' द हिन्दू ' अखबार की रिपोर्ट है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के नार्थ केम्पस में जुआलॊजी के प्रोफेसर उमेश राय की कुछ गुंडों द्वारा महज इसलिए जमकर पिटाई की गई क्योंकि उन्होंने भाजपा के 'पीएम इन वैटिंग 'श्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपना विचार व्यक्त किया था।ये गुंडे अखिल भारतीय विद्द्यार्थी परिषद् के नेता थे जो कि आरएसएस का एक अनुषंगी छात्र संघ है। संघ परिवार की ओर से असहनशीलता का यह एक मात्र उदाहरण नहीं है। कहने -लिखने की जरुरत नहीं कि उन हिंसक हमलावरों का भाजपा में आइंदा रुतवा और बढ़ा दिया जाएगा !
मोदी के खिलाफ बोलने मात्र से वेचारे प्रोफेसर की न केवल पिटाई की गई बल्कि मुँह पर कालिख भी पोती गई। तात्पर्य यह है कि भले ही मोदी का सीना '५६' इंच का न भी हो लेकिन 'संघ' परिवार के हाथों में तो सैकड़ों हिटलर का बल है। व्यक्ति आधारित अलोकतात्रिक राजनीति में असहिष्णुता और हिंसा की खुजली इतनी बढ़ चुकी है कि विरोधियों की जुवान पर भी ताले लगाए जाने का अंदेशा है। शायद यही फासीवाद के सिम्टम्स हैं। सम्भवतः इसे ही 'निरंकुश तानाशाही'कहते हैं।अभी तो "हनोज दिल्ली दूरस्थ " लेकिन अभी से फासिस्ट सांडों के सिरों पर साम्प्रदायिकता के घातक -नुकीले सींग उंग आये हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि 'नमो' का जाप करने वाले अब अतिसुरक्षित कंगूरे पर आसीन हो चुके हैं। जहाँ किसी का हाथ तो क्या किसी की हवा या आवाज भी नहीं पहुँच सकती।इसी को कहते हैं "समर्थ को नहीं दोष गुसाईं "!
दूसरी ओर देश के तमाम अखबारों के फ्रंट पेज पर 'आप' के अधिकांस नेता लात-जूते-थपपड़ खाने को सहज उपलब्ध हैं। "गरीब की लुगाई सारे गाँव की भौजाई "! 'आप' के संयोजक अरविन्द केजरीवाल कभी 'काला' मुँह करवाते दिखते हैं। कभी पिटते हुए दिखते हैं, कभी थप्पड़ खाते हुए दिखाए जा रहे हैं। लोग जानते हैं कि 'आप' की इस दुरावस्था के लिए वे स्वयं ही जिम्मेदार हैं ! मुँह पर स्याही पोतने वाला तो वेशक आम आदमी ही हो सकता है ! क्योंकि उसे लगता है कि 'आप' के नेताओं ने उसे जमकर उल्लू बनाया है। जनता सोचने पर मजबूर है कि 'आप ' के नेता जब अपनी ही रक्षा नहीं कर सकते तो'आम आदमी'और देश की रक्षा क्या खाक करेंगे ? वे भृष्टाचार मिटाने का फार्मूला ही अब तक पेश नहीं कर सके तो उसे नेस्तनाबूद कैसे कर सकेंगे ?आप' के नेताओं को पीटने वाले भाजपा समर्थक भी हो सकते हैं ! क्योंकि उन्हें लगता है कि 'आप'के नेता दाल-भात की सनातन पूँजीवादी राजनीति में जबरन मूसरचंद बन बैठे हैं। वेशक मोदी की राह में अड़चन डालने का कुछ काम तो 'आप' के नेता कर ही रहे हैं।थप्पड़ मारने वालों में कांग्रेस का 'हाँथ' भी हो सकता है ! क्योंकि उनका तो 'पंजा" निशान है ही। यूपीए सरकार के भृष्ट कुशासन को 'आप' ने ज़रा ज्यादा ही मारक और असरदार तरीके से उधेड़ डाला है , वेशक !'आप' ने कांग्रेस को रुसवा ही किया है. इसलिए उसके कार्यकर्ताओं को अभी कुछ सूझ नहीं रहा है ! कोई अचरज नहीं कि वे भी 'हाथ' साफ़ करने लगे हों! चूँकि वे "नमो" जैसे दवंग फासिस्टों का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते ! क्योंकि उधर एसपीजी + ब्लैक केट कमांडो का तगड़ा पहरा भी है। संघ के स्वयंसेवकों का अपना 'ताना-बाना' भी है। इसलिए कमजोर-निहथ्ते , रोगग्र्स्त , शुद्ध- शाकाहारी - असुरक्षित केजरीवाल को थप्पड़ मारना सबके लिए आसान है। हो सकता है कि उदिग्न कांग्रेसी भी अपने 'पंजे ' की खुजाल मिटा रहे हों ! क्योंकि वे अब सत्ता से फुर्सत पाने की ओर अग्रसर हैं।
बहरहाल यह महत्वपूर्ण नहीं कि 'आप' पर स्याही कौन फेंक रहा है ?पिटाई कौन कर रहा है ? थप्पड़ कौन मार रहा है ? दरसल महत्वपूर्ण यह है कि इन घटनाओं के निहतार्थ क्या हैं ?जब -जब केजरीवाल या आप के साथियों पर स्याही फेंकी जाती है ,मुँह काला किया जाता है या थप्पड़ लगाये जाते हैं तब -तब वे उसमें कभी कांग्रेस का 'हाथ' कभी भाजपा का हमला बताकर अपनी झेंप मिटाते रहते हैं। यदि उनका आरोप मान भी लें तो उस सिद्धांत का क्या होगा जो उन्होंने'आप' के गठन के समय लिया था ? जो लाख टके का सवाल भी है कि 'आप' भृष्ट नेताओं ,पूँजीपतियों और उनकी दलाल पार्टियों को सत्ता से बाहर कर देंगे। जब भृष्ट और शक्तिशाली वर्ग को चुनौती देने की बात करोगे तो वे क्या 'आप' को तश्तरी में 'कमल 'का फूल या हाथ में खादी का अंग वस्त्र भेंट करेंगे ?'आप' के पास न तो'संघ' की टक्कर का कोई बेसिक केडर है, न ही कांग्रेस की टककर का 'सरमायेदार परस्त 'एजेंडा। दरशल आप के पास कोई राजनैतिक दर्शन या सिद्धांत तो है नहीं। संगठन भी नहीं है । आप के पास कोई वैकल्पिक आर्थिक नीति भी नहीं है । 'आप' के पास ईमानदारी और भृष्टाचार निरोध का जो तमगा था वो भी 'दिल्ली राज्य' की ४९ दिन वाली मर्कटलीला में खर्च हो चूका है। अब ' आप ' का नतीजा "ठन -ठन गोपाल "!'आप' तेजी से जनता की नजर में अप्रसांगिक होते जा रहे हैं।
अराजक -दिग्भ्रमित 'आप' का कोई भविष्य नहीं है!'आप' अब केवल धर्मनिरपेक्ष मतदाताओं को दिग्भ्रमित कर ,फूट डालने और साम्प्रदायिक कटटरवादियों को सुअवसर प्रदान कराने के काम आ रहे हैं। 'आप' कुल्हाड़ी के बेंट बन गए है जो उसी डगाल को काट रही है जिस पर 'आप' बैठे हैं। आप केवल कांग्रेस की बर्बादी का ही कारण नही हैं। बल्कि 'आप' ने ही अन्ना जैसे महामूर्ख को भी पहले तो बड़ा अवतार बना डाला फिर 'महात्मा ' बाद में उस के अनगढ़ मंसूबों पर पानी भी फेर दिया। यदि 'आप' की यह हरकत अण्णा- समर्थकों को नागबार गुजरी हो तो कोई बेजा बात नहीं। तब वे थप्पड़ क्यों नहीं मारेंगे ?फिर उनसे कैसी शिकायत ? इसीलिये शायद हर बार पिटने के बाद 'आप' लोग उन्हें 'माफ़' करने की मुद्रा में आ जाते हो !क्योंकि 'आप' किसी का कुछ कर पाने लायक नहीं रह गए हैं।पीटने वालों को माफ़ करना ,लात-जूते खाना -यह आपका बड़प्पन नहीं बल्कि अधः पतन है। अब 'आप' केवल बरसाती गोबर जैसे हैं जो लीपने का न पाथने का। यदि 'आप' के ही समर्थक 'आप' को थप्पड़ मार रहे हैं ,काला मुँह कर रहे हैं तो ये आपकी नियति है। ' आप' ने अभी तक जो इनपुट दिया है वही अब 'थप्पड़' के रूप में आउट पुट है ! जो बोया है वही तो फलेगा -फूलेगा की नहीं ?
