अरविन्द केजरीवाल के मुख्यमंत्रीत्व में दिल्ली की 'आप' सरकार ने कुछ लोक-लुभावन फैसले तत्काल ले लिए हैं। जैसे -बिजली बिल माफी[आधी-अधूरी ही सही ] ,पानी मुफ्त[आधा-अधूरा ही सही ] ,बिजली कम्पनियों का आडिट,निजी स्कूलों में उनके मालिकों का विशेषधिकार निषेध , खुदरा व्यापार में ऍफ़ डी आई का निषेध , जन-शिकायत -निवारणार्थ हेल्प लाइनों का इंस्टालेशन,जनता दरवार [अब हफ्ते में एक बार],सभी विभागों में भ्रस्टाचारियों के स्ट्रिंग आप्रेसन ,दोषियों के ट्रांसफर,चार्ज शीट ,निलम्बन और ब्रेक -इन सर्विस इत्यादि !समाज के भ्रष्ट तत्वों और बेईमानों का नाराज होना स्वाभाविक है। 'आप' के कुछ साथी भी अनगढ़ और अपरिपक्व हैं वे भ्रस्टाचार की कुल्हाड़ी का बेंट बनने को भी अगर्सर हो रहे हैं। इसीलिये 'आप' संकट में हैं।
'आप' के कारण सत्ता से वंचित भाजपा वाले और 'आप' के ही कारण दिल्ली में भूलुंठित कांग्रेस के घाघ और घिसे हुए नेताओं ने 'आप' की अपरिपक्वता का फायदा उठाना शुरूं कर दिया है। भ्रष्टाचार ,मंहगाई के आरोपों से छलनी यूपीए [वास्तव में कांग्रेस] , साम्प्रदायिकता और पूँजीपति समर्थन के आरोपों से घिरे एनडीए के नेता मीडिया के माध्यम से तो 'आप' का मजाक उड़ा रहे हैं। लेकिन जब ये नेता अपने-अपने पार्टी फोरम में भाषण देते हैं तो 'आप' से नसीहत लेने या उसे गम्भीरता से लेने की बात करते हैं. यह न केवल राजनैतिक बल्कि सांस्कृतिक दोगलापन नहीं तो और क्या है ? यह अपराधबोध जनित पराजय की आशंका नहीं तो और क्या है ?
बचपन में कभी-कभी गाँव से ४० किलोमीटर दूर स्थित शहर के स्कूल से घर लौटना होता तो पैदल चलते -चलते अन्धयारी शाम हो जाया करती थी. भयानक जंगली- ऊबड़ -खाबड़ और काँटों भरी पगडंडी पर गिरते -पड़ते कभी-कभी साँप -अजगर या वनैले हिंसक पशुओं का सामना भी हो जाया करता था। जब कोई बाल सखा या भाई - जो अक्सर साथ में होता - घने जंगल में पत्तों की खडख़ड़ाहट या किसी प्रकार की डरावनी आवाज सुनाई देने पर भयभीत होता तो हम एक-दूसरे को जोर-जोर से ढाढस बंधाते थे कि डरना नहीं मैं हूँ ना ! जबकि वास्तव मैं तो हम सभी ही शेर -तेंदुए या भूत -पलीत के काल्पनिक भय से काँप रहे होते थे। याने हम सभी समान रूप से डरे हुए होते थे और समान रूप से एक-दूसरे को झूँठी निडरता दिखाकर अपना भय कम करने की कोशिश किया करते थे। जैसे की इन दिनों 'आप' के डर से डरे हुए कांग्रेस और भाजपा के नेता अपने -अपने दलों में वनावटी निडरता प्रस्तुत कर रहे हैं। इसी काल्पनिक भय से वे जनता की आकांक्षा जाने बिना ही 'आप' की भ्रूण हत्या करने की जुगाड़ में लग गए हैं।
'आप' की सरकार चाहे जितने दिन चले ,'आप' पर चाहे जितने आरोप लगें ,'आप' से चाहे कांग्रेस को परेशानी हो ,'आप' से चाहे संघ परिवार [भाजपा या मोदी ] को परेशानी हो ,'आप' से चाहे किरण बेदी और अण्णा हजारे को परेशानी हो , 'आप'के लोग चाहे जितने आपस में झगड़ें - दिग्भ्रमित और समझौता परस्त सावित हो जाएँ , शायद वे अपनी घोषणाओं और वादों पर अमल करने में भी असमर्थ रहें ,शायद वे भ्रष्टाचार उन्मूलन के अपने पूर्व घोषित उद्देश्य से भी भटक जाएँ ,शायद 'आप' अपने संकल्प में खरे न भी उतरें , 'आप' के साथ चाहे जितने भ्रष्टाचारी ,पदलोलुप ,गैरजिम्मेदार और असमाजिक तत्व जुड़ते जाएँ और फिर भीतरघात करें ,'आप' के पास भले ही किसी खास विचारधारा का तमगा न हो, किन्तु इतना तय है कि आज 'आप' के कारण ही कांग्रेस , भाजपा के कर्णधार नेता- चाल -चेहरा -चरित्र के पुनर्मूल्यांकन की दुहाई दे रहे हैं। वे जानते हैं कि जनता शनैः -शनै: 'आप' की ओर आकर्षित हो रही है. इसीलिये बतौर सावधानी ही सही - भ्रष्टाचार और शानो शौकत की राजनीति को नियंत्रित करने की बड़ी-बड़ी बातें डॉ मनमोहनसिंग ,श्री राहुल गांधी और श्री नरेंद्र मोदी भी करने लगे हैं। यह 'आप' का प्रभाव नहीं तो और क्या है?
