बुधवार, 18 मार्च 2020

कोरोना वायरस (COVID-2020.



मौजूदा कोरोना संकटकाल में भी कुछ अल्पबुद्धि लोग केंद्र/राज्य सरकारों पर और खास तौर से प्रधानमंत्री मोदी पर शब्द भेदी बाण चलाये जा रहे हैं!यद्यपि आलोचना सही भी हो सकती है,कितु आलोचक भूल जाते हैं कि अब राजा रजवाड़ों का सामंती दौर नही है बल्कि देशी पूंजीपतियों एवं सत्ताके दलाल नेताओं और जाति धर्म के अनैतिक गठजोड़ का सत्ता प्रतिष्ठान है!
यद्दपि लोकतंत्र में समस्त कार्यकारी शक्तियां एक व्यक्ति या राजा में नही होती बल्कि वे तमाम संवैधानिक शक्तियां संसद में होतीं हैं इसीलिये संसद को सर्वोच्च माना गया है! प्रधानमंत्री की आलोचना करने का हक तो सभी नागरिकों को है, किंतु यह कतई नहीं भूलना चाहिये,कि यदि संसद और उसका नेता गलत है, तो इस गलत जनादेश के लिये हम सब भी बराबर के भागीदार हैं! इससे कोई मतलब नहीं कि आपने सत्तापक्ष को वोट दिया या नही !
संसदीय लोकतंत्र में आलोचना का सिद्धांत सिर्फ तब लागू होगा जब कोई राष्ट्रीय संकट का विषय होगा! किंतु यदि कोरोना जैसा वैश्विक संकट है तो उसके लिये सारी दुनिया जिम्मेदार है! खास तौर से वे लोग अधिक जिम्मेदार हैं, जिनकी जीवन शैली प्रकृति विरोधी है!
यह कोई चुनावी दौर नही है कि सत्ताधारी निर्वाचित सरकार पर उसकी असफलता के लिये ही हमले करते रहें!और सत्तापक्ष को भी चाहिये कि वर्तमान संकट को उत्सव न बनाए! बल्कि कोरोना को राष्ट्रीय संकट के रूप में देखे! समय की मांग है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे के पूरक बने और इस कोरोना संकट का मुकाबला करने के लिये एकजुट हों!

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*।कोरोना फोबिया को मिटाएं*
1):-. क्या कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है?*
*उत्तर:-*
नहीं! कोरोना वायरस एक निर्जीव कण है जिस पर *चर्बी की सुरक्षा-परत* चढ़ी हुई होती है। *यह कोई ज़िन्दा चीज़ नहीं है, इसलिये इसे मारा नहीं जा सकता* बल्कि यह ख़ुद ही रेज़ा-रेज़ा (कण-कण) होकर ख़त्म होता है।
*प्रश्न( 02):-. कोरोना वायरस के विघटन (रेज़ा-रेज़ा होकर ख़त्म होने) में कितना समय लगता है?*
*उत्तर:-*
कोरोना वायरस के विघटन की मुद्दत का दारोमदार, *इसके आसपास कितनी गर्मी या नमी है? या जहाँ ये मौजूद है, उस जगह की परिस्थितियां क्या हैं?* इत्यादि बातों पर निर्भर करता है।
*प्रश्न(03):-. इसे कण-कण में कैसे विघटित किया जा सकता है?*
*उत्तर:-*
कोरोना वायरस बहुत कमज़ोर होता है। *इसके ऊपर चढ़ी चर्बी की सुरक्षा-परत फाड़ देने से यह ख़त्म हो जाता है।* ऐसा करने के लिये साबुन या डिटर्जेंट के झाग सबसे ज़्यादा प्रभावी होते हैं। *20 सेकंड या उससे ज़्यादा देर तक साबुन/डिटर्जेंट लगाकर हाथों को रगड़ने से इसकी सुरक्षा-परत फट जाती है* और ये नष्ट हो जाता है। इसलिये अपने शरीर के खुले अंगों को बार-बार साबुन व पानी से धोना चाहिये, ख़ास तौर से उस वक़्त जब आप बाहर से घर में आए हों।
*प्रश्न(04):- क्या गरम पानी के इस्तेमाल से इसे ख़त्म किया जा सकता है?*
*उत्तर:-*
हाँ! गर्मी चर्बी को जल्दी पिघला देती है। इसके लिये कम से कम 25 डिग्री गर्म (गुनगुने से थोड़ा तेज़) पानी से शरीर के अंगों और कपड़ों को धोना चाहिये। छींकते या खाँसते वक़्त इस्तेमाल किये जाने वाले रुमाल को 25 डिग्री या इससे ज़्यादा गर्म पानी से धोना चाहिये। गोश्त, चिकन या सब्ज़ियों को भी पकाने से पहले 25 डिग्री तक के पानी में डालकर धोना चाहिये।
*प्रश्न(05):- क्या एल्कोहल मिले पानी (सैनीटाइजर) से कोरोना वायरस की सुरक्षा-परत को तोड़ा जा सकता है?*
*उत्तर:-*
हाँ! लेकिन उस सैनीटाइजर में एल्कोहल की मात्रा 65 पर्सेंट से ज़्यादा होनी चाहिये तभी यह उस पर चढ़ी सुरक्षा-परत को पिघला सकता है, वर्ना नहीं।
*प्रश्न(06):-क्या ब्लीचिंग केमिकल युक्त पानी से भी इसकी सुरक्षा-परत तोड़ी जा सकती है?*
*उत्तर:-*
हाँ! लेकिन इसके लिये *पानी में ब्लीच की मात्रा 20% होनी चाहिये।* ब्लीच में मौजूद क्लोरीन व अन्य केमिकल कोरोना वायरस की सुरक्षा-परत को तोड़ देते हैं। *इस ब्लीचिंग-युक्त पानी का उन सभी जगहों पर स्प्रे करना चाहिये जहाँ-जहाँ हमारे हाथ लगते हैं।* टीवी के रिमोट, लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन को भी ब्लीचिंग-युक्त पानी में भिगोकर निचोड़े गये कपड़े से साफ़ करना चाहिये।
*प्रश्न(07):-क्या कीटाणुनाशक दवाओं के द्वारा कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है?*
*उत्तर:-*
नहीं! कीटाणु सजीव होते हैं इसलिये उनको *एंटीबायोटिक* यानी कीटाणुनाशक दवाओं से ख़त्म किया जा सकता है लेकिन *वायरस निर्जीव कण होते हैं, इन पर एंटीबायोटिक दवाओं का कोई असर नहीं होता।* यानी कोरोना वायरस को एंटीबायोटिक दवाओं से ख़त्म नहीं किया जा सकता।
*प्रश्न(08):-कोरोना वायरस किस जगह पर कितनी देर तक बाक़ी रहता है?*
*उत्तर:-*
*० कपड़ों पर  तीन घण्टे तक
*० तांबा पर  चार घण्टे तक
*० कार्डबोर्ड पर  चौबीस घण्टे तक
*० अन्य धातुओं पर  42 घण्टे तक
*० प्लास्टिक पर  72 घण्टे तक
*इस समयावधि के बाद कोरोना वायरस ख़ुद-ब-ख़ुद विघटित हो जाता है। लेकिन इस समयावधि के दौरान किसी इंसान ने उन संक्रमित चीज़ों को हाथ लगाया और अपने हाथों को अच्छी तरह धोये बिना नाक, आँख या मुंह को छू लिया तो वायरस शरीर में दाख़िल हो जाएगा और एक्टिव हो जाएगा।*
*प्रश्न(09):-क्या कोरोना वायरस हवा में मौजूद हो सकता है? अगर हाँ तो ये कितनी देर तक विघटित हुए बिना रह सकता है?*
*उत्तर:-*
जिन चीज़ों का सवाल न. 08 में ज़िक्र किया गया है उनको हवा में हिलाने या झाड़ने से कोरोना वायरस हवा में फैल सकता है। कोरोना वायरस हवा में तीन घण्टे तक रह सकता है, उसके बाद ये ख़ुद-ब-ख़ुद विघटित हो जाता है।
*प्रश्न(10):-किस तरह का माहौल कोरोना वायरस के लिये फायदेमंद है और किस तरह के माहौल में वो जल्दी विघटित होता है?*
*उत्तर:-*
कोरोना वायरस क़ुदरती ठण्डक या एसी की ठण्डक में मज़बूत होता है। इसी तरह अंधेरे और नमी (Moisture) वाली जगह पर भी ज़्यादा देर तक बाक़ी रहता है। यानी इन जगहों पर ज़्यादा देर तक विघटित नहीं होता। *सूखा, गर्म और रोशनी वाला माहौल कोरोना वायरस के जल्दी ख़ात्मे में मददगार है।* इसलिये जब तक इसका प्रकोप है तब तक एसी या एयर कूलर का इस्तेमाल न करें।
*प्रश्न(11):-सूरज की तेज़ धूप का कोरोना वायरस पर क्या असर पड़ता है?*
*उत्तर:-*
सूरज की धूप में मौजूद *अल्ट्रावायलेट किरणें* कोरोना वायरस को तेज़ी से विघटित कर देती है यानी तोड़ देती है क्योंकि सूरज की तेज़ धूप में उसकी सुरक्षा-परत पिघल जाती है। इसीलिये चेहरे पर लगाए जाने वाले फेसमास्क या रुमाल को अच्छे डिटर्जेंट से धोने और तेज़ धूप में सुखाने के बाद दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।
*प्रश्न(12):-क्या हमारी चमड़ी (त्वचा) से कोरोना वायरस शरीर में जा सकता है?*
*उत्तर:-*
नहीं! तंदुरुस्त त्वचा से कोरोना संक्रमण नहीं हो सकता। अगर त्वचा पर कहीं कट लगा है या घाव है तो इसके संक्रमण की संभावना है।

*प्रश्न(13):-क्या सिरका मिले पानी से कोरोना वायरस विघटित हो सकता है?*
*उत्तर:-*
नहीं! सिरका कोरोना वायरस की सुरक्षा-परत को नहीं तोड़ सकता। इसलिये सिरका वाले पानी से हाथ-मुंह धोने से कोई फ़ायदा नहीं है।


कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के रोकथाम पर राज्य सरकार ने दिशा निर्देश जारी किया यह एकदम सही कदम है। पर एक प्रश्न है।
● जब स्कूल, कालेज, सार्वजनिक पुस्तकालय, सिनेमा हॉल, मैरेज हॉल, स्विमिंग पूल, जिम, आधिकारिक सार्वजनिक समारोह, आंगनवाड़ी आदि सब बन्द करने के कड़े निर्देश दिए जा सकते हैं, तो फिर धार्मिक समारोह पर इतनी नरमी क्यों? यहां धार्मिक प्रमुखों से आग्रह तक सिमटने का क्या औचित्य है?
●शासन को सीधे इस कठिन मौके पर सभी धार्मिक आयोजनों, ऐसी कोई भी धार्मिक गतिविधि जिसमे आदेश के अनुसार 20 से अधिक लोग एकत्रित होते हो, फिर चाहे भजन-पूजन-आरती हो, नमाज़ हो, चर्च प्रार्थना हो या गुरुद्वारे पर सामूहिक अरदास, सभी पर रोक लगाना चाहिए।
●केरल में इस आशय के निर्देश के बाद रविवार को होने वाली प्रार्थनाएं लोगों ने अपने अपने घर पर की एवं स्थानीय चैनलों के जरिये चर्चो से पादरियों ने इन प्रार्थनाओं को संचालित किया।

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एक छींक और खांसी आज आपको याद दिलाएगी..!
की 3000 करोड़ की मूर्ति से ज्यादा जरूरी अस्पताल क्यों है..!😔😔
करोना वायरस का डर भारत की स्वच्छता और सोच की प्रक्रिया में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव ला रहा है।
सभ्यता ठगी हुई है।
वायरस प्रभावित क्षेत्र में हर कोई एक संदिग्ध है जैसा कि मेरे पिछले लेखों में पश्चिम अफ्रीका में इबोला के प्रकोप के दौरान देखा गया था। बुखार और गले में खराश के सरल लक्षणों के दौरान एक व्यक्ति को "टाइम बम" माना जा रहा है। इबोला महामारी की तरह यहां भी शुरुआती लक्षणों के लिए कोई स्पष्टता नहीं है।
कोविद -19 नियंत्रण योजना की यह संभावित कमजोरी है।
Covid19 को मात देने के लिए धन की आवश्यकता है।
क्या राजनेता वाकई डरते हैं और मुकाबला करने में दिलचस्पी रखते हैं? या यह डर केवल पब्लिक तक सीमित है ?

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वैसे तो कोरोना वायरस का उद्गम विवादास्पद है और मामला चीन बनाम इटली के बीच झूल रहा है! किंतु कोरोना बैक्सीन पर अमेरिका ने आनन फानन काम शुरू कर इस क्षेत्र में बढ़त बना ली है! खबर है कि कुछ अमेरिकी युवाओं पर ड्रग ट्रायल चल रहा है और उम्मीद जताई गई है कि इसी साल जुलाई तक कोरोना प्रतिरोधी बैक्सीन बाजार में आ जाएगी! तब तक सभी को ''Prevention is better than cure'' का अनुशीलन करना चाहिये!

