गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

जाति -धर्म -मजहब हुआ ,प्रजातंत्र का रोग ! [दोहे]



    राष्ट्रीय संप्रभुता  जली  ,जर -जर गया  जमीर।

    साम्प्रदायिकता न जली ,भारत की तकदीर।।


     लोकतंत्र  का यज्ञ है  ,जनादेश का मन्त्र।

     अभिमत आम चुनाव का ,हों निष्पक्ष स्वतंत्र।।


     सत्ता सुंदरी के लिए ,सब दल गये बौराय।

    नट -मर्कट ज्यों धतकरम ,जन गण रहे लुभाय।।


   मुस्लिम वोट की जुगत में ,दल  जब भिड़े तमाम।

    तो क्यों केवल   भाजपा ,   मोदी  हैं बदनाम।।



     बिना नीति उद्देश्य के , जीत गये कुछ लोग।

    जाति -धर्म -मजहब  हुआ ,प्रजातंत्र   का रोग।।

           
               राम तिवारी


   

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