इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
मंगलवार, 14 जनवरी 2014
भूंखे को 'आधार' कार्ड , कागज के टुकड़े जैसा।
जैसे गूगल सर्च में ,सिमट रहा संसार ।
वैसे नंदन नीलेकणि ,बना रहे आधार।।
बना रहे आधार , समेटें सबका डाटा ।
किसके घर में कितना ,नोन तेल है आटा।।
महंगाई की मार , जाब की ऐंसी -तैसी।
भूंखे को 'आधार' ,कागज के टुकड़े जैसी ।।
श्रीराम तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें