमेरिकी संरक्षण और चीनी प्रश्रय से मामला जटिल हो गया है . इसीलिये भारत को फूंक -फूंक कर कदम बढाने होते हैं . इस स्थिति में भारत को पाकिस्तान के जमुहुरियतपसंद लोगों की संवेदनाओं का ध्यान भी रखना होता है क्योंकि समूचा पाकिस्तान पाप का घड़ा नहीं है . पाकिस्तान में मुठ्ठी भर आतंकवादी और जंगखोर अवश्य हैं किन्तु भले और नेक इंसानों की कमी वहाँ पर भी नहीं है .पाकिस्तान के करोड़ों मजदूर -किसान और व्यापारी न तो किसी से युद्ध चाहते हैं और न वे आतंकवाद के समर्थक हैं वे हम भारतीयों जैसे ही सहिष्णु और 'धर्मभीरु' हैं किन्तु उन्हें पाकिस्तानी फौज की गुलामी से छुटकारा अभी तक नहीं मिल पाया है . खुदा खेर करे …!
सभी पाकिस्तानी युद्धखोर हैं या आतंकवादी है यह तो कोई भी नहीं कहता . आम तौर पर भारत -पाकिस्तान की जनता का 'साझा इतिहास' और साझी विरासत है दोनों मुल्कों में अमनपसंद और जम्हूरियत पसंद लोगों का ही बहुमत है . दोनों ही मुल्कों में इंसानियत के ,भाईचारे के और आर्थिक मसलों की अन्योन्याश्रित आत्मनिर्भरता के पैरोकार मौजूद हैं . फर्क सिर्फ इतना है कि भारत में कोई भी, किसी की भी ,कभी भी, कहीं भी, खुलकर आलोचना ,भर्त्सना ,निंदा या समीक्षा कर सकता है किन्तु पाकिस्तान में लोकतंत्र अभी सेना के बूटों तले कराह रहा है , वहाँ कोई भी पाकिस्तानी नागरिक फौजी जनरलों के खिलाफ , आतंकवादियों के खिलाफ , हाफिज सईद के खिलाफ नहीं बोल सकता . भारत के पक्ष में बोलने बाले पाकिस्तानी को ज़िंदा नहीं छोड़ा जाता . हम भारत के लोग बहुत सौभाग्य शाली है कि हमारे देश में कम से कम बोलने -लिखने और पढने पर उतनी पाबंदी नहीं है जितनी पाकिस्तान में है . सीमाओं पर भारतीय जवानों की नृशंस ह्त्या पर यदि भारत का रक्षा मंत्री कहता है कि 'हत्यारे आतंकवादी थे' तो इस पर इतना शोर मचाने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि यदि पाकिस्तानी फौज ने[ जैसा कि बाद के बयान में रक्षा मंत्री ने कहा ] ही हमारे सेनिकों की ह्त्या की है तो उसमें गलत क्या है ? पाकिस्तानी फौज तो दुनिया की सबसे बड़ी आतंकवाद की ही जननी है जिसका बाप 'कट्टरवाद' है और 'फायनल डेस्टिनेशन ' महा विनाश है …!
श्रीराम तिवारी
वर्तमान दौर की आर्थिक-वैदेशिक और सामरिक नीति को चूँकि यूपीए और एनडीए दोनों का वरद हस्त प्राप्त है अतएव देश के ये दोनों बड़े राजनैतिक समूह और उनका नेतत्व करने वाले बड़े दल कांग्रेस और भाजपा भी इस हालात के लिए जिम्मेदार हैं . इन दोनों में से सत्ता में कौन है इससे व्यवस्था की सडांध पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता . देश को रसातल में ले जाने के लिए यह 'आर्थिक उदारीकरण ' की पूँजीवादी नीति ही प्रमुखत : जिम्मेदार है . इसके चलते देश के बाहर की ताकतें तिजारत के बहाने भारतीय रक्षा तंत्र में अन्दर तक घुसपेठ कर चुकी हैं . आधुनिक सूचना एवं संचार क्रांति के फलस्वरूप हमारे दुश्मनों को देश की सामरिक तैयारियों की समस्त सूचनाएं मुफ्त में मिल रहीं हैं . हमारे जवान कहाँ कब कितनी संख्या में पहुँच रहे हैं इसकी जानकारी दुश्मन को पहले से ही उपलब्ध है तो सीमाओं पर हमारे जाबाँज सेनिकों का बलिदान कैसे रुक सकता है? बाह्य और आंतरिक संघर्ष के कारण भारत न तो गरीबी से लड़ पा रहा है , न तो सही ढंग से आधुनिकीकरण कर पा रहा है और न ही चीन या पाकिस्तान को मुँह तोड़ जवाव दे पा रहा है . जिस देश का रक्षा मंत्री एक जग जाहिर सूचना देने में तीन दिन लगा दे और जिस देश के विपक्षी संसद ही न चलने दे उस देश का केवल 'भगवान्' ही मालिक है . इन हालातों में ये उम्मीद करना कि अमेरिका की तर्ज पर पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों का नामोनिशान मिटा दो यह केवल' मौसमी बतरस ' के सिवाय कुछ नहीं है.
