सांस्कृतिक ,साहितियक ,आर्थिक ,सामाजिक ,राजनेतिक धार्मिक और एतिहासिक इत्यादि विमर्शों पर आम तौर से तीन प्रमुख विचारधाराएँ परिलक्षित होतीं हैं .एक -दक्षिणपंथी कट्टरवादी -हिन्दुत्ववादी या प्रतिक्रियावादी ,दो -वामपंथी -वैज्ञानिक -भौतिकवादी या प्रगतिवादी .तीन -माध्यम मार्गी या यथास्थितिवादी .इनके अलावा भी अन्य ढेरों -व्यक्तिवादी ,अलगाववादी ,जातीयतावादी ,क्षेत्रीयतावादी ,भाषावादी ..छोटे -छोटे वरसाती नाले जैसे यदा- कदा उपरोक्त तीन प्रमुख धाराओं में डूबते -तैरते रहते हैं .सोवियत पराभव के कारण विश्व का संतुलन एक ध्र्वीय हो जाने से न केवल भारत अपितु सारे विश्व कि गैर वामपंथी विचारधाराओं ने विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष कि जद में आकर अपना उदारवादी -जनकल्याणकारी मुखौटा उतार फेंका वामपंथ को छोड़कर प्राय्ह सभी विचारधाराओं का स्खलन हो चुका है .यही वजह है कि भारत के समाजवादी एक झटके में विचारधारा छोड़ -लालू -मुलायम -नितीश या रामविलास पासवान हो गए .कांग्रेश भी समाजवादी -लोकाकल्यान्वादी मिश्रित अर्थ व्यवस्था छोड़ नेहरु -गाँधी परिवारवाद में जाकर विलीन हो गई .जिस जनसंघ ने १९७७ में साम्प्रदायिकता छोड़कर जनता पार्टी में मुख्यधारा का ऐलान किया था ,जिस भाजपा ने १९८० में बॉम्बे स्थापना अधिवेशन में गांधीवादी समाजवाद का ऐलान किया था वो अब नाथूराम गोडसे के भूत का अड्डा वन चुकी है ...वही भूत कभी गोविदाचारी - प्रमोद महाजन को सताता था ,कभी उमा भारती को .कभी अरुण शौरी को और अब श्रीमान सुदर्शन महाराज के सर पर .....मी नाथूराम गोडसे वोल्तोय .......
भारत ही नहीं बल्कि संभवतः चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के वाद राष्टीय स्वयमसेवक संघ दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा जन संगठन है .संघ का घोषित अजेंडा ,साध्य ,साधन और उसके उपादानो पर देश और दुनिया के तमाम लोग सहमत नहीं हैं , में भी सहमत नहीं था , फिर भी वह अभी कल तक मेरे जैसे प्रगतिशील किन्तु साधारण हिदू -ब्राह्मण को भी कहीं न कहीं देशभक्ति पूर्ण सा आभासित होता था . श्री सुदर्शन कि श्रीमती सोनिया गाँधी पर अश्लील टिपण्णी तक भी संघ का चेहरा श्री मोहन भगवत जैसा ही लगता था किन्तु कल जो मध्यप्रदेश में हुआ वह आपातकाल से भी ज्यादा क्रूरतम और वीभत्स था ,भाजपा +संघ +पोलिस +गुंडे ...सबके सब निर्दोष राहगीरों को कांग्रेसी समझकर बुरी तरह पीट रहे थे रक्षक ही भक्षक हो चुके हैं ,किसको अपनी व्यथा सुनाएँ ...हिंदुत्व के अलमबरदार हिन्दुओं को ही - सिर्फ ये समझकर कि वे कांग्रेसी हो सकते हैं -पोलिस कि आँखों के सामने कानून को टाक पर रखकर जो दर्शा रहे थे उससे में अब तक भयभीत हूँ .इन्स्सन यदि क़ानून के राज्य में यकीन न करे ,गिरोह कि शक्ल में तलवारें और डंडे लेकर जनता पर पिल पड़ें ,मुख्यमंत्री शहर में होते हुए भी मूक दर्शक बना रहे तो इस स्थिति में प्रतिक्रिया न हो यह कैसे संभव है .अनुशाशन के खोल से संघ कि मुंडी बाहर आ चुकी है .क्या यही वतन परस्ती का दावा करने वालों कि असल तस्वीर है ?ये तो सड़क छाप संघियों कि तस्वीर थी ..बड़े वाले संघी भी उनसे बड़े होना ही चाहिए सो उनके बयानों कि बदगुमानी सारे मीडिया ने और सारे संसार ने द्रेख ली है .
सुदर्शन के बयान के बाद जो कांग्रेसी सोनिया भक्ति दिखा रहे थे .प्रदर्शन करने सड़क पर आ भी गए तो क्या भाजपा के शाशन में अपनीशांतिपूर्ण तरीके से प्रतिक्रिया देना प्रतिबंधित है ,यदि ऐसा है तो फासिस्ट सावित करने के लिए और क्या प्रमाण चाहिए ? यदि संघी समझ रहें हैं कि झूठे -अश्लील आरोप भी लगाएं और लोग अपनी जुबान बंद रखें तो यह हिटलरशाही भारत कि जनता को मंजूर नहीं .अनुशाशन ,देशप्रेम ,हिंदुत्वके नारों के पीछे और कितने चेहरे संघियों ने छिपा रखें हैं ...आम जनता को जरूर जानना चाहिए...
लेख शिक्षाप्रद है... यशवंत कौशिक
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कौशिक जी... श्रीराम तिवारी
जवाब देंहटाएं"बीरभूम जिले के सचपुर गांव में जुलाई 2000 में तृणमूल कांग्रेस के 11 समर्थकों की हत्या के जुर्म में एक अदालत ने माकपा के 44 समर्थकों और स्थानीय नेताओं को आज उम्र कैद की सजा सुनाई.
जवाब देंहटाएंमारे गए सभी 11 व्यक्ति भूमिहीन किसान थे. अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश विश्वनाथ कोनार ने आज मामले के सभी 44 दोषियों को खचाखच भरे अदालत कक्ष में उम्र कैद की सजा सुनाई. उन्होंने कल सभी 44 लोगों को धारा 302( हत्या), 148 (घातक हथियारों की मदद से दंगा फ़ैलाने) और 149 (गैरकानूनी तरीके से एकत्र होने) के तहत दोषी ठहराया था.
दोषियों में माकपा की जिला परिषद का पूर्व अध्यक्ष नित्य नारायण चटर्जी और माकपा की जिला समिति का सदस्य रामप्रसाद घोष भी हैं. चटर्जी ने हमलावरों की अगुवाई की थी."
वास्तव में वामपंथी बढ़े महान होते है किसानों की ही हत्या कर दी सोचा होगा बंगाल के वामपंथी शासन में भूख से मरे इससे अच्छा इन्हें आसानी से मुक्ति दे दो
सर झुक गया आपकी महानता पर
शैलेंद्र जी, मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है... अपने मेरे आलेख पर कुछ नहीं कहा... एक बासी खबर ज़रूर आपने पता नहीं किस मानसिकता से पीड़ित होकर वॉमिट की... फिर भी आपको अपने घर में जाकर ज़रूर पूछना चाहिए की यदि १०-१२ हथियारबंद गुंडे आपकी मा-बहिन- बहू-बेटी की इज़्ज़त लूटने आपके घर में घुस जाए तो आप क्या करेंगे? आप क़ानून का इंतज़ार करेंगे? आप ईश्वर की स्तुति करेंगे?आप खुद अकेले संघर्ष करते हुए मारे जाएँगे या आप सारे गाव के अन्य शरीफ लोगों को आवाज़ देकर एकजुट संघर्ष करेंगे. जिन्हें आप तृणमूल का बता रहें हैं उन पर पहले से ही सेकड़ों मुक़दमें चल रहे थे... वीरभुमिज़ीला कलेक्टर और एस. पी. पुलिस से आर टी आई के तहत जानकारी माँग लो. जिन बेगुनाहों को उम्र क़ैद हुई है वे सच्चे देशभक्त और बहादुरी के लिए इतिहास में जाने जाएँगे. आप तो नाहक उनके लिए हलकान हो रहें हैं जो इंसानियत के दुश्मन हैं... श्री राम तिवारी
जवाब देंहटाएंश्रीराम जी ये मेरा बयान नहीं है और इसमें आपके प्रिय सच्चे देशभक्त वामपंथियों को हमलावर बताया गया है न कि स्वयं कि रक्षा के लिए उठाया गया हाथ अब आरटीआई का बंगाल में क्या काम, लगता है आपको मालूम नहीं कि बंगाल में वामपंथियों की सरकार है जब वामपंथियों की सरकार है तो वो अपने महान कार्यकर्ताओं के लिए कुछ तो करेंगे ही इसमें बेचारा कलेक्टर और एसपी क्या कर सकता है मैंने तो एक छोटा सी टिप्पणी नीचे की थी आपको बुरी लगी हो तो हटा दे
जवाब देंहटाएंआदरणीय तिवारी जी ने अपने आलेख में संघ(आर एस एस) के चारित्रिक पतन की जो बात कही है वह आंशिक रूप से सही है किंतु सुदर्शन जैसे दो-चार ज़ुबान-फिसलु लोगों के कारण पूरा आर एस एस बदनाम हो रहा है जबकि सभी दलों और संगठनों में यही हालत है. श्री शेलएंद्रा जी की सूचनापरक टिप्पणी पर तिवारी जी को कठोर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहिए थी... रामलाल गो ट्वाल
जवाब देंहटाएंआदरणीय रामलाल जी आपंने मेरा आलेख पढ़ा, टिप्पणी की धन्यवाद. शैलनद्र जी को यदि कोई बात अप्रिय लगी हो तो मुझे खेद है... श्रीराम तिवारी
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