भारत में विमुद्रीकरण से जनता भले ही परेशान हो रही है ,किन्तु यह भी सच है कि पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था पर भी इसका खास असर पड़ा है। पाकिस्तान में छिपे आईएसआई प्रेरित आतंकी ,तमाम तश्कर ,स्मगलर और हवाला कारोबारी ,न केवल कश्मीरी अलगाववादियों के मार्फ़त बल्कि मुबई,कोलकाता ,यूएई ,दुबई, नेपाल, और बांग्लादेश के रास्ते भी भारत में छिपे अपने गुर्गों के मार्फ़त यहाँ नकली मुद्रा खपाते रहे हैं। भारत में विमुद्रीकरण के कारण पाकिस्तान में दाऊद जैसे आपराधियों का भट्टा बैठ गया। कश्मीर में पत्थरबाजी बंद हुई ,छात्र-छात्राओं ने परीक्षाएं दीं ,कश्मीर की वादियों में कुछ अमन के फूल खिलने की उम्मीद जगी ,किन्तु महज एक महीने में ही सब उल्टा-पुलटा हो गया। भारत सरकार की आत्ममुग्धता और कश्मीर में पुलिस प्रशासन की लापरवाही से अब कश्मीर फिर सुलग उठा है। भारत की देशभक्त जनता लाइन में खडी -खड़ी अच्छे दिनों का इन्तजार कर रही है और उधर कश्मीर में आतंकियों के पास आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के हस्ताक्षरित नए और असली कड़क नोट पहुँच चुके हैं।उम्मीद है कि मोदी सरकार को इसकी खबर अवश्य होगी !
विगत सप्ताह में अनाम आतंकियों द्वारा कश्मीरी बैंकों से लाखों 'नए नोट' लूट लिए गए हैं ! मोदीभक्त रेवड़ और सरकार समर्थक मीडिया एवम सत्ताधारी नेता इस विषय पर मौन क्यों हैं ? जग जाहिर है कि श्रीनगर सहित कई इलाकों में लगातार पूर्ववत पत्थरबाजी जारीहै। चूँकि भाजपा और पीडीपी सरकारने आतंकियों से डरकर दर्जनों पुलिस स्टेशन पहले ही बन्द कर दिए थे। इसलिए विमुद्रीकरण के उपरान्त जब कश्मीर के बैंकों में कुछ नए नोट भेजे गए तो वह रुपया आमजनता को मिल पाए इससे पहले ही आतंकियों ने लूट लिया। हालाँकि नोटबंदी के बाद एक महीना तक पत्थरबाजी -ऊधमबाजी बन्द रही ,किन्तु ज्यों ही आतंकियों को बैंकों में नए नोट आने की खबर लगी त्यों ही उन्होंने अधिकांस नयी करेन्सी लूट ली। अब केंद्र की मोदी सरकार और कश्मीर की राज्य सरकार जब तक कोई एक्सन ले तब तक आतंकी कोई बड़ी घटना को अंजाम देदें तो कोई अचरज नहीं !
इसी तरह छ.ग. झारखण्ड ,एमपी और बिहार के नक्सलवादियों ने भी नए नोट आसानी से हासिल कर लिए हैं ! जबकि आम आदमी शांतिपूर्वक ५० दिनों बाद 'अच्छे दिनों' का इन्तजार कर रहा है। यदि प्रभात पटनायक, अमर्त्यसेन और अन्य दिग्गज अर्थशात्री इस विमुद्रीकरण की खामियों को रेखांकित कर रहे हैं तो उनकी बात सुनने के बजाय मोदीजी और उनके मंत्री विपक्ष पर अनावश्यक हल्ला बोले जा रहे हैं। सुचारू ढंग से संसद नहीं चल पानेका ठीकरा विपक्ष के सर फोड़ा जा रहा है। सरकार और उसके अंध समर्थक लाख उम्मीद बांधते रहें या 'कैशलेश' सिस्टम का शगूफा छोड़ते रहें किन्तु फिलहाल तो नोटबंदी या विमुद्रीकरण का नतीजा नितांत ठनठन गोपाल ही है !