वेशक पड़ोसी देशों के अन्दर भी अनेक चुनौतियां हैं . पाकिस्तान में भी हर जगह मारकाट मची है , उनकी अर्थ व्यवस्था बदहाल है . गरीबो, मेंहगाई और क्षेत्रीयता से पाकिस्तान बजबजा रहा है . आतंकवाद परवान चढ़ा है . अमेरिका चीन और सउदी अरब से जो मदद मिलती है वो पाकिस्तान की आदमखोर -जंगखोर सेना के दोजख में समा जाती है . दुनिया जानती है कि भारत की सीमाओं पर पाकिस्तान को कोई ख़तरा नहीं है किन्तु भारत का हौआ खडा किये बिना उसे सउदी अरब , चीन तथा अमेरिका से मदद नहीं मिल सकती . पाकिस्तान का भारत पर निरंतर आक्रमण करते रहना उसकी इसी भिखमंगेपन की वजह है . इसी तरह चीन भी तिब्बत के अलगाव वादियों को -दलाई लामा को भारत में शरण दिए जाने से हमेशा खुन्नस से भरा रहता है , हालंकि वो जानता है कि भारत से उसे कोई ख़तरा नहीं क्योंकि उसकी सैन्य तयारियाँ भारत से दस गुना ज्यादा हैं . चीन के सापेक्ष भारत को प्रवाह के विपरीत तैरना पड़ रहा है . चीन ने दो-दो मोर्चे एक साथ भारत के खिलाफ खोल रखे हैं . एक सीमाओं पर और दूसरा व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में . आर्थिक विकाश की दौड़ में भारत से आगे बने रहने के चक्कर में वो सीमाओं का विवाद वनाये रखना चाहता है . इसीलिये कभी कभार उसके फौजी झंडा डंडा लेकर भारत की सीमा में घुस आते हैं . भारत की सेनाओं को अपने देश के लोकतंत्रात्मक विधान के आदेश पर सीमाओं पर अनुशाशन बनाए रखना आता है . जबकि पाकिस्तान और चीन की फौजें बेलगाम हैं और उन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं हैं . ऐंसे असभ्य और बर्बर - पागलों से घिरे होने के वावजूद भारत अपना आपा नहीं खोता जब तक कि पानी सर से ऊपर न गुजर जाए . क्योंकि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा और वास्तविक लोकतंत्र है . पाकिस्तान का लोकतंत्र तो पाकिस्तानी फौज के बूटों तले सिसकता रहता है और चीन में तो लोकतंत्र शब्द ही वर्जित है . लोकतंत्र क्या है इसे जानने के लिए दुनिया भारत की ओर देखती है. दुनिया को पाकिस्तान और चीन से तो सिर्फ युद्ध की दुर्गन्ध ही हासिल होगी . पाकिस्तान में अमन रहे ,पाकिस्तान में लोकतंत्र रहे यह पाकिस्तान के हक़ में है किन्तु उसे यह तभी नसीब होगा जब वो अपने पड़ोस में एक लोकतांत्रिक और सहिष्णु राष्ट्र के रूप में भारत की कद्र करना सीखे . केवल १ ९ ७ १ के बँगला देश मुक्तिसंग्राम की पराजय के दंश से प्रेरित होकर भारत से स्थाई बैर रखना पाकिस्तान के भी हित में कदापि नहीं है .
यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों ने ,पाकिस्तान की आर्मी ने और पाकिस्तान की कुख्यात आई एस आई ने भारत के खिलाफ अनवरत 'युद्ध' छेड़ रखा है . वे केवल कश्मीर के अलगाव वादियों , छग के नक्सलवादियों के मददगार या मुम्बई के हमलावरों के सरपरस्त या सीमाओं पर भारतीय फौजियों की धोखे से हत्या करने वालों के 'आका' ही नहीं हैं; बल्कि वे नेपाल के रास्ते ,राजस्थान के रास्ते ,खाड़ी देशों के रास्ते ,कश्मीर के रास्ते व् समुद्री मार्गों से भारत में अरबों रुपयों की नकली 'करेंसी' खपाने,मादक पदार्थों की तस्करी कराने के लिए बाकायदा योजनायें बनाकर ,उन्हें अमल में लाने के लिए दुनिया भर में कुख्यात हैं . भारत से डरे होने के कारण भारत को उसकी सीमाओं पर परेशान करने के लिए पाकिस्तान के हुक्मरान निरंतर अमेरिका और चीन से मुफ्त में प्राप्त हथियारों का जखीरा और उन्नत तकनीकि प्राप्त करते रहते हैं .निसंदेह अमेरिका और चीन के आपसी सम्बन्ध कभी सामान्य नहीं रहे किन्तु वैश्वीकरण,उदारीकरण और बाजारीकरण के अधुनातन दौर में भारत की उभरती संभावनाओं से आक्रान्त होकर ये दोनों वीटो धारक शक्तिशाली राष्ट्र भारत को एक विशाल बाज़ार के रूप में इस्तेमाल करते रहने की चाहत तो रखते हैं किन्तु इसके साथ-साथ पाकिस्तान स्थित भारत विरोधी तत्वों के बारे में मौन रहते हैं . यदि उन्हें ओसामा-बिन-लादेन से या अल-कायदा से परेशानी थी या है तो वे आधी रात को बिन बुलाये मेहमान की तरह ड्रोन हमलों से पाकिस्तान की संप्रभुता का चीर हरण करते हुए उसके घर में घुसकर मार सकते हैं . यदि दाउद या हाफिज सईद भारत को बर्बाद करने के लिए पाकिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल कर रहे हैं और भारत उसके प्रतिकार का कोई कदम उठाता है तो भारत को संयम वरतने की सलाह दी जाती है . यदि भारत कोई कठोर कदम उठाता है तो पाकिस्तान के पक्ष में अमेरिका और चीन दो-दो शक्तिशाली राष्ट्र वीटो स्तेमाल करने को मौजूद हैं , जबकि भारत का सुख-दुःख में साथ देने वाला एकमात्र मित्र राष्ट्र 'सोवियत संघ ' अब नहीं रहा . उसकी जगह जो पन्द्रह देशों का ढुलमुल फेडरेशन है उसमें आज का 'रूस ' भारत की कोई खास मदद नहीं कर सकता .
निसंदेह पश्चिमी देश भारत को एक खतरे के रूप में तो नहीं देखते किन्तु वे चीन के विराट भाग्योदय से आक्रान्त हैं . चूँकि चीन की सैन्य शक्ति लगातार बिकराल होती जा रही है और अमेरिका सहित तमाम गैर साम्यवादी पूँजीवादी राष्ट्र चाहते हैं की भारत बलि का बकरा बने याने चीन का मुकबला करे . उधर चीन के वर्तमान नेतत्व की समझ है की आधुनिक नव-उदारवादी दुनिया के बाज़ार में भारत उनका प्रमुख प्रतिद्वंदी या प्रतिश्पर्धि है . लगता है कि न केवल वैश्विक बाज़ार में अपितु सीमाओं के विवाद पर चीन ने भारत को घेरने की जो रणनीति बना रखी है उसमें पाकिस्तान उसका सबसे बड़ा 'मोहरा ' है . पाकिस्तान की आज़ादी पसंद -अमनपसंद आवाम को भारत से सनातन शत्रुता को मोह त्यागना होगा वरना भारत के साथ 'सनातन संघर्ष ' में पाकिस्तान का असितत्व ही समाप्त हो जाएगा . भारत का तो जितना बिगड़ना था सो बिगड़ लिया अब तो पाकिस्तान की बारी है . उसे ' चीन के इस झांसे में नहीं आना चाहिए कि "दुश्मन का दुश्मन दोस्त हुआ करता है "
निसंदेह भारत को चीन और पाकिस्तान के नापाक गठजोड़ से जूझना पड़ रहा है . भारत के नीति निर्माता -केंद्र सरकार ,संसद ,सेनायें और 'जनता ' सजग हैं कि देश को अनावश्यक युद्ध की विभीषिका से जितना संभव हो बचाया जाए . भारत में जिम्मेदार राजनीतिक पार्टियां और विपक्ष भी अपने पड़ोसी राष्ट्रों की काली करतूतों से वाकिफ है और संकट की अवस्था में सत्ता और विपक्ष तथा पूरा भारत एक जुट मुकाबले के लिए तैयार है भारत को अपनी सामरिक क्षमता और ' प्रथम आक्रमण न करने के सिद्धांत ' पर पूरा यकीन है किन्तु देश में कुछ जज्वाती लोग हैं जो 'खून का बदला खून ' या १ ९ ७ १ की तरह भारत विजय के लिए लालायित हैं उन्हें सब्र करना ही होगा क्योंकि इस दौर में बात सिर्फ तोप - तमंचे की नहीं बात ' एटम बम , हाइड्रोजन बम ,नापाम बम . की भी इस दौर में फितरत है . भले ही चीन और पाकिस्तान को इनके इस्तमाल से दुनिया रोक ले किन्तु 'आतंकवादियों ' को कौन रोक सकता है . उन्हें रोकने का उपाय एक ही है केवल 'अमन पसंद आवाम ' के सामूहिक प्रतिरोध से ही उन्हें रोक जा सकता है .
