अगम रास्ता -रात अँधेरी ,आ अब लौट चलें .
सहज स्वरूप पै परत मोह कि .तृष्णा मूंग दले .
जिस पथ बाजे मन -रन -भेरी ,शोषण वाण चलें .
नहीं तहां शांति समता अनुशाशन ,स्वारथ गगन जले .
विपथ्गमन कर जीवन बीता ,अब क्या हाथ मले.
कपटी क्रूर कुचली घेरे .मत जा सांझ ढले .
अगम रास्ता रात घनेरी आ अब लौट चलें .
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कदाचित आये प्रलय तो रोकने का दम भी है .
हो रहा सत्य भी नीलाम,महफ़िल में हम भी हैं .
जख्म गैरों ने दिए तो इतराज कम भी हैं
अपने भी हो गए बधिक जिसका रंजो गम भी है
हो गईं राहेंभी खूंखार डूबती नैया मझधार .
मत कर हा -हा -कार .करुण क्रंदन चीत्कार .
सुबह का भूला न भूला गर लौटे सांझ ढले .
अगम रास्ता रात अँधेरी ,आ अब लौट चलें ....
श्रीराम तिवारी ...........
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