यदि 'आप' वाकई इस वर्तमान सड़ी-गली पतनशील पूँजीवादी व्यवस्था को बदलना चाहते हैं तो देश के विशाल जन समूह -मेहनतकशों ,किसानों ,कर्मचारियों ,खुदरा व्यापारियों ,साहित्यकारों ,वुद्धिजीवियों और खास तौर से इन सभी के हितों की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष रत -देश के श्रम संगठनों के साथ , सर्वहारा वर्ग के हरावल दस्तों के साथ जुड़ने की कोशिश क्यों नहीं करते ? न केवल भृष्टाचार ,न केवल महँगाई बल्कि जनता के सवालों को लेकर इण्टक ,एटक ,सीटू ,एचएमएस ,बीएमएस इत्यादि अधिकांस श्रम संगठनों ने वामपंथ की अगुआई में विगत कई महीनों से निरंतर आंदोलन और संघर्ष चला रखा है। 'आप' के नेताओं की इस संघर्ष की महानता और क्रांतिकारी सोच के बारे में क्या राय है ?'आप' ने जिन मुद्दों - समस्याओं को लेकर अपने हाथों में झाड़ू उठारखी है उनमें से अधिकांस मुद्दे वामपंथ के इस संयुक्त अभियान संघर्ष में पहले से ही शामिल हैं। 'आप' के सामने दो विकल्प हैं। एक -'आप' राजनीति में ज़िंदा रहने के लिए इस क्रांतिकारी - धारा से जुड़ जाएँ जहाँ 'जय-जैकार भले ही न हो किन्तु किसी माई के लाल की ओकात नहीं की 'आप' पर हाथ उठा सके । दूसरा रास्ता राजनैतिक हराकिरी की ओर जाता है जहाँ कई दत्ता सामंत ,लेक बालेछा,जेपी, काशीराम ,उदितराज और अन्ना हजारे बिलबिला रहे होंगे।तीसरा कोई रास्ता नहीं कि 'आप' देश और दुनिया को बदल सकें !
श्रीराम तिवारी
मोदी के खिलाफ बोलने मात्र से वेचारे प्रोफेसर की न केवल पिटाई की गई बल्कि मुँह पर कालिख भी पोती गई। तात्पर्य यह है कि भले ही मोदी का सीना '५६' इंच का न भी हो लेकिन 'संघ' परिवार के हाथों में तो सैकड़ों हिटलर का बल है। व्यक्ति आधारित अलोकतात्रिक राजनीति में असहिष्णुता और हिंसा की खुजली इतनी बढ़ चुकी है कि विरोधियों की जुवान पर भी ताले लगाए जाने का अंदेशा है। शायद यही फासीवाद के सिम्टम्स हैं। सम्भवतः इसे ही 'निरंकुश तानाशाही'कहते हैं।अभी तो "हनोज दिल्ली दूरस्थ " लेकिन अभी से फासिस्ट सांडों के सिरों पर साम्प्रदायिकता के घातक -नुकीले सींग उंग आये हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि 'नमो' का जाप करने वाले अब अतिसुरक्षित कंगूरे पर आसीन हो चुके हैं। जहाँ किसी का हाथ तो क्या किसी की हवा या आवाज भी नहीं पहुँच सकती।इसी को कहते हैं "समर्थ को नहीं दोष गुसाईं "!
दूसरी ओर देश के तमाम अखबारों के फ्रंट पेज पर 'आप' के अधिकांस नेता लात-जूते-थपपड़ खाने को सहज उपलब्ध हैं। "गरीब की लुगाई सारे गाँव की भौजाई "! 'आप' के संयोजक अरविन्द केजरीवाल कभी 'काला' मुँह करवाते दिखते हैं। कभी पिटते हुए दिखते हैं, कभी थप्पड़ खाते हुए दिखाए जा रहे हैं। लोग जानते हैं कि 'आप' की इस दुरावस्था के लिए वे स्वयं ही जिम्मेदार हैं ! मुँह पर स्याही पोतने वाला तो वेशक आम आदमी ही हो सकता है ! क्योंकि उसे लगता है कि 'आप' के नेताओं ने उसे जमकर उल्लू बनाया है। जनता सोचने पर मजबूर है कि 'आप ' के नेता जब अपनी ही रक्षा नहीं कर सकते तो'आम आदमी'और देश की रक्षा क्या खाक करेंगे ? वे भृष्टाचार मिटाने का फार्मूला ही अब तक पेश नहीं कर सके तो उसे नेस्तनाबूद कैसे कर सकेंगे ?आप' के नेताओं को पीटने वाले भाजपा समर्थक भी हो सकते हैं ! क्योंकि उन्हें लगता है कि 'आप'के नेता दाल-भात की सनातन पूँजीवादी राजनीति में जबरन मूसरचंद बन बैठे हैं। वेशक मोदी की राह में अड़चन डालने का कुछ काम तो 'आप' के नेता कर ही रहे हैं।थप्पड़ मारने वालों में कांग्रेस का 'हाँथ' भी हो सकता है ! क्योंकि उनका तो 'पंजा" निशान है ही। यूपीए सरकार के भृष्ट कुशासन को 'आप' ने ज़रा ज्यादा ही मारक और असरदार तरीके से उधेड़ डाला है , वेशक !'आप' ने कांग्रेस को रुसवा ही किया है. इसलिए उसके कार्यकर्ताओं को अभी कुछ सूझ नहीं रहा है ! कोई अचरज नहीं कि वे भी 'हाथ' साफ़ करने लगे हों! चूँकि वे "नमो" जैसे दवंग फासिस्टों का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते ! क्योंकि उधर एसपीजी + ब्लैक केट कमांडो का तगड़ा पहरा भी है। संघ के स्वयंसेवकों का अपना 'ताना-बाना' भी है। इसलिए कमजोर-निहथ्ते , रोगग्र्स्त , शुद्ध- शाकाहारी - असुरक्षित केजरीवाल को थप्पड़ मारना सबके लिए आसान है। हो सकता है कि उदिग्न कांग्रेसी भी अपने 'पंजे ' की खुजाल मिटा रहे हों ! क्योंकि वे अब सत्ता से फुर्सत पाने की ओर अग्रसर हैं।
बहरहाल यह महत्वपूर्ण नहीं कि 'आप' पर स्याही कौन फेंक रहा है ?पिटाई कौन कर रहा है ? थप्पड़ कौन मार रहा है ? दरसल महत्वपूर्ण यह है कि इन घटनाओं के निहतार्थ क्या हैं ?जब -जब केजरीवाल या आप के साथियों पर स्याही फेंकी जाती है ,मुँह काला किया जाता है या थप्पड़ लगाये जाते हैं तब -तब वे उसमें कभी कांग्रेस का 'हाथ' कभी भाजपा का हमला बताकर अपनी झेंप मिटाते रहते हैं। यदि उनका आरोप मान भी लें तो उस सिद्धांत का क्या होगा जो उन्होंने'आप' के गठन के समय लिया था ? जो लाख टके का सवाल भी है कि 'आप' भृष्ट नेताओं ,पूँजीपतियों और उनकी दलाल पार्टियों को सत्ता से बाहर कर देंगे। जब भृष्ट और शक्तिशाली वर्ग को चुनौती देने की बात करोगे तो वे क्या 'आप' को तश्तरी में 'कमल 'का फूल या हाथ में खादी का अंग वस्त्र भेंट करेंगे ?'आप' के पास न तो'संघ' की टक्कर का कोई बेसिक केडर है, न ही कांग्रेस की टककर का 'सरमायेदार परस्त 'एजेंडा। दरशल आप के पास कोई राजनैतिक दर्शन या सिद्धांत तो है नहीं। संगठन भी नहीं है । आप के पास कोई वैकल्पिक आर्थिक नीति भी नहीं है । 'आप' के पास ईमानदारी और भृष्टाचार निरोध का जो तमगा था वो भी 'दिल्ली राज्य' की ४९ दिन वाली मर्कटलीला में खर्च हो चूका है। अब ' आप ' का नतीजा "ठन -ठन गोपाल "!'आप' तेजी से जनता की नजर में अप्रसांगिक होते जा रहे हैं।
अराजक -दिग्भ्रमित 'आप' का कोई भविष्य नहीं है!'आप' अब केवल धर्मनिरपेक्ष मतदाताओं को दिग्भ्रमित कर ,फूट डालने और साम्प्रदायिक कटटरवादियों को सुअवसर प्रदान कराने के काम आ रहे हैं। 'आप' कुल्हाड़ी के बेंट बन गए है जो उसी डगाल को काट रही है जिस पर 'आप' बैठे हैं। आप केवल कांग्रेस की बर्बादी का ही कारण नही हैं। बल्कि 'आप' ने ही अन्ना जैसे महामूर्ख को भी पहले तो बड़ा अवतार बना डाला फिर 'महात्मा ' बाद में उस के अनगढ़ मंसूबों पर पानी भी फेर दिया। यदि 'आप' की यह हरकत अण्णा- समर्थकों को नागबार गुजरी हो तो कोई बेजा बात नहीं। तब वे थप्पड़ क्यों नहीं मारेंगे ?फिर उनसे कैसी शिकायत ? इसीलिये शायद हर बार पिटने के बाद 'आप' लोग उन्हें 'माफ़' करने की मुद्रा में आ जाते हो !क्योंकि 'आप' किसी का कुछ कर पाने लायक नहीं रह गए हैं।पीटने वालों को माफ़ करना ,लात-जूते खाना -यह आपका बड़प्पन नहीं बल्कि अधः पतन है। अब 'आप' केवल बरसाती गोबर जैसे हैं जो लीपने का न पाथने का। यदि 'आप' के ही समर्थक 'आप' को थप्पड़ मार रहे हैं ,काला मुँह कर रहे हैं तो ये आपकी नियति है। ' आप' ने अभी तक जो इनपुट दिया है वही अब 'थप्पड़' के रूप में आउट पुट है ! जो बोया है वही तो फलेगा -फूलेगा की नहीं ?
यदि 'आप' वाकई इस वर्तमान सड़ी-गली पतनशील पूँजीवादी व्यवस्था को बदलना चाहते हैं तो देश के विशाल जन समूह -मेहनतकशों ,किसानों ,कर्मचारियों ,खुदरा व्यापारियों ,साहित्यकारों ,वुद्धिजीवियों और खास तौर से इन सभी के हितों की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष रत -देश के श्रम संगठनों के साथ , सर्वहारा वर्ग के हरावल दस्तों के साथ जुड़ने की कोशिश क्यों नहीं करते ? न केवल भृष्टाचार ,न केवल महँगाई बल्कि जनता के सवालों को लेकर इण्टक ,एटक ,सीटू ,एचएमएस ,बीएमएस इत्यादि अधिकांस श्रम संगठनों ने वामपंथ की अगुआई में विगत कई महीनों से निरंतर आंदोलन और संघर्ष चला रखा है। 'आप' के नेताओं की इस संघर्ष की महानता और क्रांतिकारी सोच के बारे में क्या राय है ?'आप' ने जिन मुद्दों - समस्याओं को लेकर अपने हाथों में झाड़ू उठारखी है उनमें से अधिकांस मुद्दे वामपंथ के इस संयुक्त अभियान संघर्ष में पहले से ही शामिल हैं। 'आप' के सामने दो विकल्प हैं। एक -'आप' राजनीति में ज़िंदा रहने के लिए इस क्रांतिकारी - धारा से जुड़ जाएँ जहाँ 'जय-जैकार भले ही न हो किन्तु किसी माई के लाल की ओकात नहीं की 'आप' पर हाथ उठा सके । दूसरा रास्ता राजनैतिक हराकिरी की ओर जाता है जहाँ कई दत्ता सामंत ,लेक बालेछा,जेपी, काशीराम ,उदितराज और अन्ना हजारे बिलबिला रहे होंगे।तीसरा कोई रास्ता नहीं कि 'आप' देश और दुनिया को बदल सकें !
श्रीराम तिवारी
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