इन नापाक इरादों को भारत में तब तक सफलता नहीं मिल सकती जब तक कि उन्हें भारतीय सरजमीं से मदद न मिल जाए अर्थात जब तक भारत के ही कुछ गैर जिम्मेदार -स्वार्थी या लापरवाह तत्व पाकिस्तान रुपी कुल्हाड़ी के 'बैंट ' नहीं बन जाते तब तक पाकिस्तान के नापाक तत्व भारत का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते . कहावत है कि साँप इंसान को डर के कारण डस लेता है ,पाकिस्तान भी भारत से डरता है और इसीलिये वह भारत को सदैव काटने को आतुर रहता है .
कभी अफगानिस्तान स्थित भारतीय दूतावास पर पाक प्रशिक्षित तालिवानियों का हमला, कभी कारगिल पर हमला ,कभी पूंछ -राजोरी में भारतीय सीमाओं में घुसपेठ और भारतीय नागरिकों या फौजियों की छिपकर जघन्य ह्त्या ये तमाम हमले एकतरफा हैं और भारत के खिलाफ पाकिस्तान की दुर्दांत सेना के परोक्ष आक्रमण का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं . भारतीय रणनीतिकार , सेन्य विशेष्ज्ञय और सेना यह सब जानते हैं किन्तु भारत सरकार "युद्ध नहीं शान्ति चाहिए " के सिद्धान्त का पालन करने को वचनबद्ध है . क्योंकि सीमित युद्ध की अवस्था में तो भारत किसी भी मोर्चे पर पाकिस्तान को शिकस्त दे सकता है किन्तु पाकिस्तान को मिल रहे अमेरिकी संरक्षण और चीनी प्रश्रय से मामला जटिल हो गया है . इसीलिये भारत को फूंक -फूंक कर कदम बढाने होते हैं . इस स्थिति में भारत को पाकिस्तान के जमुहुरियतपसंद लोगों की संवेदनाओं का ध्यान भी रखना होता है क्योंकि समूचा पाकिस्तान पाप का घड़ा नहीं है . पाकिस्तान में मुठ्ठी भर आतंकवादी और जंगखोर अवश्य हैं किन्तु भले और नेक इंसानों की कमी वहाँ पर भी नहीं है .पाकिस्तान के करोड़ों मजदूर -किसान और व्यापारी न तो किसी से युद्ध चाहते हैं और न वे आतंकवाद के समर्थक हैं वे हम भारतीयों जैसे ही सहिष्णु और 'धर्मभीरु' हैं किन्तु उन्हें पाकिस्तानी फौज की गुलामी से छुटकारा अभी तक नहीं मिल पाया है . खुदा खेर करे …!
सभी पाकिस्तानी युद्धखोर हैं या आतंकवादी है यह तो कोई भी नहीं कहता . आम तौर पर भारत -पाकिस्तान की जनता का 'साझा इतिहास' और साझी विरासत है दोनों मुल्कों में अमनपसंद और जम्हूरियत पसंद लोगों का ही बहुमत है . दोनों ही मुल्कों में इंसानियत के ,भाईचारे के और आर्थिक मसलों की अन्योन्याश्रित आत्मनिर्भरता के पैरोकार मौजूद हैं . फर्क सिर्फ इतना है कि भारत में कोई भी, किसी की भी ,कभी भी, कहीं भी, खुलकर आलोचना ,भर्त्सना ,निंदा या समीक्षा कर सकता है किन्तु पाकिस्तान में लोकतंत्र अभी सेना के बूटों तले कराह रहा है , वहाँ कोई भी पाकिस्तानी नागरिक फौजी जनरलों के खिलाफ , आतंकवादियों के खिलाफ , हाफिज सईद के खिलाफ नहीं बोल सकता . भारत के पक्ष में बोलने बाले पाकिस्तानी को ज़िंदा नहीं छोड़ा जाता . हम भारत के लोग बहुत सौभाग्य शाली है कि हमारे देश में कम से कम बोलने -लिखने और पढने पर उतनी पाबंदी नहीं है जितनी पाकिस्तान में है . सीमाओं पर भारतीय जवानों की नृशंस ह्त्या पर यदि भारत का रक्षा मंत्री कहता है कि 'हत्यारे आतंकवादी थे' तो इस पर इतना शोर मचाने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि यदि पाकिस्तानी फौज ने[ जैसा कि बाद के बयान में रक्षा मंत्री ने कहा ] ही हमारे सेनिकों की ह्त्या की है तो उसमें गलत क्या है ? पाकिस्तानी फौज तो दुनिया की सबसे बड़ी आतंकवाद की ही जननी है जिसका बाप 'कट्टरवाद' है और 'फायनल डेस्टिनेशन ' महा विनाश है …!
श्रीराम तिवारी
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