रविवार, 27 अप्रैल 2014

'नमो-नमो' का जाप करने वालों की बल्ले -बल्ले !



        १६ वीं लोक सभा के चुनाव बाबत मतदान अपने अन्तिम चरण में  है। निःसंदेह ! उत्तर -पश्चिम भारत  में 'मोदी प्रभाव' तो  अवश्य है।  प्रत्यक्ष पूर्वानुमानों और रुझानों से जाहिर है की यूपीए -३ की  सम्भावनाएँ  बहुत कम है. अन्य दलों के सापेक्ष भाजपा और  एनडीए का पलड़ा भारी है। वास्तव में कांग्रेस और यूपीए के अलायन्स  पार्टनर लगभग हारी हुई  बाजी पर केवल चुनावी-लोकतांत्रिक रस्म अदा कर रहे हैं।इसीलिये यूपीए ओर कांग्रेस  की नाव मझधार  में डूबती देख कुछ मौका परस्त  नेता तो पहले ही से दल - बदलकर भाजपा-एनडी या किसी  अन्य डोमिनेंट राजनैतिक गठबंधन  की थान  में मुँह मारने जा  चुके हैं. कांग्रेस के कुछ बफादार समर्थक  भी  यत्किंचित आश्चर्यचकित हैं की इस चुनाव में अधिसंख्य जनता का रुख उनके प्रति  इतना निर्मम और अवहेलनापूर्ण क्यों है ?
                                   यह घोषित कर देना  कि नरेन्द्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे -अभी तक एक चुनावी योजना हि  कही जा सकती थी  किन्तु  अब आसार भी ऐसे  बनते नजर आ रहे हैं।वामपंथ के प्रयासों  को  'आप' ने चकनाचूर कर दिया है। तीसरा मोर्चा  तो तार-तार हो चूका है। ममता ,माया ओर जयललिता  की सत्ता लिप्सा ने न केवल कांग्रेस बल्कि धर्मनिरपेक्ष -जनतांत्रिक दलों और  उनके तीसरे मोर्चे की पीठ में छुरा घोंप दिया है। नीतीश ,मुलायम ,लालू ,नवीन ओर  पवार अब 'अपने-अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं। जो भी एनडीए के साथ नहीं गया वो सदमेंमें  है। कांग्रेस के  क्या कहने ? खुद वर्तमान  प्रधानमंत्री का भाई ही जब विभीषण बनने को तैयार है तो अब  क्या शेष है ? यह परम सत्य है कि १६ मई को कांग्रेस और यूपीए का  केंद्र की सत्ता से हटना सुनिश्चित है। इसके लिए  बहुत संभव है की  वे मीडिया को ,मोदी को , अल्पसंख्यक मतों के धुर्वीकरण को और कार्पोरेट लाबी के 'नमो'जाप को जिम्मेदार ठहराएँगे। वे संघ परिवार  के  निरन्तर दुष्प्रचार  - कुप्रचार  तथा  हिन्दूत्ववादियों के  मीडिया  मैनेजमेंट को  भी कसूरवार ठहरा सकते हैं।
                                              वेशक इन आरोपों में कुछ सच्चाई भी है किन्तु तस्वीर का स्याह पहलु देखना वे कांग्रेसी कभी पसन्द नहीं करेंगे जो कभी आरएसएस का , कभी बीएचपी का,  कभी जनसंघ  का ,कभी भाजपा का  भयदोहन करते रहे हैं।अब नरेंद्र मोदी का भयावह फोटो दिखाकर अल्पसंख्यकों -खास तौर से मुस्लिम   वोटों  के ध्रुवीकरण को कांग्रेस के पक्ष में सत्ता की सीढ़ी समझ रहे हैं।उनका यह भयादोहन  अभियान इस बार कितना कारगर  रहा यह १६ मई के अपरान्ह पता चल जाएगा।
