अपना विवेक ताक़ पर रख आया हूँ
दिल चट्टान तले दबा आया हूँ
जी, धुंध में खो दी हैं आँखें
संवेदना तार पर सुखा आया हूँ
जी,
सत्य की औक़ात ही क्या है
उसे सूली पर लटका आया हूँ
जी, जीवित हूँ औरों की तरह
इंसानियत दफ़्न कर आया हूँ !
ख्वाहिशों से नहीं गिरते फूल झोली में,
कर्म की शाख को भी हिलाना पड़ता है।
मात्र अंधेरे को कोसने से कुछ नहीं होता,
दिया अपने हिस्से का खुद जलाना पडता है।"
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