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गाँव में गोबर से घर आँगन लीपने वाली महिलाओं को,खेत में टैक्टर,हल बख्खर थ्रैशर चलाने वाले किसानों को,भवन निर्माण मजूरों को और अपने शरीर पर हमेशा राख लपेटे रहने वाले साधु संतों को कोरोना का कोई डर नहीं!वैसे भी इनके लिये 24 घंटे में एक दो बार ही हाथ धोना संभव हो पाता है। यह सिर्फ मध्यमवर्गीय चोंचनेबाजी है!हाथ धोना और मास्क पहने रखना मेहनतकशों के लिये हर वक्त संभव नहीं! संपन्न और अनियमित जीवन के आदी बुर्जुआ वर्ग के अंतर्राष्ट्रीय सिंड्रोम का नाम है कोरोना!

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जब जापान में सुनामी आयी तो एक बूढ़ी औरत वहाँ पर छाते लगाकर कुछ इलेक्ट्रिक सामान बेच रही थी. BBC के रिपोर्टर ने उससे रेट मालूम किए तो अंदाज़ा हुआ कि बूढ़ी औरत मार्केट से सस्ते दाम पर सामान बेच रही है. जब रिपोर्टर ने उस बूढ़ी औरत से उसकी वजह पूछी तो उसने कहा कि मैं मार्केट से होलसेल पर सामान लाती हूँ और अपने मुसीबत में फंसे लोगों को उसी रेट पर सामान बेच देती हूँ. यह मेरा, मेरे देश के लिए योगदान है. यह राष्ट्रवाद है.
हमारा राष्ट्रवाद नारे लगाने भर का है. हैंड सेनिटाईज़र और फ़ेसमास्क हमारे यहाँ दस गुना क़ीमत पर मिल रहे हैं. जरा सी अफ़वाह उड़े तो पड़ोस की दुकान पर आटा, चावल, दाल की दरों में बढ़ोतरी हो जाती है. हद तो यह है कि उत्तराखंड में बाढ़ में फँसे लोगों को आसपास के गाँव वालों ने 500-500 रुपये की एक पानी की बोतल बेची थी. 26 जुलाई की बाढ़ में फंसे लोगों को अपने घर संपर्क करने के लिए फोन बूथ वाले एक कॉल करने के 10 से 20 ₹ तक लिए थे.

सत्यता यही है कि हम सब मुनाफ़ाखोर और संवेदनहीन हो गए है. हमारा राष्ट्रवाद किस काम का यदि हम अपने समाज को बुरे समय में सहायता न करें

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यू.पी.में एक कस्बा है कैराना!आजादी के बाद 72 सालों में वहाँ ऐंसा षडयंत्र चला कि सभ्य शाकाहारी हिंदू यहां से पलायन कर गये!जबकि मुलायम-बहिनजी-अखिलेश के राजमें एक वर्ग विशेष (हिंसक कौम) के लोग वहाँ बहुसंख्यक हो गये !दबंग दंगाइयों से परेशान होकर अधिकांस हिंदू वहां से पलायन कर गये!कुछ हिंदू मकानों पर तो अभी भी लिखा है कि 'मकान बिकाऊ है'!
मोदी योगी को चाहिये कि बाहर से आये हिंदू सिख,सिंधी शरणार्थियों को मदद देकर कैराना में बसाएं!मैं CAA/NRC का विरोध नहीं करता क्योंकि मैने देश दुनिया के भूगोल,इतिहास का आद्योपान्त अध्यन किया है! हम सच लिखते हैं, क्योंकि किसी नेता या पार्टी के बहकाने में नही आते !

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हालांकि में कभी मंदिर नही जाता,चर्च गुरुद्वारा या मस्जिद जाने का सवाल ही नही!किंतु उन लोगों से सहमत नही जो कह रहे हैं कि मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारों की जरूरत नही,अस्पताल बनवाइये! अभी इंदौर में एक से बढ़कर एक नामी गिरामी सरकारी और प्राइवेट अस्पताल हैं ,किंतु उज्जैन से आई एक कोरोना पीड़ित महिला को नहीं बचा सके! खबर है कि एक और कोरोना पीड़ित मरीज सारे दिन पैदल ही इस अस्पताल से उस अस्पताल भटकता रहा लेकिन कहीं कोई सुनवाई नही हुई ,थक हारकर पैदल ही घर पहुँच गया,आगे क्या हुआ 'ऊपर वाले' जाने !

इसलिए प्रगतिशीलता और वैज्ञानिकता की रौ में मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारों पर हमला न करें! इसके बजाय,मानवमात्र की सुरक्षा व्यवस्था मानव खुद करें! सिर्फ अस्पतालों या भगवान के भरोसे न रहें!क्योंकि अनेक बीमारियों/महामारियों का इलाज अस्पतालों में भी नही है!
कोरोना यदि ईश्वर द्वारा मनुष्य पर प्रहार है, तो वह रक्षा क्यों करेगा?यदि यह शैतान की करामात है तो उसका इलाज भी मनुष्य के पास नही है! इसके अलावा डॉक्टर नर्स भी आखिर इंसान ही हैं, कोरोना वायरस ने उन्हें अमरत्व प्रदान तो किया नही! इसलिए कोरोना= को याने कोई, रो= रोड पर, ना याने रोड पर न निकले का पालन करें!

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बड़े शहरों में औसतन 30-35 इंसान विभिन्न कारणों से रोज मरते हैं,किंतु 135 करोड़ की आबादी में यदिे किसी नई नवेली बीमारी से 10 मर मरा गए तो सारा का सारा मीडिया और सरकार रुदाली गीत गाने लगे! जबकि बर्बर धर्मान्ध जेहादी,फिदायीन और तालिवानी आतंकियों द्वारा की गई हिंसा 'कोरोना' से भी ख़तरनाक है! कल उधर
अफगानिस्तान में 27अल्पसंख्यक सिखों का कत्लेआम इस बात की तस्दीक करता है कि आतंकवाद को खुला छोड़कर सारी दुनिया कोरोना का रोना रो रही है!

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मैं ऐंसे दर्जनों निर्धन परिवारों को जानता हूँ, जिनको न तो आरक्षण सुविधा प्राप्त है, न उनके पास BPL कार्ड है, न राशन कार्ड है! और न उनके खाते में सरकार की तरफ से कभी एक धैला आया और न कभी आएगा! वह इसलिए क्योंकि अधिकांस राशन कार्ड, जॉब कार्ड,मनरेगा कार्ड,बीपीएल कार्ड उन दलों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के पास हैं जो राजनैतिक दल सत्ता में रहे हैं!

