आपका संचित ज्ञानकोष चाहे कितना ही समृद्ध क्यों न हो ?यदि आप किसी रोते हुए बच्चे को हँसा नहीं सकते, तो यह आपकी समग्र असफलता है! यदि आप अपने ही सपरिजनों या बुजुर्गों को खुश नहीं कर सकते ,यदि ज्ञानी होने के बावजूद आप खुद सांसारिक खुशियों से महरूम हैं,तो आपका संचित ज्ञानकोष आपके किस काम का? ऐंसे भ्रमात्मक ज्ञान से आप तत्काल मुक्त हो जाइये !
बुधवार, 31 जनवरी 2024
यदि आप किसी रोते हुए बच्चे को हँसा नहीं सकते, तो......?
तदुपरांत आप सहज, सरल और तरल जीवन जीने की कोशिश!यदि आप वास्तव में ज्ञानी हैं तो किसी भी व्यक्ति,वस्त अथवा विचार के व्यामोह में पड़े बने,राजा जनक की तरह देह में रहते हुए भी नही रहते, क्योंकि तब आप स्वयं शुद्ध सच्चिदानंद में लीन रहते हुए भी,जगत के सभी सांसारिक कार्य करते हुए,अपने अस्तित्व के अहं का बोझ उतारकर फेंक देते! जय सच्चिदानंद!
See insights
सच्चा प्रगतिशील -सच्चा धर्मनिरपेक्ष होता है।
विगत 22 जनवरी को न केवल अयोध्या,न केवल भारत,बल्कि सारे संसार में जहां कहीं 'श्रीराम' के अनुयाई हैं,वहां जयघोष के साथ दिये जलाये गये। भारतीय सभ्यता,संस्कृति और मानवीय मूल्यों के अलम्बरदार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का भव्य मंदिर बन जाने के बाद सदियों की गुलामी का एहसास तिरोहित हो गया!
विगत 500 वर्षों से शोषित पीड़ित सनातनधर्मी हिंदुओं के मन में तो उनके आराध्य प्रभु श्रीराम प्रतिष्ठत थे ही, किंतु अपने आराध्य प्रभु श्रीराम को टाट पट्टी के झोंपड़े में देखकर उनके मन में अकथनीय आक्रोश था, जो 6 दिसंबर 1992 में लावा बनकर फूट पड़ा।उस सनातनधर्मी आक्रोश की पूर्णाहुति 22 जनवरी 2024 को संपन्न हो गई। जो कोई इन दोनों घटनाओं का साक्षी रहा हो,वह भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अमर रहेगा।
दूसरी ओर जब कोई इतिहासकार कहता है कि श्रीराम,लक्ष्मण,हनुमान,कृष्ण,बलराम,अर्जुन तो मिथ हैं।जब कोई इतिहासकार ईसा पूर्व पहली सदी के राजा वीर विक्रमादित्य अथवा १२ वीं सदी के चंदेल राजा,आल्हा उदल मिथ हैं ,१५वीं सदी के राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य* मिथ हैं, मेवाड़ की जौहरवती रानी पद्मावती या पदमिनी मिथ हैं,तो इसके दो ही मायने हो सकते हैं। एक तो यह कि वह नितान्त जड़मति मूर्ख नकलपट्टी करके इतिहास का प्रोफेसर बना होगा। दूसरा कारण यह हो सकता है कि उस इतिहासकार के मन में हिन्दू प्रतीकों और हिन्दू सभ्यता संस्कृति के प्रति अगाध घृणा भरी होगी।
जो व्यक्ति सच्चा प्रगतिशील -सच्चा धर्मनिरपेक्ष होगा, वह कभी भी कल्पना अथवा झूँठ का सहारा नहीं लेगा। इतिहास का ककहरा जानने वाला भी जानता है कि हर दौर में आक्रान्ताओं ने अपने पक्ष का इतिहास लिखवाया है।जो व्यक्ति यह मानता है कि इब्ने बतूता,अलबरूनी,बाबर, हुमायूँ ,अबुलफजल,जहांगीर रोशनआरा ने जो कुछ लिखा वो सब सच है। तो उस व्यक्ति को यह भी मानना होगा कि यह सच केवल उनका था जिन्होंने लिखा है।
जब तक इतिहास को सत्ता निरपेक्ष सर्वधर्म समभाव से नही लिखा-पढ़ा जाता,तब तक
सामाजिक सद्भाव और राष्ट्र में स्थाई शांति का हमारा लक्ष्य दिवास्वप्न ही है! ता
See insights
Boost a post
All reactions:
6LN Verma, Jagadishwar Chaturvedi and 4 othersमध्यप्रदेश में 73% आरक्षण किये जाने पर एक विष्लेषण
हमारे आदिवासी भाइयों को भड़काया जाता है कि देखो तुम जंगल में भटकते रहते हो, तुम वनोपज पर निर्भर हो और तुम्हारे पिछड़े होने,गरीबी के लिये सवर्ण लोग जिम्मेदार हैं! शायद इसीलिये मध्यप्रदेश में आइंदा 73% आरक्षण दिया जाएगा!
