रविवार, 28 नवंबर 2010

.ग्वांगझू एशियाड-२०१० में भारत का प्रदर्शन...

१६ वें  एशियाई खेल -२०१० ,चीन के ग्वांगझू नगर में निर्विघ्न सम्पन्न हुए .जिन भारतीय  खिलाड़ियों ने तमाम बाधाओं ,परेशानियों के  भारत के लिए पदक हासिल किये -वे देश के सर्वश्रेष्ठ सम्मान के हकदार हैं .नई दुनिया के खेल पृष्ठ पर ३६  देशों कि पदक तालिका प्रकाशित कि गई है ,उसमें भारत ६ वें नंबर पर है ये अंतिम स्थिति है और सम्मानजनक है २६ नवम्बर तक मुश्किल से ८-१०  स्वर्ण पदक भारत के खाते में थे ,जबकि चीन ,जापान दक्षिण कोरिया  के खाते में सेकड़ों स्वर्ण पदक कब के आ चुके थे और  उनके खिलाडी आखिरी रोज तक  पदकों कि झड़ी लगा रहे थे .किन्तु भारत के  जावाज खिलाड़ियों ने अपने देशवासियों  को निराश नहीं किया और अंतिम दिन आधा दर्जन स्वर्ण झटककर देश को पदक तालिका में ६ वें स्थान पर ला दिया .इन महान सपूतों को लाल सलाम .
                पिछली बार भारत ८ वें स्थान पर रहा था ,इस बार दो पायदान ऊँचे चढ़ा है , उम्मीद  है कि आगामी  एशियाड में भारत और ऊँचे चढ़ेगा .मेरे इस आशावाद पर घड़ों पानी डालने को आतुर लोगों से निवेदन है कि नर्वश न हों अपनी तुलना चीन जापान या कोरिया से न करे . चीन से तो कतई नहीं क्योंकि पदक तालिका में उसका  नंबर पहला है यह अचरज कि बात नहीं वो तो हर कम्म्युनिस्ट  देश कि फितरत है कि हर चीज में आगे होना -चाहे जो मजबूरी हो  इसीलिये उसके -४१६ पदकों के सामने हमारे ६४ पदक बेहद मायने रखते हैं क्योंकि हम एक महा भृष्ट व्यवस्था में  ,घपलों कि व्यवस्था में ,आरक्षण कि व्यवस्था में ,सिफारिश कि व्यवस्था में  नाकारा -मक्कार नेत्रत्व कि शैतानियत से आक्रांत व्यवस्था में बमुश्किल जीवन घसीट रहे  हैं  ऐसे  में नंगे भूंखे देश के कुछ सपूतों ने अपनी निजी हैसियत से ये ६४ पदक  ,बड़ी कुर्वानी से हासिल किये हैं ...हम उन्हें नमन करते हैं और इन ६४ पदकों को ६४० के बराबर समझते हैं .जिस दिन भारत में साम्यवाद का शाशन होगा .जिस दिन भारत में अम्बानियों ,मोदियों .बिरलाओं और टाटा ओं के इशारों पर चलने वाली सरकार न होकर ,देश के सर्व हारा और महनत कशों के आदेश पर भारत कि शाशन व्यवस्था चलेगी उस दिन भारत भी असिअद और ओलम्पिक में नंबर १ होगा .
               चीन कि बराबरी करने से पूर्व हमें -कजाकिस्तान ,ईरान जापान और कोरिया जैसे  छोटे देशों को मात देनी होगी .तालिका में तो ये हमसे ऊपर है ही  किन्तु इनके खाते में इतने पदक हैं कि भारत उनके सामने नगण्य दीखता है .देश कि जनता को और खेल जगत को  जागना होगा .जानना होगा कि ईरान .ताइपे .कजाकिस्तान और उज्बेग्स्तान जैसे नव स्वाधीन देशों में ऐसा क्या है जो कि भारत जैसे विश्व कि गतिशील दूसरे नंबर कि अर्थ व्यवस्था  वाले सवा सौ करोड़ कि आबादी वाले देश के पास नहीं है .
         १९५१ के प्रथम एशियाई खेलों में हम  दो नंबर पर थे विगत ६० साल में हम कहाँ पहुंचे यह आकलन  भी जरुरी है .मौजदा  दौर में तो कबड्डी को छोड़ बाकी सभी पदक व्यक्तिगत प्रतिभाशाली प्रतिभागियों के एकल प्रयाश का परिणाम कहना गलत नहीं होगा .देश के सत्ता प्रतिष्ठान का योगदान क्या है ?यह संसद में और विधान सभों ओं  में प्रश्न उठाना  चाहए .
       १९५१ में जापान नंबर वन था ,हम दूसरे नंबर पर थे ,अब तक १६  एशियाई खेलों में भारत ने कुल १२८  स्वर्ण पदक हासिल किये हैं चीन तो इससे ज्यदा स्वर्ण एक बार कि स्पर्धा में ही जीत लेता है .हम अपनी आंतरिक और बाह्य परेशानियों के लिए निसंदेह पाकिस्तान  को दोष दे सकते हैं किन्तु किसी खेल प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन से रोकने कि ताकत किसी में नहीं ,और इसके लिए किसी भी बाहरी ताकत को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता . इसके लिए हमें अपनी खेल नीति और शासन व्यवस्था का उत्तर दायित्व सुनिश्चित करना होगा .
          राष्ट्र मंडल खेलों में भारत के पास १०१ पदक थे .एक महीने में ऐसा क्या घाट गया कि जो राष्ट्र मंडल में अर्श पर थे वे खिलाडी ग्वांगझू में फर्श पर जा गिरे .हाकी .निशानेबाजी .तैराकी और कुश्ती इत्यादि में  संतोष जनक प्रदर्शन नहीं देखने को मिला ..भारत १०१ से ६४ पर आ गिरा ...हम आगे बढे हैं  या पीछे चले गए  ये फैसला  आगामी ओलम्पिक में होगा .

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