विगत दिनों अखबार में पढ़ा था कि छापे के दौरान एक विधायक के पास परिवार के हर सदस्य के नाम अलग अलग 7 बीपीएल कार्ड पाए गए!अब यदि केंद्र सरकार या राज्य सरकार की ओर से कोरोना संकट या लॉकडाउन के कारण कोई सहायता या अन्य किसी मद में सरकारी रुपया आयेगा तो वह इन विधायक जी जैसे चोट्टों के बेनामी खातों में ही जाएगा!इस तरह केंद्र सरकारकी सिर्फ 50% सहायता राशि ही सही हाथों में पहुँच पाएगी! किंतु बाकी 50% सहायता राशि उन चोट्टों के हाथ में जाएगी जो पहले से ही मुफ्त खोरी कर रहे हैं! और राजनैतिक पक्षपात के कारण देश के जो करोड़ों वास्तविक गरीब -अभी तक बंचित हैं,जो कभी कोई सरकारी सहायता प्राप्त नही कर सके,उनके हाथ में इस दफे भी फूटी कौड़ी नही आनेवाली! जोर से बोलो-कोरोनेश्वर महाराज की -जय !

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21 दिन का लॉकडाऊन ठीक किया! किंतु पूरे देश का एक साथ संभव है ही नही!
रबी की फसल के दौरान देश के लगभग 10 करोड़ किसान, अपने घरों में कम, खेतों में ज्यादा रहते हैं!

जब पूरे देश में लॉकडाऊन है, तो किसान खेतों में क्या कर रहे हैं? उन्हें तो घर पर होना चाहिए!
टोटल लॉकडाऊन करने से पहले खेतीबाड़ी और जंगली आमद इत्यादि बाबत राज्य सरकारों से सलाह लेनी चाहिये थी!
वेशक जहां कोरोना खतरा नहीं, वहां कुछ एतिहात के ही साथ लागू करना था!
वैसे भी खेत खलिहान और जंगलों में काम करने वालों को, ओरोना-कोरोना से कुछ वास्ता नही, उनको तो पेट पालने की फिक्र बनी रहती है!
यदि सारे किसान मजदूर लॉकडाऊन का पालन करते हुए घर पर बैठ जाएं तो फसल अपनेआप नहीं कटने वाली!
सड़क, पुल, मकान, बांध अपने आप नही बन जाएंगें!
वेशक कुछ काम 21 दिनमें नही होंगे तो चल जाएगी!किंतु पकी फसल पर कोई किसान मजदूर 21 दिन तक खेत खलिहान नही जाएगा तो, उसका और पूरे मुल्क का हश्र कोरोना से भी भयावह हो सकता है!

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कोरोना को लेकर हमारे प्रधानमंत्रीजी बहुत सजग हैं!चूंकि वे देश के निर्वाचित मुखिया हैं! और किसी भी लोकतांत्रिक देश में जो कुछ भी अच्छा या बुरा होता है,उसके लिये प्रधानमंत्री जी ही जबाब देह माने जाते हैं! अत: देश की आवाम और विपक्षी दल हर सवाल भी उन्हीं से करेंगे!क्योंकि संसद के बाद,प्रधानमंत्री के पास ही देश की सर्वाधिक संवैधानिक शक्तियां निहित हैं! हर आपात स्थिति में विपक्ष एवं आवामके पास लोकतंत्र द्वारा एक ही विकल्प मौजूद है कि वह उनकी (सरकार )की किसी भी नीति या कार्यक्रम पर अपना पक्ष रखे और उचित सवाल उठाए!इसलिये यदि केंद्र या राज्य सरकार से कोई XYZ प्रश्न करता है,तो 'भक्तों' को उत्तेजित नही होना चाहिये!

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इंदौर के मुस्लिम बाहुल्य इलाके ही इंदौर का नाम रोशन कर रहे हैं! इतनी सुविधा,साधन देने के बाद भी उन्हें स्थायी शिकायत रहा करती है कि वे अल्पसंख्यक हैं! शायद इसी फोबिया ने उन्हें भीड़ के रूप में रहने के लिये बाध्य किया है!
किंतु वे अपनी सामूदायिक गतिविधियों को छिपाते हैं अत उन्हें न तो कोई सावधान कर पाता है और न नियंत्रित कर पाता है,भुगतना हिंदुओं को पड़ता है! नमाज के लिये अथवा दरगाह के लिये जुटी भीड़ का न कोई ऐलान न कोई पैगाम,,न कोई मुस्लिम बुद्धिजीवी आगे आकर समझाइश देने वाला...?इनके अलावा तमाम जनता बेहद परेशानी के बावजूद पुलिस,प्रशासन के साथ कदमताल कर रही है ताकि इंदौर पर कोई कलंक न लगे! व्यवस्था में जुड़ा हर सरकारी अधिकारी (प्रशाशन,पुलिस, स्वास्थ,नगर निगम, सभी विभाग) कर्मचारी,आदि जी जान से लगे हैं!घर_बार छोड़ कर..! किंतु मुस्लिम परिवार (सबसे ज्यादा संक्रमित) सहयोग नहीं कर रहे हैं ? या खुदा..इनको अक्ल अता फरमाए!आमीन..! कुछ नकली धर्मनिरपेक्ष मूर्ख लोग इस भेड़वादी चाल का बचाव कर, अपनी घटिया प्रगतिशीलता झाड़ने लगते हैं!


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एक इस्लामिक संगठन PFI ने 'मरकज' का बचाव करते हुए केजरीवाल,मोदी सरकार और दिल्ली प्रशासन पर आरोप लगाया कि लॉकडाऊन तो कर दिया,किंतु जहाँ पहले से भीड़ जमा थी,वहाँ से लोगों को घर लौटने का इंतजाम ही नही किया!
उनके इस आरोप में दम तो है,लेकिन जैसे चोरोंको साहूकर पर आरोप लगाने का हक नही,वैसे ही विदेशों से आये और निजामुद्दीन में छिपे 400 और तमिलनाडु, यूपी से पहुंचे 1131 मुस्लिमों को,भारत सरकार और केजरीवाल सरकार,दिल्ली पुलिस प्रशासन पर आरोप लगाने का हक नहीं!बल्कि उन्हें तो तत्काल हवालात या क्वारेंटाइन में भेज दिया जाना चाहिये!