हमारे बुंदेलखंड (एम.पी.) में इसका उल्टा है! दरसल यहां अधिकांश दलित आदिवासी भाई या तो बिड़ी बनाते हैं या कारीगर हैं या शहरों में मजदूरी करते हैं! जबकि सवर्ण गरीब जंगलों से जाकर महुआ बीनते थे! शहरों में कुछ लोग महुआ के फूल को फल समझते हैं! जबकि दरसल महुए के फूल को बीनकर सुखाते हैं और उसके कई उपयोग होते हैं!
सुखाये गये महुए के फूल से ज्यादातर तो शराब ही बनाई जाति है! जबकि महुए के फल को गुली कहते हैं! इससे महुए का तेल बनाया जाता है! गुली धपरा पिराई से तेल के साथ खली भी प्राप्त होती है जो भूसे की सानी में मिलाकर दुधारू गायों भैंसों,बैलों और अन्य पाल्य पशुओं को खिलाई जाती है!
हमारे गाँव में 5 साल की उम्र से लेकर 80 साल की उम्र तक महुआ बीनने वाले,तेंदू पत्ता संग्रह करने वाले अधिकांस सवर्ण आदिवासी हैं! अहिरवार समाज के लोग बीड़ी बनाते हैं, कुछ सरकारी नौकरी में लग गये हैं! मैने स्वयं किशोरवय में गुली धपरा और चारोली (अचार) भी जंगल से बीने हैं! मुझे गर्व है कि किशोर अवस्था समाप्त होते होते, पढ़ाई के साथ साथ मैने ये बनोपज संबंधी और खेत खलिहान मेहनत के सारे काम शिद्दत से किये हैं !
जबकि पढ़ाई में भी मेरा स्थान अक्सर अव्वल ही हुआ करता था! किंतु जो सुख सुविधाएं पिछड़े वर्ग या sc-st को थीं, जैसे कि वे लोग सरकारी छात्रवास में पका पकाया भोजन पाते थे,जबकि मैं या मेरे अन्य सवर्ण बंधुओं के पास ऐंसी कोई सुविधा नही थीं! हम अपने हाथ से गेंह्ू बीनते ,पिसवाते और भोजन के नाम पर दो टिक्कड़ बनाया करते थे!
एक बार हमारे ही इलाके के एक सज्जन जो कि अहिरवार थे, मुझे हरिजन छात्रावास ले गये !वहां मैने देखा कि छात्रावास के कमरों के बाहर एक कोने में पके हुऐ सफेद चावलों का ढेर लगा है! मैने अपने मित्र श्री अहिरवार जी से पूछा कि ये चावल जमीन पर क्यों रखे हैं? वे बोले कि ये तो हम छात्रों की बची हुई जूँठन है!!!
