श्रीमान .बराक हुसेन ओबामा साहिब -भारत तशरीफ़ ला रहे हैं . ६ -नवम्बर २०१० को वे मुंबई प्रवास करेंगे .वे ५ वें अमेरिकी राष्ट्रपति है जो भारत कि सरजमीं पर अपने अ -पावन चरण रखेंगे . मीडिया में उनकी इस यात्रा के बारे में काफी कुछ कहा -सुना ,लिखा -पढ़ा जा रहा है .उनके पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों कि बड़ी चर्चा है .कि वे ताज में ठहरेंगे ,भारत में दीवाली मनाएंगे और भारत कि संसद को संबोधित करेंगे .इत्यादि ..इत्यादि ..
श्री ओबामा का यह भारत आगमन ठीक ऐसे समय में हो रहा है जबकि अमेरिकी पूंजीवादीअर्थ तन्त्र के शिल्पकार न केवल अपनी अस्मत अपितु रोजी रोटी कि चिंता में यूरोप को भी शामिल करते हुए उस सर्वग्रासी आर्थिक संकट के जुए का अतिरिक्त भार भारत जैसे विकाशशील देशों के कन्धों पर डालने कि प्लानिंग में रात -दिन जुटे हुए हैं . इससे पूर्व जनाब बुश साहब कि जागतिक -आक्रामक साम्र्ज्वादी नीति से लहू लुहान अमेरिकी जनता ने देमोक्रट्स प्रत्यासी मिस्टर ओबामा को इस आशा से चुना था कि वे अमेरिकी छतरी के नीचे तात्कालिक वित्तीय अमन कायम करें .सो वे यही प्रयास सफल बनाने के लिए अपने साथ १५० टॉप पूंजीपतियों का विशाल काफिला लेकर भारत पधार रहें
भारत के खिलाफ अमेरिकी कूट षड्यंत्रों कि कलुषित स्याही से अतीत का हिस्सा बेहद बदरंग हो चुका है .अब इस काली कंबली पर दूजा रंग चढ़ाये जाने के असफल प्रयाश किये जा रहे हैं .श्री ओबामा क़ी नीति शुरू से ही भारत विरोधी रही है .सूचना प्रोद्दोगिकी क्षेत्र में उन्होंने अमेरिकी नौजवानों को नौकरियां देने के बहाने भारत जैसे देशों क़ी आउट सोर्सिंग बंद करदेने का आह्वान कई दफे किया है .अब वे वीजा क़ी फीस बढाने क़ी बात करने लगे हैं .उधर G -७ओर जी २० के मध्य हुए पर्यवार्नीय करारों और आयात शुल्क में क़ी जा रही एकतरफा बढ़ोत्तरी को अनुपात मुक्त किये जाने को लेकर चीनऔर ओपेक देशों द्वारा किये जा रहे एकतरफा अवरोधों पर अमेरिका का कोई वश नहीं चल पा रहा है . लगता है क़ी जमाने भर क़ी वैश्विक इमानदारी का ठेका हमने {भारत}ही ले रखा है
कोई अदना सा साक्षर व्यक्ति भी इन मंतव्यों के निहितार्थ समझ सकता है .जैसे क़ी इन क़दमों से भारत में वेरोजगारी बढ़ेगी ,भारतीय सूचना एवं तकनीकी कम्पनियों से बाज़ार जाता रहेगा ,उनके राजस्व में गिरावट का परिणाम होगा छटनी और बेकारी .श्री ओबामा के साथ जो १५० कम्नियों के C E O आ रहे हैं वे सभी बहुरास्ट्रीय कम्पनियों के मालिक में से ही हैं .वे सभी मिलकर भारत सरकार पर दवाव बनायेंगे क़ी आर्थिक सुधार ?{विनाश }क़ी प्रक्रिया तेज करो ताकि अमेरिकी शेष सब प्राइम संकट का कुछ हिस्सा भारत भी वहन करे .भारत को ऐसा क्यों करना चाहिए ? वैसे भारत में धन धान्य क़ी प्रचुरता के वावजूद ६० करोड़ नंगे भून्खों क़ी विशाल मर्मान्तक भीड़ मौजूद है .ऐसा क्यों ?यह प्रश्न करना भी अब दूभर बना दिया गया है .पीड़ित जनता चुप रहे ,रूखी सूखी खाय कें खुश रहे ,"संतोषम परम सुखं "का शंखनाद करे सो सारे देश में मक्कार -मसखरे -निठ्ल्ल्ये बाबाओं को खाद पानी दिया जा रहा है .कोई मंदिर बाला बाबा है ,कोई मस्जिद बाला कोई जड़ी वूटी बाला और कोई योगासन वाला .सारा निम्न माध्यम वर्ग अपनी चिंताओं का निदान प्राण -अपान-व्यान -उदानऔर सामान में देखने लगा है ...
सरकारी सार्वजानिक उपक्रमों को खरीदने आ रहे विदेशी मुनाफाखोर भारत क़ी धरती पर दीवाली मनाएंगे .हम और हमारे तमाम सूचना माध्यम सिर्फ उन्हें देखेंगे -पढेंगे -सुनेंगे और अच्छे अनुशाषित छात्र क़ी तरह यस सर बोलेंगे .
इकवाल ने ७० साल पहले ही चेता दिया था ...
वतन क़ी फ़िक्र कर नादाँ मुसीवत आने वाली है ....
तेरी बर्वादियों के मशविरे हैं आसमानों में .....
न संभलोगे तो मिट जाओगे ,हिन्दोस्तान वालो ...
तुम्हारी दास्तान तक भी न होगी दस्तानो में ......
सभी मित्रों ,सपरिजनों ,ब्लोगरों पाठकों तथा साहित्यकारों को दीपावली -प्रकाश पर्व क़ी शुभकामनायें .....श्रीराम तिवारी
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