बुधवार, 31 जनवरी 2024

सच्चा प्रगतिशील -सच्चा धर्मनिरपेक्ष होता है।

 विगत 22 जनवरी को न केवल अयोध्या,न केवल भारत,बल्कि सारे संसार में जहां कहीं 'श्रीराम' के अनुयाई हैं,वहां जयघोष के साथ दिये जलाये गये। भारतीय सभ्यता,संस्कृति और मानवीय मूल्यों के अलम्बरदार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का भव्य मंदिर बन जाने के बाद सदियों की गुलामी का एहसास तिरोहित हो गया!

विगत 500 वर्षों से शोषित पीड़ित सनातनधर्मी हिंदुओं के मन में तो उनके आराध्य प्रभु श्रीराम प्रतिष्ठत थे ही, किंतु अपने आराध्य प्रभु श्रीराम को टाट पट्टी के झोंपड़े में देखकर उनके मन में अकथनीय आक्रोश था, जो 6 दिसंबर 1992 में लावा बनकर फूट पड़ा।उस सनातनधर्मी आक्रोश की पूर्णाहुति 22 जनवरी 2024 को संपन्न हो गई। जो कोई इन दोनों घटनाओं का साक्षी रहा हो,वह भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अमर रहेगा।
दूसरी ओर जब कोई इतिहासकार कहता है कि श्रीराम,लक्ष्मण,हनुमान,कृष्ण,बलराम,अर्जुन तो मिथ हैं।जब कोई इतिहासकार ईसा पूर्व पहली सदी के राजा वीर विक्रमादित्य अथवा १२ वीं सदी के चंदेल राजा,आल्हा उदल मिथ हैं ,१५वीं सदी के राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य* मिथ हैं, मेवाड़ की जौहरवती रानी पद्मावती या पदमिनी मिथ हैं,तो इसके दो ही मायने हो सकते हैं। एक तो यह कि वह नितान्त जड़मति मूर्ख नकलपट्टी करके इतिहास का प्रोफेसर बना होगा। दूसरा कारण यह हो सकता है कि उस इतिहासकार के मन में हिन्दू प्रतीकों और हिन्दू सभ्यता संस्कृति के प्रति अगाध घृणा भरी होगी।
जो व्यक्ति सच्चा प्रगतिशील -सच्चा धर्मनिरपेक्ष होगा, वह कभी भी कल्पना अथवा झूँठ का सहारा नहीं लेगा। इतिहास का ककहरा जानने वाला भी जानता है कि हर दौर में आक्रान्ताओं ने अपने पक्ष का इतिहास लिखवाया है।जो व्यक्ति यह मानता है कि इब्ने बतूता,अलबरूनी,बाबर, हुमायूँ ,अबुलफजल,जहांगीर रोशनआरा ने जो कुछ लिखा वो सब सच है। तो उस व्यक्ति को यह भी मानना होगा कि यह सच केवल उनका था जिन्होंने लिखा है।
जब तक इतिहास को सत्ता निरपेक्ष सर्वधर्म समभाव से नही लिखा-पढ़ा जाता,तब तक
सामाजिक सद्भाव और राष्ट्र में स्थाई शांति का हमारा लक्ष्य दिवास्वप्न ही है! ता
See insights
Boost a post
All reactions:
LN Verma, Jagadishwar Chaturvedi and 4 others

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें