सोमवार, 27 जनवरी 2014

कारपोरेट की जूठन कखाने वाला मीडिया 'आप' की केवल नकारात्मक छवि पेश कर रहा है !


   कारपोरेट  की जूठन कखाने वाला मीडिया 'आप' की  केवल नकारात्मक छवि पेश कर रहा है !
 आदि शंकराचार्य के बारे में  एक खास घटना का जिक्र आम है कि  उन्होंने न केवल मंडन मिश्र को  शाश्त्रार्थ में परास्त किया बल्कि  तत्कालीन भारत के तमाम धार्मिक -मत-मतान्तरों के विद्द्वानों को भी  शाश्त्रार्थ में पराजित किया था। किन्तु इस दिग्विजय अभियान के   दरम्यान  वे  काशी  के महापंडित मंडन मिश्र की पत्नी से  शाश्त्रार्थ में हार गए थे।  कहा जाता है कि विजेता विदुषी ने बाल-बृह्मचारी - शंकराचार्य से स्त्री-पुरुष के दैहिक   संबंध विषयक सवाल किये थे।  किवदंती है कि इस हार से सबक सीखकर  शंकराचार्य ने योगबल से अपना स्थूल  शरीर शिष्यों को सौंप दिया और  सुरक्षित रखने के निर्देश के साथ  ही अपना  सूक्ष्म जीवात्मा  किसी सद्द दिवंगत राजा के शव में प्रवेश करा दिया। राजा रुपी शंकराचार्य  पुनर्जीवित होकर लगभग ६ माह अपनी रानी के साथ ,प्रजा और मंत्रीमंडल के साथ  सानंद जीवित रहा। नारी-पुरुष के आपसी आंतरिक संबंधों को बखूबी जानकार शंकराचार्य का जीव उस राजा के शरीर को छोड़कर ,  वापिश अपने मूल  पार्थिव शरीर में आ गया। शंकराचार्य  के जीवन की  इस घटना  को 'पर-काया -प्रवेश' भी कहा जाता है। लोकप्रसिद्ध है कि इस  घटना के बाद शंकराचार्य ने पुनः मंडन मिश्र की  पत्नी अर्थात   'अर्धांगनि ' से शाश्त्रार्थ किया और इस शाश्त्रार्थ में  आदि शंकराचार्य  विजयी हुए। प्रतीत होता  है कि अरविन्द केजरीवाल भी  ६ महीने के 'परकाया'प्रवेश की प्रक्रिया  से गुजर रहे हैं ,६ माह बाद ही पता चलेगा कि उन्हें सांसारिक जीवन रुपी  भ्रष्ट राजनीति पर विजय प्राप्त होने की सम्भावना है या नहीं।  अभी तो  लक्षण अच्छे नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस ,भाजपा और भ्रस्ट व्यवस्था रुपी त्रिगुणमयी माया इस बालयोगी 'आप' को  ५ साल तो क्या ६ माह भी शाशन नहीं  करने  देगी।
                       भविष्यवाणियां की जा रही हैं  कि कांग्रेस के आठ सांसदों के बाहरी समर्थन से रोज-रोज   आक्रान्त  चलने वाली 'आप' की सरकार  ६ माह बाद गिर जायेगी।  सत्ता के दो 'महा-लालची'कांग्रेस और भाजपा नहीं चाहते कि कोई 'तीसरा' उनके  निहित स्वार्थों  के  बीच  टांग  अड़ाए । कांग्रेस रुपी गजनवी और भाजपा रुपी गौरी 'आप' के 'सोमनाथ ' को ध्वस्त करने पर आमादा हैं। उन्हें विनोदकुमार  विन्नी  जैसे  जैचंद  खोजने में कामयाबी  मिलने लगी है।  कांग्रेस और भाजपा अधिकांस राज्यों  की सत्ता पर काबिज हैं।  उनका कोई मंत्री या  विधायक इस तरह आधी रात को जनता के बुलावे पर  पैदल नहीं दौड़ पड़ता जैसे कि 'आप' के सोमनाथ  भारती दौड़ पड़े । कांग्रेस और भाजपा के नेताओं का अंतरंग चरित्र इतना कलुषित और भयावह है कि  देख-सुनकर स्वयं शैतान भी शर्मा जाये।  इसीलिये  सोमनाथ  भारती इन भ्रष्टाचारियों की आँख की किरकिरी बन गए हैं। क्योंकि कांग्रेस और भाजपा  के मंत्री विधायक तो भोग-विलाश  में लिप्त हैं ,जनहितकारी स्वशासन  उनके लिए महज चुनावी नारा है। इसलिए उन्हें 'आप' के,केजरीवाल के या सोमनाथ के  ये 'जनवादी' तेवर  कतई  पसंद नहीं हैं। इसीलिये  भाजपा के विधायक धरना दे रहे हैं ,कांग्रेस के नेता धौंस दे रहे हैं और कॉर्पोरेट की जूठन खाने  वाला मीडिया  केवल नकारात्मक पक्ष प्रस्तुत कर रहा है।