                     कांग्रेसी ओर अन्य धर्मनिरपेक्ष दल  यह मानने को कतई तैयार नहीं कि आर्थिक उदारीकरण के परिणामस्वरूप रोजगारों  के   अवसरों का सत्यानाश होना  , निर्माण -उत्पादन -सेवा क्षेत्र  का निजीकरण होते जाना  ,राष्ट्रीय सम्पदा ओर सम्पत्ति का कुछ खास  हाथों में  ही सीमित होते  जाना,महँगाई तथा  भृष्टाचार का  भयावह होते जाना और सामाजिक सुरक्षा पर अनैतिकता के  जिन्न का  राष्ट्रव्यापी होते जाना  -   इत्यादि  कारणों से इस चुनाव में  'एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर' अपने चरम पर है। इसीलिये  देश के कुछ पत्रकार , राजनैतिक विचारक , बुद्धिजीवी ओर कांग्रेस के   कुछ  जमीनी  नेता भी  यह मानने को बाध्य  हैं  कि  यूपीए की   संभावित पराजय अब  अटल सत्य है।हालाँकि  इस महापराजय के लिए वे अपने आप को  नहीं बल्कि 'संघ परिवार', मोदी और भाजपा को  जिम्मेदार मान रहे  हैं। वे यह कदापि नहीं मानेगे की १० साल में यूपीए  सरकार ने  या कांग्रेस नेतत्व  ने ऐंसा कुछ  खास  नहीं किया  है कि  भारत की जनता उन पर  तीसरी बार  बलिहारी जाये - कुर्बान  हो जाये।उनके भृष्टाचार ओर कदाचरण  पर मंगल गीत गाये।
                                 वेशक !  संघ परिवार,एनडीए ,भाजपा और मोदी पर अनेक संगीन आरोप हैं। उनकी विचारधारा  तो पहले से ही बेहद बदनाम है। व्यक्तिगत रूप से  भाजपा के नामांकित प्रत्यासी अर्थात पी एम इन वेटिंग-   श्री  नरेंद्र मोदी  भी  तमाम विवादों और संदेहास्पद आचरणों के लिए बहुचर्चित रहे हैं ।  उन  पर  कई  प्रकार के वैयक्तिक -सार्वजनिक  सच्चे-झूंठे-मनघडंत  आरोप  भी  लगाए जाते रहे हैं। डॉ मनमोहनसिंह से  नरेन्द्र मोदी कहीं  ज्यादा पूँजीवाद परस्त हैं। मोदी तो  अमीरों  ओर कार्पोरेट जगत के चहेते हैं। वे  निवेशकों -  तेजड़ियों-मंदड़ियों ओर सट्टा बाजरियों के सहोदर हैं। वे  अपने रास्ते में आने वाले हर व्यक्ति या समूह  को निर्ममता से निपटाने में सिद्धहस्त हैं। इन तमाम खूबियों- आरोपों के  वाबजूद  बहरहाल अभी तो  'नमो' अधिसंख्य जनता के 'आइकॉन' जैसे हैं। इस दौर में अधिसंख्य हिन्दु और विशेषतः हिन्दी भाषी  समुदाय  "नमो नाम केवलम" से  ज्यादा कुछ  भी सुनना  - समझना नहीं चाहता।  इसीलिये यह  यह तय है की  १६ मई को  जो चुनाव परिणाम  आएंगे वे एनडीए को केंद्र की सत्ता सौपने के लिए  बहुत माकूल  होंगे। एनडीए के पक्ष में  संभावनाएं इतनी प्रवल  हैं कि नरेंद्र मोदी  के प्रधानमंत्री पद की शपथ  लेने में  किसी शक की गुंजाइश बहुत कम है। वेशक राजनीति अनन्त संम्भावनाओं का  नाम है और किसी पूर्व घोषणा का कोई महत्व नहीं है। फिर भी फिजाओं में लहर न सही  हवा  तो है   जो गुनगुना रही है कि 'अब तो पथ यही है …  '… !  सिंहासन खाली करो कि  भाजपा आती है  .... !   कोई शक नहीं की भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में १६ वीं संसद में प्रवेश  कर रही है ! इस परिणाम का श्रेय नरेन्द्र मोदी को कुछ  ज्यादा  नहीं बल्कि 'आरएसएस ' को अधिक  दिया जाना चाहिए। जिसने आडवाणी ,मुरली मनोहर जोशी  , जशवन्तसिंह जैसों से निपटने में मोदी की राह हर बार आसान की। राजनाथ को संबल प्रदान किया।  इतना ही नहीं  इस चुनाव में बूथ मैनेजमेंट से लेकर टिकिट वितरण तक सारे सूत्र 'संघ' ने अपने हाथों में ले रखे थे। हालांकि सत्ता के मार्ग  के अवरोध कम करने के लिए   मोदी जी ने भी कार्पोरेट लाबी का जमकर  दोहन किया है।  शायद इसीलिये भाजपा के कटट्रर  समर्थक इस विजय को  'मोदी लहर ' का नाम दे रहे हैं। किन्तु सवाल यह है की भाजपा को - एनडीए  को या मोदी को जो  सत्ता  मिलने जा रही है क्या वे इसके हकदार हैं ? क्या वास्तव में उनकी नीति-नियत -चाल-चरित्र  -चेहरा भारत की सासंकृतिक -सामाजिक और राजनैतिक  विरासत के अनुरूप है ?क्या वे यूपीए से -अटलनीत एनडीए  सरकार से  भी बेहतर परफारमैन्स दे सकेंगे ? 
          क्या यह सच नहीं की यह सत्ता उन्हें एंटी इन्कम्बेंसी फेक्टर के कारण  ही मिलने  जा रही है।वर्ना अटल नीत एनडीए सरकार की जिन खूबियों की  दुहाई इन चुनावों में दी गई वे २००४ में कहाँ चलीं गईं थीं ? नरेंद्र मोदी जी जिस गुजरात मॉडल की बात कर रहे हैं उसमें ११ रुपया रोज कमाने वाला ही  यदि गरीब माना जाएगा तो उनके पास कौनसा ऐंसा कुबेर का खजाना है  कि  सम्पूर्ण भारत वासियों को अडानी या अम्बानी बना देंगें ?  जो  लोकायुक्त को -लोकपाल को  कुछ न समझता हो, जिसकी सामूहिक नेतत्व  में  कदापि आस्था न हो  वो भृष्टाचार मुक्त 'गुड गवर्नेंस' कैसे दे सकेगा ? वो लोकतंत्र की हिफाजत कैसे कर सकेगा ?
             'गुड गवर्नेंस'से लेकर  डवलपमेंट तक ,'बाबा सोमनाथ से लेकर  बाबा विश्वनाथ तक, हिन्दुत्ववाद से लेकर 'असली धर्मनिरपेक्षता 'तक, तमाम महावाक्यों के परिणामस्वरूप  भी यदि  भाजपा १६ मई को २७६ सीटें नहीं जुटा पाती  तो ये माना जा सकता है कि 'अभी  नहीं तो कभी नहीं ' . यह भी सम्भव है कि 'नमो' और 'संघ परिवार' पर लगे आरोप सही ठहरा दिये जायें ! कांग्रेस और गैर भाजपा दलों को - मोदी विरोधियों को, बनारस समेत तमाम उत्तर भारत में उमड़ी तथाकथित  मोदी समर्थक  भीड़ को किराए की साबित करना  तब बहुत ही   आसान होगा । किन्तु  यदि भाजपा और एनडीए ने  २७६ सांसदों   का आंकड़ा जुटा  लिय तो राजनीति में   'नमो-नमो' का जाप  करने  वालों की बल्ले -बल्ले !  तब घर-घर मोदी और हर-हर मोदी का असर कितने दिन रहता है यह वक्त ही बता सकता है।    

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