फ़र्ज़ कीजिये आप चाय का कप हाथ में लिये खड़े हैं और कोई आपको धक्का दे देता है तो क्या होता है? आपके कप से चाय छलक जाती है। अगर आपसे पूछा जाए कि आपके कप से चाय क्यों छलकी तो आपका जवाब होगा कि मुझे धक्का दिया।
आपका असल उस वक़्त तक सामने नहीं आता जब तक आपको धक्का ना लगे। तो देखना है कि जब आपको धक्का लगा या आपके मज़हबी जज़्बात को ठेस पहुंची तो क्या छलका; सब्र, ख़ामोशी, रवादारी, सम्मान, इंसानियत या जुनून, गुस्सा, नफरत या हिंसा।
आपके अंदर से वही छलकेगा जो आपने भरा हुआ है अपने अंदर एक काल्पनिक खुदा और उसके तथाकथित पैगंबर के नाम पर। आपने सिर्फ नफरत करना सीखा है। आप इंसानियत और मुहब्बत का दावा करते हैं लेकिन वे सारे झूठे साबित हुए हैं हर बार।
मज़हब के नाम पर आपने अपने अंदर नफरत, गुस्सा भरा हुआ है। आप मज़हब से बाहर निकल कर सोचने समझने की जहमत नहीं करना चाहते।
इंतज़ार करें उस दिन का जब दुनिया कहेगी कि इंसानियत और साम्प्रदायिकता दोनों अलग अलग हैं।
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