रविवार, 11 दिसंबर 2016

विमुद्रीकरण बनाम नोटबंदी से पूर्व ,मध्यम वर्ग के लोग आम तौर पर एटीएम कार्ड /डेविड कार्ड को अपने पर्स में रखकर कहीं भी चल देते थे। अपनी जेब में 'नकदी' केवल जरूरत के अनुसार  ही रखते थे। लेकिन ८-९ नवम्बर-२०१६ के बाद लगभग पूरा देश एक  विशेष 'सिंड्रोम' या फोबियासे पीड़ित हो रहा है।जिनके घर में पैसे रखे हैं ,वे  भी लाइन में खड़े हैं। जो उम्रदराज लोग कल तक अपने आपको युवा ही समझते थे वे हर जगह अपना सीनियर सिटीजन वाला 'विशेषधिकार' दिखा रहे हैं। सत्ता समर्थकों का ये आलम है कि मुँह पर तो मोदी-मोदी रटते रहते हैं ,किन्तु  मन में छल-कपट रखते हैं ,और घर में कालाधन  छिपाकर रखते हैं। अपने पापों को छिपाने के लिए वे 'विपक्ष' को पाप का घड़ा बताते हैं और सत्ताधारी पार्टी तो उनकी जुबान पर दूध की धुली है ही !

किसी भी पार्टी की सरकार हो ,उसकी गलत नीतियों या कार्यक्रमों की असफलता पर विपक्ष द्वारा आलोचना सहज और स्वाभाविक है। आम आदमी यदि सरकार से नाराज है तो वह भी आलोचना तो करेगा ही ,इसमें कोई बड़ी बात नहीं ! किन्तु जो लोग सरकार की नीति और कार्यक्रम की बदौलत तकलीफ उठा रहे हैं और फिर भी सरकार के समर्थन में डटे हैं ,वे धन्य हैं !इनमें सभी चारण -भाट नहीं होते ,कुछ बाकई बड़े दिल वाले याने जिगर वाले होते हैं। ये चापलूस लोग सनातन से अनीति और मूर्खता के पक्षधर होते हैं और कर्ण की तरह कतार में खड़े रहकर भी अपने असफल नेतत्व याने दुर्योधन'की जय-जयकार करते रहते हैं।  

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