PFI वालों पर भी मानहानि का मुकदमा चलाकर उन्हें सरकार पर गलत आरोप लगाने के लिये दंडित किया जाना चाहिए! जब दिल्ली में 24 तारीख से पहिले ही धारा 144 लागू थी, टोटल लॉकडाऊन था,तो ये 1400 महानुभाव वहां मजार पर इकठ्ठा होकर कौनसी देशभक्ति कर रहे थे या कानून का पालन कर रहे थे?दरसल वे पूर्णत : अपराधी हैं! लेकिन अपराध क्षम्य है, अत :चेतावनी देकर छोड़ दिया जाना चाहिए!
भारत सरकार और केजरीवाल में यदि कोई समझदार मंत्रि/अफसर है तो तीन महिने पहले से धारा 144 लगाये जाने का लिखित फरमान PFI वालों के मुँह पर भी मार दे!शाहीनाबाग हो या निजामउद्दीन का मरकज कांड, दोषियों पर धारा 144 तोड़ने और जानबूझकर कोरोना वायरस फैलाने का मुकदमा कायम होना चाहिए!

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प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना भागने हेतु ताली बजाने को कहा,बजा दी! घंटा घड़ियाल बजाने को कहा,बजा दिया! अब लाइट बंद करने को कहा, वो भी कर देंगे, किंतु मोमबत्ती या दीपक नही जलायेंगे, क्योंकि इनके धुएँ से हमें इलर्जी है! किंतु यदि आप नाचने को कहोगे,तो हम  नाचेंगे! भले ही भूँख बीमारी और महंगाई से दम  निकल जाये। किन्तु आप जो कहोगे,हम वो सब करेंगे!क्योंकि अब जनता के पास और कोई विकल्प नहीं!शहरों में फिलहाल क्रानिक बीमारियों के शिकार कई बुजुर्ग लोग दवा और राशन के लिये परेशान हैं!शहरों से पलायन करने वाले मजदूर,रेहड़ी वाले, फेरीवाले,सबमें त्राहि त्राहि मची है! अभी तक केंद्र या राज्य सरकार की ओर से एक पैसे की मदद किसी को नही मिली! केवल प्रधानमंत्री जी को टीवी पर सुन रहे हैं और अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे हैं!कोरोना के साये में दम साध कर घर में बैठे हैं! भगवान भला करें!

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मैने लॉकडाउन के एक दिन पहले बड़े गर्व से फेसबुक पर लिखा था कि इंदौर को कोरोना फोरोना से कोई खतरा नही! किंतु दो-तीन दिन बाद जब कुछ लोग विदेश से लौटे और कुछ निजामुद्दीन( मरकज )से लौटे तो इंदौर में कोरोना का कहर टूट पड़ा! वर्ग विशेष के लोगों की नादानी से पूरा इंदौर बंदीगृह से भी बदतर हालात में पहुंच गया है !

रेडियो,टीवी चैनल,अखवारों में कहा जा रहा है कि घर पर रहो! रामायण,महाभारत देखो!लॉकडाऊन कर्फ्यू का पालन करो! पालन हो भी रहा है,किंतु यह कोई यह नहीं बता रहा कि जो बुजुर्ग लोग पहले से ही बी.पी.सुगर या अन्य क्रोनिक बीमारियों से ग्रस्त हैं,वे दवाएं कहाँ से लाएं? क्योंकि बाहर निकलो तो पुलिस पीटती है और गर्व से फोटो खींचकर वायरल भी करती है, कि देखो हम ड्युटी के कितने पाबंद हैं! यदि जैसे तैसे मेडीकल शाप पहुंच गये तो दुकान बंद, यदि दुकान खुली भी है तो दवा नही !और दवा इसलिये नही है क्योंकि हमारे प्रदेश के कर्णधार विधायक खरीदकर सरकार बनाने में तो व्यस्त रहे,किंतु दवाएं बन रहीं हैं या नही,यदि बन रहीं तो कितनी बन रहीं? कितनी दवाएं बहुत जरूरी हैं?उत्पादन हेतु कच्चा माल कहाँ से आता है? कब आता है ? दवाएं कई गुना महंगी क्यों हैं? इन सवालों का जबाब सत्तापक्ष के पास भी नहीं है!और विपक्षी दल कभी धारा 370 कभी CAA शाहीनाबाद के धरने वालों की पैरवी और सरकार की लानत मलानत में व्यस्त रहे! अब देश में बाहर से आए कोरोना संकट का मुकाबला करने में सरकार के हाथ पैर फूल रहे हैं!इसलिये वे जनता से बार बार हाथ धोने,क्वारेंटाइन करने,आइसोलेशन में रहने के लिये आगाह कर रहें,किंतु मदद कुछ नहीं कर रहे हैं! यदि किसी को कहीं मदद मिली हो तो बधाई!किंतु हमें अभी तक कहीं से कोई मदद नही मिली!अत: यदि कोई कदाचित दवाई के बिना मर मरा जाएं तो उसके लिये बाहर से कोरोना लाने वाले लोग और हमारे मुल्क के गैर जिम्मेदार रहनुमा ही जिम्मेदार माने जाएंगे!

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Face Book पर कुछ बदमाश कह रहे हैं कि हिंदुओं ने भी तो लॉकडाऊन तोड़ा,उन्हें मीडिया कुछ नही कहता! वे तब्लीगियों मरकजियों की हरकतों की सचाई बयान करने वाले मीडिया को संघी बता रहे हैं! उन हरामजादों को मालूम हो कि सच बोलने का ठेका केवल संघियों के पास नहीं है! सच तो सिर चढ़कर बोलता है!जिसे यकीन न हो वो इंदौर के कब्रिस्तानों का दौरा करें!इंदौरमें जबभी कोई घरसे बाहर निकला वह चाहे हिंदू हो या मुसलमान,मुख्य धारा के मीडिया ने सबको हिदायत दीथी कि लाकडाऊन का उलंघन घातक है! जब घंटा घड़ियाल बजाने के लिये कुछ लोग राजबाड़ा या गली मुहल्ले में निकले,तो मीडिया ने और हमने उनकी आलोचनाकी!जब लोगोंने घरसे बाहर निकलकर फटाके फोड़े तब भी इसी मीडिया ने कहा था कि यह सरासर गलत है!कुछ पर तो प्रशासन ने मुकदमा भी ठोक दिया!

इंदौर में लॉकडाऊन के दौरान सैकड़ों तबलीगी मरकजी कोरोना से मर गये!यह बात मुस्लिम समाज ने देश दुनिया से क्यों छिपाई? दरसल यहां हिंदू,जैन,सिख,पारसी या नास्तिक सब सुरक्षित हैं ! कोरोना केवल मजहब विशेष के लोगों के पीछे क्यों पड़ा है? कोई गैर मुस्लिम यदि मरा भी होगा तो उसके जिम्मेदार ये मरकजी तबलीगी ही होंगे! जो इंदौर से बाहर हैं वे जान लें कि यहां सबके सब मुस्लिम कोरोना से मरे हैं! बेशक ऑन पेपर भले ही 20 मरे हों और एक कोई अऩ्य मरा हो! किंतु दैनिक भास्कर ने भांडा फोड़ दिया है जिन बहशी दरिंदों ने नर्स, डॉक्टर और पैरामेडीकल स्टाफ पर छींका,थूंका उनके सामने कपड़े उतारे,उनकी सैकड़ों कब्र पर आज थूंकने वाला कोई नहीं है !