                                  अगर 'आप '  ने किसी  भ्रस्ट ताकत के  दवाव में आकर सोमनाथ   भारती से स्तीफा लिया तो गजब हो जाएगा। तब ये सावित हो जाएगा कि भारत में  वही तरीका सही माना जाएगा जो कांग्रेस ६५ साल से और भाजपा ३४ साल से अपना रही है।  वही  होगा जो  इस भ्रष्ट व्यवस्था के अनुकूल होगा। चूँकि  दिल्ली पुलिस काम नहीं कर रही थी और सोमनाथ उससे ईमानदारी से काम करने के लिए  कह  रहे थे  , यदि सोमनाथ का इस्तीफ़ा ले लिया जाएगा तो इसका मतलब ये हुआ कि भ्रष्ट-मक्कार -हिंसक  दिल्ली -पुलिस जिन्दावाद और 'आम-आदमी' मुर्दावाद !  जिस नैतिक मूल्य की रक्षा के लिए 'आप' ने पुलिस के खिलाफ धरना दिया और गृह मंत्री  तक को नहीं छोड़ा ,उस नैतिक मूल्य की  रक्षा  के लिए यदि 'आप' को सरकार भी कुर्वान करनी पड़े तो  चलेगा किन्तु सोमनाथ का इस्तीफा कतई  नहीं होना चाहिए।  दिल्ली पोलिस बनाम सोमनाथ या किसी भी अन्य मुद्दे पर  कांग्रेस और भाजपा  'आप' की जितनी भी टांग खींचे फजीहत उन्ही की होना है। क्योंकि यदि कांग्रेस समर्थन वापिस लेती है तो दुर्गति उसी की होगी और  अगली बार दिल्ली में  'आप' को किसी के समर्थन की जरुरत ही नहीं पड़ेगी। आम आदमी पार्टी को असफल  करने का प्रयास करना   याने  केजरीवाल और उनके साथियों की असफलता मात्र नहीं है बल्कि देश की आम - जनता की  आकांक्षाओं को कुचलने जैसा कुकृत्य होगा। 'आम आदमी पार्टी रुपी  इस नर्मेदनी  को कुचलने का दुस्साहस जो भी करेगा -चाहे कांग्रेस  हो या भाजपा उसका  भविष्य सुरक्षित नहीं  हो सकेगा ।
                                 बहुत सम्भव है कि  अरविन्द केजरीवाल   और 'आप'  को भी  ६ माह बाद वापिश अपने मूल रूप याने 'जन-सन्घर्ष' की राह पर  लौटकर देश के भ्रष्टाचारियों से उसी तरह  भिड़ना पड़े  जैसा  कि आदि शंकराचार्य को  भारत के   तत्कालीन तमाम धार्मिक  पाखंडियों,धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के लोलुपों और आडम्बर  पूर्ण अमानवीय दर्शन और सिद्धांतों को ध्वस्त करना पड़ा था। ।  'आप' को  दिल्ली राज्य  का शासन चलाने का आधा-अधूरा जनादेश मिलने के उपरान्त उसे  लँगड़ाते- लुलाते  हुए चलाने के एक  माह  उपरान्त दिल्ली में राजनीती की असलियत स्पष्ट होने लगी है। अरविन्द केजरीवाल को चुनावी और प्रभावशीलता की  राजनीति  का वो रहस्य समझ आने लगा होगा जो  वे संवैधानिक  राजनीति  के  माध्यम से सिस्टम के अंदर  घुसकर उन्हें देखने को मिल रहा है। 'आप' को मीडिया में दिखने और बयानबाजी के  मोह  से दूर रहकर अपने 'घोषणा पत्र  को पूरा करने के प्राणपण से प्रयास करना चाहिए। जो न कर  सकें वो जनता को बताएं और  देश के  गैर कांग्रेसी -गैर भाजपाई तथा   अनुभवी  -ईमानदार  नेताओं से मार्ग दर्शन प्राप्त  करें। 


                    श्रीराम तिवारी  

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