मुश्किल से गुजरी स्याह रात के बाद,
खुशनुमा एक नयी सुबह आती तो है।
घर के आँगन में हो कोई हरा-भरा पेड़,
तो कभी कभी गौरैया भी गाती तो है।।
जीवन चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो,
भले मानुष को यह धरती सुहाती तो है!!
आभामंडल मंद हो या तीव्र दीप्तिमंत का,
प्रकाशकिरण उसके अंतस में समाती तो है!
लहरें दरिया की हों या महासागर कीं,
उमड़ घुमड़ गंतव्य में समाती तो है!!
आज भले ही मौसम है बदमिजाज कुछ,
किंतु बसंत के आने पर कोयल गाती तो है।
क्रूर निष्ठुर नीरस नागर सभ्यता के इतर,
ग्राम्यगिरा में लोरी की आवाज आती तो है!!
गौरैया,तितली,कोयल,लोरी,भोरका कलरव,
सह्रदय इंसानमें जीनेकी उमंग जगाती तो है।
- श्रीराम तिवारी !
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