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वैसे तो मोदीजी को किसी की सलाह की जरूरत नही!क्योंकि उनका मीडिया सैल सतत सक्रिय है!इसलिये देशभर के शुभ चिंतकों के विचार उन तक तत्काल पहुंच जाते हैं! मैंने भी कई बार उन्हें लंबे लंबे पत्र लिखे हैं! किंतु वे सब जानते हैं,पर मानते नही! मैने कई बार फेसबुक और वाट्सएप तथा ब्लॉग पर भी लिखा है कि "सार्वजनिक क्षेत्र मजबूत करो और निजी क्षेत्र टाइट करो! क्योंकि संकटकाल में सरकारी उपक्रम ही काम आते हैं!"किंतु बड़े दुख की बात है कि कोरोना संकट मे सरकारी क्षेत्र की गुणवत्ता देखकर भी मोदीजी सार्वजनिक उपकर्मों की तारीफ करने से कतरा रहे हैं! बल्कि उन पर हमेशा बक्र द्रष्टि रखते हैं! क्या आज AIMS या सरकारी अस्पताल, बैंक,बीमा, BSNL, सरकारी एयर लाइंस जैसे संस्थानों का महत्व किसी को नजर नही आ रहा ? क्या इनकी प्रशंसा न करना एहसान फरामोशी नही है?
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कोरोना से लड़ने में डॉक्टरों,मेडीकल स्टाफ और पुलिसका साथ देने के बजाय कुछ नीच मरकजी तबलीगी लोग अब आरएसएस पर हिंदुत्ववादी होने का आरोप लगा रहे हैं!क्या उन्हें नही मालूम कि वास्तव में संघ ने कभी अपना एजेंडा नही छिपाया! अतीत में उनसे कई भूलें हुईं होंगी किंतु उनकी देशभक्ति से तकलीफ सिर्फ उसे ही होगी जो खुद वतन परस्त नही है!

यदि देश के सर्वहारा वर्ग को राज्यसत्ता हासिल करना है,तो उसे किसी खूनी क्रांति का इंतजार नही करना चाहिये!बल्कि संघ को विश्वास में लेकर भारतीय वामपंथ को वियतनाम की तरह अहिंसक सर्वहारा क्रांति की संभावना तलाशना चाहिये!हिंदुओं पर हमला करने वाले हरामजादों को ज्ञात हो कि हजार बर्ष बीत गये,करोड़ों हिंदुओं का कत्ल किया गया,करोड़ों हिंदु जबरन मुस्लिम बना दिये गया!भारत भूमि लाल हो गई,किंतु तब भी वे भारत को न तो पाकिस्तान बना सके और न इंडोनेशिया!वे हिंदुओं को कुछ नही दे सके,किंतु हिंसा अवश्य सिखा दी!अब तक तो वे केवल जेहादी मरकजी,तबलीगी, फिदायिन बनकर ही मर रहे थे, किंतु दुनिया में आज वे सर्वाधिक कोरोना से मर रहे हैं!

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यद्यपि मैं मोदी विरोधी हूँ,लेकिन कुछ नीच कमीनों की तरह मैं कोरोना वायरस के लिये मोदीजी को जिम्मेदार नहीं मानता!सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस कहाँ पैदा हुआ?और दुनिया भर में किस वर्ग के लोग कोरोना कैरियर बने!दुनिया में कोरोना से आज 11 अप्रैल तक सवा लाख मर गये,क्या इसमें मोदी का कोई कसूर है?
भारत की आबादी एक अरब 35 करोड है किंतु कोरोना से अभी तक सिर्फ 280 काल कवलित हुए! वेशक ये मौतें दुखद हैं किंतु इसमें मोदी जी या किसी भारतीय नेता की क्या गलती? यह तो विश्वव्यापी महामारी है और सभी जानते हैं कि यदि सावधानी हटी, तो दुर्घटना घटी!

वेशक मोदीजी की एक गलती अवश्य है कि उनकी सरकार ने उन हरामजादों पर कोई ठोस कार्यवाही नही की जो निजामुद्दीन में ईरान,पाकिस्तान और तमाम मुस्लिम देशों से कोरोना लेकर भारत आये! अपनी कौम की हीन हरकत छिपाने के लिए कुछ बदमाश लोग सोशल मीडिया पर हिंदू विरोधी, मोदी विरोधी पोस्ट डाल कर,मुल्क की धर्मनिरपेक्ष और गमगाजमुनी तहजीब को खत्म करने पर तुले हैं! इस संकटकाल में कुछ नकली लैफ्टिस्ट और अक्ल के अंधे मूर्ख मरकजी तबलीगी लोग इस सच को स्वीकार करने के बजाय झूँठी अफवाहें फैलाकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति में जहर घोल रहे हैं!
सभी वतनपरस्तों और अमनपसंद साथियों से निवेदन है कि अभी चुनाव का मौसम नही बल्कि मौत के साये में जी रहे धरती वासियों को कोरोना पर विजय पाने का वक्त है!