कश्मीरी पत्थरबाजों , पाकपरस्त आतंकियों और नक्सलियों के पास बैंक लूट के अलावा चोरी छुपे 'ब्लेकमेलिंग' से धन की आबक जारी है। भारतीय मीडिया इस ओर नजर क्यों नहीं डालता ?क्या भारत का पूँजीवादी मीडिया बाकायदा 'काम' पर लग गया है ? बेकार कश्मीरी युवा वर्ग और आईएसआई के खूँखार पाकिस्तानी 'लोंढे' धनके प्रलोभन में फिर से आग मूतने लगे हैं । जिन्होंने पीएम की 'नोटबंदी' योजना से कालेधन पर नियंत्रण की आशा की थी ,जिन्होंने मोदीजी को सफलता की शुभकामनाएं दींथीं,जिन्होंने कालेधन के खिलाफ मोदीजीकी रण हुंकार पर उन्हें शाबाशी दी थी ,वे सभी नरनारी अब विमुद्रीकरण से निराश हैं। मैंने भी पहले-पहले कुछ ज्यादा ही उम्मीद की थी ,किन्तु अब पूर्णतः नाउम्मीद हूँ ! क्योंकि कालाधन तो सरकार के खाते में धेला नहीं आया,बल्कि १३ लाख करोड़ पुराने नोट जो बैंकों में जमा हुए हैं और जिनकी गारंटी आरबीआई के पास सुरक्षित है ,वे सभी रूपये आज की तारिख में झक सफ़ेद हैं ! इसकी एक पाई भी कालाधन में शुमार नहीं की जा सकती ।
कहावत है कि 'चौबे जी छब्बे बनने चले थे लेकिन दुब्बे बनकर रह गए '' ! जब देश और दुनिया के तमाम उद्भट अर्थशात्री माथा धुन रहेहैं तब कोई 'अड़िया' या कोई 'रोहतगी' इस नोटबंदी की फटीचिन्दी में पैबन्द लगा रहा है। नोटबंदी योजना से भारत के लाखों युवा वेरोजगार हो गए हैं ,करोड़ों युवाओं की नौकरी खतरे में है ,किसानों की महादुर्दशा के बारे में कामरेड सीताराम येचुरी राज्यसभा में पहले ही सब कुछ बता चुके हैं.गोकि एनडीए सरकार की यह दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक भी राजनैतिक ड्रामा ही सावित हुई है। बनासकांठा [गुजरात] की आम सभा में मोदीजी फरमा गए कि '' चूँकि मुझे संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा है ,इसलिए देशमें आम सभाओं के माध्यम से जनता के बीच बोल रहा हूँ ! '' राहुल गाँधी भी यही कह रहे हैं की उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जाता इसलिए वे मीडिया के मार्फ़त देश को संबोधित कर रहे हैं। अब देश की आवाम को तय करना है कि कौन किसे बोलने से रोक रहा है ?
यदि 'टाइम्स' पत्रिका ने पर्सन ऑफ़ द ईयर मोदीजी को बना दिया होता तो उसका क्या घट जाता ! वेचारे मोदी भगत बड़ी उम्मीद लगाए बैठे थे! टाइम्स ने ट्रम्प को नम्बर वन बताकर भारत के साथ अन्याय किया है। टाइम्स यदि भारत में प्रकाशित होता तो NDTV की तरह उसपर भी 'देशद्रोह' का आरोप लगना तय था। प्रतिबन्ध भी लग सकता था। खैर जो हो अभी तो मोदी सरकार को नोटबंदी ने और धराशायी होती अर्थव्यवस्था ने परेशांन कर रखा है। ऐंसे में टाइम्स ने बहुत बुरा किया है। अन्यथा उसका ही कुछ सहारा हो जाता। 'दुविधा में दोउ गए, माया मिली न राम ! इधर देश के मेहनतकश लोग लाइन में लगे-लगे मर रहे हैं उधर कश्मीरी आतंकवाद ज्यों का त्यों लहलहाने लगा है। अब तो एकमात्र रास्ता शेष है कि संसद में विपक्ष की बात सुनों ! मोदी जी आक्रांत जनता की आवाज सुनों !संसद की सलाह से ही देश चलाओ। लोकतंत्र में यकीन कीजिये !संसद छोड़कर देश भर की आम सभाओं में अपनी व्यक्तिगत शेखी बघारना बन्द कीजिये !न्यायपालिका और आरबीआई को स्वतन्त्र रूप से काम करने दीजिये ! आकाश कुसम तोड़ लानेका दावा मत कीजिये! व्यक्तिगत हेकड़ी दिखाना छोड़िये और गंभीरता पूर्वक राष्ट्र का नेतत्व कीजिये ! श्रीराम तिवारी !
विगत सप्ताह में अनाम आतंकियों द्वारा कश्मीरी बैंकों से लाखों 'नए नोट' लूट लिए गए हैं ! मोदीभक्त रेवड़ और सरकार समर्थक मीडिया एवम सत्ताधारी नेता इस विषय पर मौन क्यों हैं ? जग जाहिर है कि श्रीनगर सहित कई इलाकों में लगातार पूर्ववत पत्थरबाजी जारीहै। चूँकि भाजपा और पीडीपी सरकारने आतंकियों से डरकर दर्जनों पुलिस स्टेशन पहले ही बन्द कर दिए थे। इसलिए विमुद्रीकरण के उपरान्त जब कश्मीर के बैंकों में कुछ नए नोट भेजे गए तो वह रुपया आमजनता को मिल पाए इससे पहले ही आतंकियों ने लूट लिया। हालाँकि नोटबंदी के बाद एक महीना तक पत्थरबाजी -ऊधमबाजी बन्द रही ,किन्तु ज्यों ही आतंकियों को बैंकों में नए नोट आने की खबर लगी त्यों ही उन्होंने अधिकांस नयी करेन्सी लूट ली। अब केंद्र की मोदी सरकार और कश्मीर की राज्य सरकार जब तक कोई एक्सन ले तब तक आतंकी कोई बड़ी घटना को अंजाम देदें तो कोई अचरज नहीं !
इसी तरह छ.ग. झारखण्ड ,एमपी और बिहार के नक्सलवादियों ने भी नए नोट आसानी से हासिल कर लिए हैं ! जबकि आम आदमी शांतिपूर्वक ५० दिनों बाद 'अच्छे दिनों' का इन्तजार कर रहा है। यदि प्रभात पटनायक, अमर्त्यसेन और अन्य दिग्गज अर्थशात्री इस विमुद्रीकरण की खामियों को रेखांकित कर रहे हैं तो उनकी बात सुनने के बजाय मोदीजी और उनके मंत्री विपक्ष पर अनावश्यक हल्ला बोले जा रहे हैं। सुचारू ढंग से संसद नहीं चल पानेका ठीकरा विपक्ष के सर फोड़ा जा रहा है। सरकार और उसके अंध समर्थक लाख उम्मीद बांधते रहें या 'कैशलेश' सिस्टम का शगूफा छोड़ते रहें किन्तु फिलहाल तो नोटबंदी या विमुद्रीकरण का नतीजा नितांत ठनठन गोपाल ही है !
कश्मीरी पत्थरबाजों , पाकपरस्त आतंकियों और नक्सलियों के पास बैंक लूट के अलावा चोरी छुपे 'ब्लेकमेलिंग' से धन की आबक जारी है। भारतीय मीडिया इस ओर नजर क्यों नहीं डालता ?क्या भारत का पूँजीवादी मीडिया बाकायदा 'काम' पर लग गया है ? बेकार कश्मीरी युवा वर्ग और आईएसआई के खूँखार पाकिस्तानी 'लोंढे' धनके प्रलोभन में फिर से आग मूतने लगे हैं । जिन्होंने पीएम की 'नोटबंदी' योजना से कालेधन पर नियंत्रण की आशा की थी ,जिन्होंने मोदीजी को सफलता की शुभकामनाएं दींथीं,जिन्होंने कालेधन के खिलाफ मोदीजीकी रण हुंकार पर उन्हें शाबाशी दी थी ,वे सभी नरनारी अब विमुद्रीकरण से निराश हैं। मैंने भी पहले-पहले कुछ ज्यादा ही उम्मीद की थी ,किन्तु अब पूर्णतः नाउम्मीद हूँ ! क्योंकि कालाधन तो सरकार के खाते में धेला नहीं आया,बल्कि १३ लाख करोड़ पुराने नोट जो बैंकों में जमा हुए हैं और जिनकी गारंटी आरबीआई के पास सुरक्षित है ,वे सभी रूपये आज की तारिख में झक सफ़ेद हैं ! इसकी एक पाई भी कालाधन में शुमार नहीं की जा सकती ।
कहावत है कि 'चौबे जी छब्बे बनने चले थे लेकिन दुब्बे बनकर रह गए '' ! जब देश और दुनिया के तमाम उद्भट अर्थशात्री माथा धुन रहेहैं तब कोई 'अड़िया' या कोई 'रोहतगी' इस नोटबंदी की फटीचिन्दी में पैबन्द लगा रहा है। नोटबंदी योजना से भारत के लाखों युवा वेरोजगार हो गए हैं ,करोड़ों युवाओं की नौकरी खतरे में है ,किसानों की महादुर्दशा के बारे में कामरेड सीताराम येचुरी राज्यसभा में पहले ही सब कुछ बता चुके हैं.गोकि एनडीए सरकार की यह दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक भी राजनैतिक ड्रामा ही सावित हुई है। बनासकांठा [गुजरात] की आम सभा में मोदीजी फरमा गए कि '' चूँकि मुझे संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा है ,इसलिए देशमें आम सभाओं के माध्यम से जनता के बीच बोल रहा हूँ ! '' राहुल गाँधी भी यही कह रहे हैं की उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जाता इसलिए वे मीडिया के मार्फ़त देश को संबोधित कर रहे हैं। अब देश की आवाम को तय करना है कि कौन किसे बोलने से रोक रहा है ?
यदि 'टाइम्स' पत्रिका ने पर्सन ऑफ़ द ईयर मोदीजी को बना दिया होता तो उसका क्या घट जाता ! वेचारे मोदी भगत बड़ी उम्मीद लगाए बैठे थे! टाइम्स ने ट्रम्प को नम्बर वन बताकर भारत के साथ अन्याय किया है। टाइम्स यदि भारत में प्रकाशित होता तो NDTV की तरह उसपर भी 'देशद्रोह' का आरोप लगना तय था। प्रतिबन्ध भी लग सकता था। खैर जो हो अभी तो मोदी सरकार को नोटबंदी ने और धराशायी होती अर्थव्यवस्था ने परेशांन कर रखा है। ऐंसे में टाइम्स ने बहुत बुरा किया है। अन्यथा उसका ही कुछ सहारा हो जाता। 'दुविधा में दोउ गए, माया मिली न राम ! इधर देश के मेहनतकश लोग लाइन में लगे-लगे मर रहे हैं उधर कश्मीरी आतंकवाद ज्यों का त्यों लहलहाने लगा है। अब तो एकमात्र रास्ता शेष है कि संसद में विपक्ष की बात सुनों ! मोदी जी आक्रांत जनता की आवाज सुनों !संसद की सलाह से ही देश चलाओ। लोकतंत्र में यकीन कीजिये !संसद छोड़कर देश भर की आम सभाओं में अपनी व्यक्तिगत शेखी बघारना बन्द कीजिये !न्यायपालिका और आरबीआई को स्वतन्त्र रूप से काम करने दीजिये ! आकाश कुसम तोड़ लानेका दावा मत कीजिये! व्यक्तिगत हेकड़ी दिखाना छोड़िये और गंभीरता पूर्वक राष्ट्र का नेतत्व कीजिये ! श्रीराम तिवारी !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें