मंगलवार, 3 मार्च 2020

दो पुरातन सभ्यताओं का निरंतर टकराव

पूंजीवादी लोकतंत्र मूलत : एक कलहप्रिय व्यवस्था है।इसका चुनाव सिस्टम भ्रष्ट पूँजी और 'दवंगों'के नियंत्रण में होता है, इसलिए यह किसी भी देश के लिए आदर्श या अंतिम विकल्प नहीं है। हालाँकि यह सामंतवादी व्यवस्था से कुछ बेहतर ही है। इसीलिये जब तक इससे बेहतर विकल्प के रूप में किसी जन -कल्याणकारी व्यवस्था का इंतजाम न हो जाए ,तब तक इस धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणतन्त्र की रक्षा अनिवार्य है। किन्तु यदि किसी के पास 'वामपंथ' के अलावा इस लोकतांत्रिक व्यवस्था का कोई अन्य बेहतर विचार,कारगर समस्थानिक विकल्प है,तो उसे जनता के समक्ष पेश किया जाना चाहिये! दक्षिण एसिया- खास तौर से भारत पाकिस्तान के दीर्घकालीन रक्त रंजित संघर्ष का कारण सिर्फ सीमा विवाद या आर्थिक-सामाजिक कारण मात्र नही है!बल्कि दो पुरातन सभ्यताओं के निरंतर टकराव की प्रतिध्वनि का असर भी है! यह सनातन संघर्ष तभी टल सकेगा जब भारत- पाकिस्तान दोनों मुल्क धर्मसंप्रदाय आधारित पूंजीवादी शासन व्यवस्था का मोह छोड़कर मार्क्सवादी वैज्ञानिक दर्शन आधारित चीन जैसी साम्यवादी व्यवस्था को आत्मसात कर लैंगे! इस दिशा में भारत तो कई पायदान ऊँचा है, किंतु पाकिस्तान जस का तस है!लोकतंत्र और धर्मनिर्पेक्षता पर अमल करने के बजाय वह भाड़े के पिठ्ठुओं से भारत में हमेशा दंगे करवाता है!पाकपरस्त आतंकियों की यह धूर्तता अब किसी से छिपी नही है! 

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