शनिवार, 6 नवंबर 2010

जो हमने दास्तान अपनी सुनाई ... तो आप क्यों रोए ?

 द्वतीय महायुध्य  के बाद दुनिया दो खेमों में बट गई थी .एक का नेत्रत्व अमेरिका के पास था .दूसरे का सोविएत संघ पैरोकार था .दोनों का अपना विशिष्ठ दर्शन था .अमेरिका को उसके पूंजीवादी अर्थतंत्र में विकाश कि सफलताएं मिलती जा रहीं थीं .उधर सोवियत रूस ,चीन , क्यूबा ,वियेतनाम ,कोरिया . जर्मनी ,पोलैंड और युगोस्लाविया जैसे कई देश समाजवादी विचारधारा को अपनाते हुए तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे .रूस तो अमेरिका से पहले अन्तरिक्ष में जा पहुंचा .धरती से ..चाँद पर पहला कदम रखने वाले युरी गागरिन और नील आर्मस्ट्रोंग  सोवियत क्रांती  को चमत्कृत करने वाले हीरो बन चुके थे .अमरीका और उसके पूंजीवादी दोस्तों कि नाक नीची होने से सारी दुनिया के अन्य तठस्थ देश भी लाल झंडे के नीचे आने को आतुर हो गए .इनमें भारत जैसे नव स्वाधीन देश भी थे . आजादी के पूर्व से ही भारत कि जनता का झुकाव समाजवाद कि ओर था .स्वाधीनता के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व ने गुट निरपेक्षता और प्रजातंत्र कि ,पूंजीवाद +समाजवाद कि खिचड़ी =मिश्रित अर्थ व्यवस्था को भारत के लिए उत्तम माडल मानकर ,दोनों खेमों से अलग तीसरा मोर्चा अर्थात गुट निरपेक्ष आन्दोलन खड़ा करने में जुगत भिडाई.-नेहरु -टीटो नासिर कि त्रयी को राजनेतिक इतिहास में महानायकों जैसा सम्मान देख अमेरिकी खुफिया एजेंसी कि त्योरियां चढ़ी और इस  आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए भारत के अन्दर से विभीषण खोजे गए .
          हालाँकि  यह काम पहले से ही जारी था ..किन्तु मध्य पूर्व में हस्तक्षेप और ओपेक कि दादागिरी को नकेल कसने के बहाने अमेरिका ने शीत युद्ध कि आड़ में एक तीर से कई निशाने साधे .पहले तो दुनिया के अधिकांस देशों में जैचंद तैयार किये ,फिर कल्याणकारी -सोसल वेल्फैर स्टेट के नाम पर सर्वहारा में फूट डाली ,उन्हें वर्गों -जातियों और साम्प्रदायिकता के द्वन्द में बड़ी चालाकी से उलझा दिया .ऐसे घृणित कार्यों के लिए बाकायदा अमेरिकी सीनेट से बजट मंजूर किये जाते रहे हैं .उन्ही को आधुनिक वनाकर अब अद्द्य्तन रूप में सक्रीय किया जा रहा है .
        यह आम धारणा है कि किसी संप्रभु स्वतंत्र राष्ट्र कि विदेश नीति  -उस राष्ट्र के बहुमत जन -गणों ,शक्तिशाली सामाजिक समूहों के दवाव और प्रभाव से परिचालित होती है .किन्तु अमेरिकी नीति के विशेषज्ञ अब एक्सपोज होते जा रहे हैं .अब यह कोई रहस्य नहीं रह गया कि पेंटागन ,वाल स्ट्रीट  और व्हाईट हाउस  को निर्देशित करने वाली लोबी ,दुनिया भर में विभिन्न राष्ट्रों के आपसी संबंधों में अपने आर्थिक साम्राज्वाद के हितों  को शिद्दत से प्राथमिकता देती है .इनके सलाहकार समूहों में पूर्व राजनयिक और खुर्राट सी आई ये अफसरों कि युति हुआ करती है .अभी  अमेरिकी राष्ट्रपति श्रीमान ओबामा भारत पधारे हैं .उनके आगमन कि पूर्व वेला में भारत और चीन से सम्बंधित एक बयान श्री ब्लैक बिल का आया है .उनके बयान से उक्त तथ्यों कि पुष्टि स्वतः हो जाती है .
         अमेरिका में "कोंसिल आन फारेन रिलसंस"जैसी  कुख्यात संस्था के एक सदस्य श्री -ब्लैक बिल ऐसे अकेले भारत मित्र {?] नहीं हैं .एक ढूढ़ो सेकड़ों मिल जायेंगे .अमेरिका के भारत में पूर्व राजदूत रावर्ट ब्लैक बिल ने फ़रमाया है कि मैं भारत के सामरिक चिंतकों से सहमत हूँ कि चीन भारत के उदय को रोकने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है .उन्होंने ये भी कहा कि इन घटनाओं का ताल्लुक कश्मीर पर चीन कि नीति और पुरातन भारत -चीन  सीमा विवाद है .उनका यह अन्वेषण  कि चीन पकिस्तान  के कंधे पर बन्दुक रखकर दोनों पड़ोसियों को उलझाये रखना चाहता है .सही भी है किन्तु प्रश्न ये है कि फिर ओबामा जी भारत आकर इसमें हमारी मदद कर रहें है या अपने आर्थिक संकट का ठीकरा हमारे सर फोड़ने कि जुगत भिड़ा रहे हैं .चीन का भारत से आगे निकल जाने का हौआ कौन खड़ा कर रहा है ?किसका स्वार्थ सध रहा है ? ब्लैक बिल कि मीठी -मीठी बातों में हमें नहीं आना चाहिए .हमारे प्रधान मंत्री जी ने विगत मुलाकात में चीन के प्रधान मंत्री वैन च्या पाओ से मुलाकात कर आपसी मसलों पर चर्चा की है .भारत का नेतृत्व हर मामले में स्वयम सक्षम है जरुरत पड़ी तो चीन से सख्ती के साथ भी पेश आ सकते हैं . .भारत को ओबामा से चीन के बारे में  नहीं .बल्कि अमेरिका द्वारा भारत के खिलाफ किये जा रहे अन्याय पर  चर्चा केन्द्रित करनी चाहिए और हेडली जैसे गद्दारों को भारत की अदालत के समक्ष पेश करना चाहिए . सम्भव हो तो पकिस्तान और भारत के बीच संघर्ष टालने की कोशिस करने के लिए कम से कम पकिस्तान स्थित  आतंकवादी शिविर  बंद होने चाहिए .

1 टिप्पणी:

  1. उच्च स्तर के लेख को मैने आसानी से समझने की कोशिश की है, एक ग़ज़ब का लेख.... रामलाल गौटवाल

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