मैने मन ही मन सोचा कि यदि सरकार और सिस्टम ठीक ठाक होते तो विश्वविद्यालय के हरिजन छ्त्रावास का ये आलम नही होता! उन्हें उतना दिया जाता जितना कि वे खा सकें,पचा सकें,और बाकी का उनको देते जो बदकिस्मती से सवर्ण गरीब हैं! किंतु इस देश में आजादी के बाद से अब तक एक ही ढर्रा चलता आ रहा है कि जिनकी फीस माफ,उन्हें ही भोजन फ्री ,पुस्तकें फ्री और अन्न का नुकसान करने का अधिकार अलग!
उधर शहर में हम किराये के कच्चे मकान में रहते थे,हर महिने फीस जुटानी पड़ती थी, उन दिनों गांव में ज्वार मक्का ज्यादा होती थी, किंतु हमें ज्वार की रोटी बनाने में बहुत दिक्कत होती थी,इसलिये गेहूँ जुटाने के लिये ट्यूशन पढ़ाते थे! हमें जिंदा रहने के लिये दो टिक्कड़ मिल जाएं यही बहुत था ! महिनों गुजर जाते थे,जब कभी गांव घर जाते तब कभी तीज त्यौहार पर चावल और दूध के दर्शन हो पाते थे !
मन की इस वेदना को हम कभी उजागर नही करते, किंतु गरीबों की वकालत करने वालों को खरबपति अखिलेश यादव और अरबों की स्वामिनी बहिन मायावती का समर्थन करते देखा,तो मन चीत्कार कर उठा कि क्या यही समाजवाद है? क्या यही आजाद भारत का लोकतंत्र है? यदि हाँ तो इस लोकतंत्र की उम्र ज्यादा नही है !
आजादी के 75 साल बाद भारत में करोड़ों दबंग लोग,जातीय दीदागिरी की ताकत दिखाकर सत्ता के मजे ले रहे हैं! आर्थिक रूप से सम्रद्ध लोगों को आरक्षण और देश के लिये कुर्बानी देने वाली झांसी की रानी तात्या टोपे,चाफेकर बंधु, शहीद चंद्रशेखर आजाद,लोकमान्य तिलक,पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और मंगल पांडे जैसे शहीदों को जन्म देने वाली ब्राह्मण जाति के गरीबों को सरकार की ओर से कोई नौकरी नही, कोई आपात्कालीन राहत नही!
चंद मुठ्ठी भर ब्राह्मण भले ही अमेरिका,यूके आस्ट्रेलिया और यूरोप में धूम मचा रहे हों, किंतु बाकी इधर भारत में अधिकांस सवर्ण कंगाल! करोड़ों बेरोजगार,फटेहाल! जो द्वापर में दीन हीन सुदामा थे, वे विप्रजन अब और बदतर हालात में हैं! जय हिंद.जय संविधान! आरक्षण की बलिहारी है...इस मुल्क की बीमारी है!
See insights
Boost a post
All reactions:
2You and Ramswaroop Pathakरविवार, 28 जनवरी 2024
वही असली शंकराचार्य है
जिस व्यक्ति ने सारे देश का माहौल राममय कर दिया हो वही असली शंकराचार्य है, जिस व्यक्ति ने 40 श्रम सेवकों को टनल में फंसे होने के बाद उन्हें निकालने में दिन-रात एक कर दिया हो वह सुपर शंकराचार्य है।
जिन देशों में लड़ाई चल रही है (रूस यूक्रेन और फिलिस्तीन इजरायल) इन देशों से भी मक्खन की तरह अपने देशवासियों को निकाल कर लाया वह सुपर शंकराचार्य है।
लक्ष्यदीप के एक दौरे के कारण मालदीप को अच्छी तरह से अकल आ गई वह ही असली शंकराचार्य है, जिस व्यक्ति ने अपना सारा जीवन देश को ऊंचाइयों पर ले जाने में लगा दिया हो वही असली शंकराचार्य है.*
*जय श्री राम*
पहचानो कौन क्षत्रिय कौन ब्राह्मण, कौन वैश्य?कौन शूद्र*
पहचानो कौन क्षत्रिय कौन ब्राह्मण, कौन वैश्य?कौन शूद्र*
See insights
Boost a post
All reactions:
21Rakesh Dubey, Er R. D. Badole and 19 others
सदस्यता लें
संदेश (Atom)