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कोरोना से लड़ना है तो 'एकला चालो रे'
सारे देशमें लॉकडाऊन जारी है,अधिकांस जगहों पर कर्फ्यु,धारा144, लागू है! सरकार का प्रयास यह है कि भीड़ भाड़ न हो! किंतु प्रधानमंत्रीजी कह रहे हैं कि -"हम एकजुट होकर कोरोना को हराएंगे" यह एक भ्रम है!
उनकी देखा देखी हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा, चमचा और पुछल्ला नेता,सेल्ब्रिटी और टीवी चैनल वही आप्तवाक्य दुहराए जा रहे हैं कि "हम एकजुट होकर कोरोना को हराएंगे!" आम आदमी कन्फ्युज्ड है कि क्वारेंटाइन का मतलब एकजुटता कैसे हो सकता है? उनका सवाल है कि सब्जी भाजी के लिए, आवश्यक वस्तुओं के लिये यदि अकेले कोई घर से निकलता है,तो पुलिस के डंडे का खौफ!और यदि भीड़ लगाते हैं तो कुटिल कोरोना का खौफ!कोई यह नही बताता कि कहां कब 'एकजुट' होना है और किसलिये ? हमारे एकजुट होने से कोरोना की सेहत पर कोई असर कैसे पड़ने वाला है? एकजुट होने से तो कोरोना वायरस ज्यादा फैलेगा!
मेरा ख्याल है कि सारे फसाद की जड़ यही एकजुटता है!यदि मुसलमान एकजुट होकर दुनिया में आतंक नही मचाते!पाकिस्तान के आतंकी 'एकजुट' होकर भारत के कश्मीर मुंबई,वैस्ट यूपी और देश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में आतंक नही मचाते,तो हिंदू एकजुट नही होते और भाजपा दूसरी बार लोकसभा चुनाव नही जीतती!मोदी जी पुन: प्रधानमंत्री न ही बनते!
यदि मरकजी तबलीगी 'जमात' वाले इधर उधर मस्जिदों मजारों पर एकजुट न होते तो भारत में,एमपी में और इंदौर में कोरोना वायरस इतना प्रलयंकारी नही होता!
यदि हिंदू एकजुट न होते तो भाजपा को प्रचंड बहुमत नही मिलता! जब भाजपा को बहुमत न मिलता तो मोदीजी पी.एम.न होते! और अमित शाह गृहमंत्री न होते! यदि मोदी जी और अमित शाह सत्ता में न होते तो मुसलमान एकजुट न होते ! यदि मुसलमान एकजुट न होते तो शाहीनाबाद,निजामुद्दीन में मरकजी जमावड़ा नही होता तो मुस्लिम जानबूझकर कोरोना कैरियर नही बनते !
हिंदुओं का इतिहास बताता है कि वे हमेशा 'सन्यासस्त महाबाहो' में यकीन रखते हैं! वे सिर्फ संकट काल में ही थोड़ी देर के लिये एकजुट होते हैं!जैसे1971,1984,2002 में एकजुट हुए थे,किंतु संकट उपरांत फौरन 'अनेकता' में एकता की तान छोड़ने लग जाते हैं!
इतिहास गवाह है कि अतीत में जो कौम जितनी एकजुट रही,उसे धरती को लहूलुहान करने का उतना ही गुनहगार माना गया !
इसलिये कोरोना से लड़ना है तो 'एकला चालो रे!'

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विगत नवम्बर में जब चीन में न्यू कोरोना वायरस COVID-19 की जानकारी दुनिया को मिली तो सभी ने इसे हल्के में लिया!और कुछ तो चीन को संकटग्रस्त देखकर खुश भी हुए! किंतु चीन ने कोरोना से मुकाबला कर उसे नेस्तनाबूद कर दिया है! चीन की इस सफलता का राज क्या है? यह तो सामने आना बाकी है,किंतु इतना कह सकते हैं कि वहां कोई तबलिगी और मरकजी कोरोना कैरियर नही बन पाया!
जबकि इटली अमेरिका स्पेन,फ़्रांस,तुर्की, ईरान,जर्मनी,पाकिस्तान में कोरोना से मरने वालों की तादाद बिकराल है और उनके यहां घर घर हाहाकार मची है! जबकि चीन में एक भी कोरोना वायरस का मरीज
नही हैं! चीन में/ कोरोना से सिर्फ 3300 ही मरे हैं जबकि यूरोप अमरीका में कोरोना से 60000 जाने चलीं गईं!

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यद्यपि व्यक्तिगत तौर पर मैं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीन में किये गये आर्थिक उत्थान का कायल हूँ! किंतु चीन की भारत विरोधी नीति और पाकिस्तान से अनैतिक मित्रता मुझे कभी रास नही आयी!कश्मीर को लेकर चीन ने यूएनओ में हमेशा भारत को जलील किया है! किंतु पंडित नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री चीन को मुंहतोड़ जवाब नही दे सका!
ताजा खबर है कि कोरोना वायरस से हुई अपार जन धन हानि और त्रासदी के लिये भारत को छोड़कर बाकी सभी बड़े देशों- अमेरिका,ब्रिटैन,जर्मनी,और यूरोप के तमाम देशों ने-चीन को कसूरवार मान लिया है! जिनकी कोरोना वायरस से कमर टूट गई है,उन्होंने उनके यहां हुई जन धन हानि के लिये चीन को जिम्मेदार मानकर खरबों डॉलर का जुर्माना ठोक दिया है!
किंतु हम भारत के लोग कितने लाचार हैं कि चीन के सामने मुंह खोलने से डरते हैं! हमारे यहाँ सभी दलों के नेता चीन के बारे में सच बोलने से डर रहे हैं! आखिर पड़ोसी धर्म निभाने की हमारी इकतरफा मजबूरी कब खत्म होगी? हम भारत के जनगण चीन के अपराधों पर कब तक पर्दा डालते रहेंगे ?
जब ताइवान और हांगकांग ही चीन को ठेंगे पर रखते हैं, तो हम भारत के लोग कब तक चीन की खुशामद करते रहेंगे?

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सुबह आठ बजे मेरे पड़ोसी ने मेरी बाइक की चाबी मांगी कहा "मुझे लैब से एक रिपोर्ट लानी है"..
मैंने कहा "ठीक है भाई ले जा" ..
थोड़ी देर बाद पड़ोसी रिपोर्ट ले कर वापिस आया, मुझे चाबी दी और मुझे गले लगाया और "बहुत बहुत धन्यवाद" कह कर अपने घर चला गया..
जैसे ही वह अपने घर गया, गेट पर ही खड़े हो कर ऊपर वाली मंजिल में काम कर रही अपनी पत्नी से कहने लगा, "भाग्यवान रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है" ..
जब वह बात मेरे कान में पड़ी तो मैं गिरते गिरते बचा । घबरा कर मेने अपने हाथ सैनिटाइज़र से साफ़ किये, फिर बाइक को दो बार सर्फ से धोया, फिर याद आया मुझे उसने गले भी लगया था, मैंने मन मे सोचा मारा गया तू तो डॉक्टर, तुझे भी अब क्रोना होगा, में डेटोल साबुन से रगड़ रगड़ कर नहाया ओर बाथरूम में ही दुखी हो कर एक कोने में बैठ गया ।
थोड़ी देर बाद मेने पॉकेट से फोन निकाला ओर पड़ोसी को फोन करके बोला "भाई अगर आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव थी तो कम से कम मुझे तो बख्श देते...?
"मैं बेचारा गरीब तो बच जाता" पड़ोसी जोर जोर से हंसने लगा, ओर कहने लगा " वो रिपोर्ट..?"
वो रिपोर्ट तो आपकी भाबी की प्रेग्नेंसी की रिपोर्ट थी "जो पोजटिव आयी है ...


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यदि लॉक डाउन बढ़ता है तो इन बातों का ध्यान रखें*
1. फ़िज़ूल खर्ची बिलकुल ना करें, चाहे आपके अकाउंट में लाखों रूपये क्यों ना हों, कैश की प्रॉब्लम हुई तो वो लाखों रूपये कोई काम के नहीं।
2. आशावादी दृष्टिकोण सकारात्मक सोच रखने वाले लोगों से प्रेरणा लेते रहें।
3. मिल्क पाउडर का स्टॉक रखें।
4. दवाइयों का स्टॉक रखें, जो आप रेगुलर लेते हो, बीपी, डायबिटीज, हार्ट, थायरॉइड इत्यादि की दवाई।
5. खाना बिलकुल बर्बाद ना करें; किसी भी हालात में आत्मविश्वास नहीं खोऐं, दोपहर का खाना बचा है तो शाम को खा लें। रोटियां बची हैं तो तल कर रख लें, उन्हें चाय के साथ खा लें। चावल ज्यादा बच गये हैं तो शाम को पुलाव बना लें। भूख से थोड़ा कम खाने की आदत डालें। अभी नये आइटम बनाकर खाने का समय नहीं है, संयम रखे।
6. थोड़ा दही प्रतिदिन जमाते रहें। हो सके तो छाछ लेते रहे।
7. बच्चों की जिद्द पर लगाम लगाये, उनको बुरे वक़्त के बारे में बताये, लड़ने की हिम्मत दें उन्हें। "तुम स्ट्रांग हो, समझदार हो" ऐसे लफ़्ज़ों से उन्हें स्ट्रांग बनाये।
8. जहां ज़रूरत है वहीं खर्च करें। (नाश्ता, फल, स्नैक्स, कोल्ड ड्रिंक, मिठाईयाँ, नमकीन, बिस्कुट पर रोक लगाए)
9. सिंपल खाना खाएं, वक़्त बदलेगा तो अच्छा भी खाएंगे।
10. अपने गरीब रिश्तेदार और पड़ोसियों का खास ख्याल रखे।
11. घर में प्राथमिक उपचार किट की दवाइयां ज़रूर रखें, जैसे बुखार, जुकाम, पेट दर्द, उल्टियां, दर्द की दवा, आयोडेक्स सॉफ़्रोमाईसिन आदि।
12. सूखी सब्जियों का स्टॉक करें। राजमा, दालें, चावल, चने, सूखे मटर, पापड़, मसाले आदि।
13. मंदिर/मस्जिद जाने के लिए जिद्द ना करें। सार्वजनिक रूप से भीड़ में ना मिले। लोगों से सोशियल डिस्टेंस रखें।
14. आपस में प्रेम से रहें। भूतकाल के झगड़े भूलने का समय है, जिद्द छोड दें।
15. स्वयं कुछ नया सीखें एवं बच्चो को भी योजनाबद्ध तरीके से कुछ नया सिखाएं।
16. बच्चों को अच्छी शिक्षा तो दें ही, साथ ही उन्हें घर के रोजमर्रा के काम जिसमें खाना बनाना, कपड़े धोना, साफ सफाई रखना भी सिखाएं, ताकि भविष्य में यदि वे कहीं बाहर पढ़ने या नौकरी करने जाएं तो ऐसी आपदा की स्थिति में वे अपने खाने-पीने कि व्यवस्था घर में रहते हुए कर सकें।

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सोशल मीडिया पर कोरोना निदान के हजारों नुस्खे उपलब्ध हैं ! WHO और सरकार के भी कई अलग अलग नुस्खे हैं!किंतु इसके बावजूद जिन्हें मरना है,वे मरते जा रहे हैं! जो बच गए यह उनकी वैयक्तिक इम्युनिटी का और जिजीविषा का कमाल है! वास्तव में कोरोना का कोई निदान नही है! मेडीकल साइंस और अस्पतालों पर भरोसा करने वालों ने अरबों के चिकित्सा उपकरण और दवाएं खरीद डालीं, दवा निर्माताओं को मालामाल कर दिया,किंत इलाज से किसी को भी नही बचा सके!
कोरोना से बचाव के लिये सभी जगह एक ही सिद्धांत क्रियाशील है कि जो भी शख्स कोरोना पाजिटिव पाया जाए, उसे जबरन शेष समाज से बेदखल कर दो और यदि वह बंदा अपने दमखम पर क्वारेंटाइन में बच भी गया तो यह उसकी और परिवार की किस्मत!

वरना जिनके पास अपार धन है,संपन्नता है, दवाएं हैं, डॉक्टर हैं, अच्छे अस्पताल हैं, वे अमेरिकन और यरोपियन भी कोरोना से हार रहे हैं! कोरोना ने सिद्ध कर दिया है कि डार्विन का सिद्धांत 'सरवाइबल इज द फिटैस्ट' ही सही है!वरना धर्म अर्थ और साइंस कोई भी कोरोना से बचने के काम नही आ रहा!
वेशक भारत में कोरोना वायरस ने किसी भी धर्म मजहब को नही बख्सा!किंतु यह एक विचित्र बिडम्बना है कि बैंक लुटेरों,सूदखोरों, जमाखोरों,अवैध धंधेबाजों,मुनाफाखोरों और बेईमान नेताओं का कोरोना वायरस के भयानक दौर में बाल बाँका नही हुआ!
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एक नालायक दोपाया +एक गधा+एक श्वान+ एक उल्लू = एक धर्मांध कूड़मगज!
100 धर्मांध कूड़मगज = 1आतंकी पत्थरबाज
100 आतंकी पत्थरबाज =1 मरकजी जमाती!
100 जमाती= 1तबलीगी जेहादी
100 जेहादी = 1 मौलेाना (साद)
100 मौलाना साद =एक अर्णव गोस्वामी।

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दुनिया की अधिकांस सरकारें अपने नागरिकों से बसूले गये टैक्स के एवज में बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करतीं हैं! किंतु भारत एक ऐंसा देश है,जहां जनता के पसीने की कमाई से,बड़े बड़े बुत बनवाये जाते हैं,एयरकंडीशंड पार्टी ऑफिस बनवाये जाते हैं! बैंक लुटेरों के कर्ज माफ किये जाते हैं! किंतु हमारी सरकार के पास कोरोना महामारी से पीड़ित गरीबों के इलाज के लिये पैसे नही हैं!
नंगे भूंखे गरीब मजदूर भयानक गर्मी में तिल तिल मर रहे हैं, किंतु आधुनिक नीरो महोदय टीवी चैनलों पर नीरस भाषण दिये जा रहे हैं! रिटीयर्ड कर्मचारियों का मेंहगाई भत्ता हड़पकर,मजदूरों के श्रम कानून निलंबित कर,कोरोना संकट पर उलटवंशी बजा रहे हैं!



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