अतीत में ई एम् एस नम्बूदिरीपाद ,ज्योति वसु ,बुद्धदेव भट्टाचार्य, ई के नयनार ,वीएस अचुतानन्दन और अभी वर्तमान में त्रिपुरा के मुख्य मंत्री माणिक सरकार जैसे ईमानदार -क्रांतिकारी वामपंथी मुख्यमंत्रियों की सादगी ,मितव्ययता और शुचिता से नावाकिफ- आधुनिक शहरी युवाओं - मध्मवर्गीय बुर्जुआ वर्ग ने और फेसबुक -इंटरनेट से जुड़े तकनीकी क्षमता से लेस सम्पन्न वर्ग ने भारतीय राजनीति की केवल वही बदसूरत तस्वीर देखी है जो कार्पोरेट जगत के जरखरीद मीडिया ने वर्गीय स्वार्थप्रेरणा से अभी तक उन्हें दिखाई है।दक्षिणपंथी और मुख्यधारा के मीडिया ने अधिकांशतः पूँजीवादी - अर्धसामन्ती - साम्प्रदायिक भारत की तस्वीर ही पेश की है। लेकिन जबसे दिल्ली में 'आप' को सत्ता की जिम्मेदारी मिली है ,तबसे देश भर में 'राजनैतिक सादगी' की चर्चा आम हो गई है। खास तौर से कांग्रेस और भाजपा की नींद हराम हो गई है। आम तौर पर सभी राजनैतिक दलों और व्यक्तियों के सामंती और अहंकारी आचरण पर जनता की नजर है.सत्तासीन नेताओं के व्यक्तिगत चरित्र ,कृतत्व और 'विचारधारा' पर भी समाज के बौद्धिक वर्ग की नजर है। न केवल राजनीति बल्कि अफसरशाही ,न्यायपालिका और मीडिया के चाल-चरित्र -चेहरे पर देश की आवाम की खासी नजर है। यह सब 'आप' के कृपा से ही हो रहा है। इन्नी -बिन्नी के पगलाने से या दिल्ली पुलिस के असहयोग से 'आप' का बाल बांका नहीं होने वाला। ये पब्लिक है सब जानती है। 'आप' के साथियों को और अरविन्द केजरीवाल को भी जब तक बहुत जरूरी न हो ,मीडिया कवरेज के मोह से अभी थोड़ा दूर ही रहना चाहिए। उन्हें इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए कि प्रतिष्पर्धा क्या सोचते हैं ।
'आप' को गर्व होना चाहिए कि भारतीय राजनीति में घुसे -पड़े भ्रष्ट नेताओं की लालबत्ती गाडी ,वीआई पी सुविधाएँ , पाँच सितारा होटलों में ऐयाशी ,लक्झरी लाइफ का नग्न प्रदर्शन अब उनकी नाक का सवाल नहीं बल्कि खौफ़ का प्रतीक बनता जा रहा है। अभी तक मंत्री पद पर काबिज लोग अपने आपको किसी भी मुहम्मद तुगलक ,किसी आसिफुद्दौला ,किसी वायसराय या किसी पेशवा ,किसी नादिरशाह की नाजायज औलाद से कम नहीं समझते थे। किन्तु 'आप' के 'इमोसनल-अत्याचार' की बदौलत कांग्रेस , भाजपा तथा अन्य भ्रष्ट पार्टियों के महाभ्रष्ट नेता जनता को भरमाने के लिए -दिखावे के लिए , ईमानदार ,देशभक्त और सदाचारी होने की मशक्कत और तदनुसार शातिराना वयानबाजी भी करने लगे हैं। इसमें नरेंद्र मोदी ,राहुल गांधी ,जयराम रमेश ,अरुण जेटली और सुषमा स्वराज जैसे कद्दावर बड़े नेता भी शामिल हैं। सभी के चेहरे पर साफ़ लिखा है कि 'हम आप से डरते हैं '
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