शनिवार, 12 नवंबर 2022

पुरुष पुरातन की बधु , क्यों न चंचला होय।।

 गुजरात, हिमाचल और यत्किंचित हो रहे चुनावों के मद्देनजर 'कमला' याने लक्ष्मी याने सत्ता सुख की अग्रिम लख -लख बधाइयाँ !

उपरोक्त विधान सभा चुनावों में जिस किसी की करारी हार होगी, उसको सांत्वना सन्देश स्वरूप पेश है रहीम कवि का एक दोहा :-
कमला थिर न रहीम कह,यह जानत सब कोय।
पुरुष पुरातन की बधु , क्यों न चंचला होय।।
अर्थ ;- कवि 'अब्दुल रहीम खान-ए -खाना ' कहते हैं कि यह बात तो सभी जानते हैं कि कमला [ लक्ष्मी ] स्थिर नहीं हुआ करती । बृद्ध पुरुष की जबान जोरू 'चंचल' क्यों नहीं होगी ?
भावार्थ :- कमला अर्थात यश ,कीर्ति,विजय ,सम्पदा ऐश्वर्य और राज्य सम्पदा कभी किसी के साथ सदा के लिए नहीं रहते। यह बात सभी विद्वानों ने बार-बार कही है। अनादि परम पुरष विष्णु की भार्या लक्ष्मी तो वैसे भी 'चंचल ही हुआ करती है।
सन्देश : हे अंध श्रद्धालुओं , असहिष्णुतावादियो ! हे कलिबुर्गी ,पानसरे,दाभोलकर अखलाख के हंताओ !तुम बिहार में लालू -नीतीश जैसे पिछड़ों के हाथों बुरी तरह पिटे ,यह कोई नयी बात नहीं है। हार का रंज गम मत करो। वे भी तोकई बार पिटे हैं। अब तुम भी पिटने को तैयार रहो! क्योंकि -कमला (सत्ता )थिर न रहीम कहि...

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