आपका संचित ज्ञानकोष चाहे कितना ही समृद्ध क्यों न हो ?यदि आप किसी रोते हुए बच्चे को हँसा नहीं सकते, तो यह आपकी समग्र असफलता है! यदि आप अपने ही सपरिजनों या बुजुर्गों को खुश नहीं कर सकते ,यदि ज्ञानी होने के बावजूद आप खुद सांसारिक खुशियों से महरूम हैं,तो आपका संचित ज्ञानकोष आपके किस काम का? ऐंसे भ्रमात्मक ज्ञान से आप तत्काल मुक्त हो जाइये !
तदुपरांत आप सहज, सरल और तरल जीवन जीने की कोशिश!यदि आप वास्तव में ज्ञानी हैं तो किसी भी व्यक्ति,वस्त अथवा विचार के व्यामोह में पड़े बने,राजा जनक की तरह देह में रहते हुए भी नही रहते, क्योंकि तब आप स्वयं शुद्ध सच्चिदानंद में लीन रहते हुए भी,जगत के सभी सांसारिक कार्य करते हुए,अपने अस्तित्व के अहं का बोझ उतारकर फेंक देते! जय सच्चिदानंद!
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