नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री नहीं बन सकते ; क्योंकि - १
हालांकि भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था में प्रधानमंत्री का चुनाव सांसद करते हैं। सांसदों का चुनाव जनता करती है। बहुमत दल का नेता या उमीदवार लोकसभा में २७६ सांसदों का समर्थन सिद्ध कर देश का प्रधानमन्त्री बन सकता है। फिर भी कुछ अप्रजातांत्रिक किस्म के लोग आटोक्रेसी के अनुरूप व्यक्ति बनाम व्यक्ति की काल्पनिक टक्कर पेश कर देश में भ्रामक तस्वीर पेश करते रहते हैं। वे अमेरिका या फ़्रांस के राष्ट्रपतियों के चुनाव की मानिंद भारतीय लोकतंत्र का प्रारूप बना देना चाहते हैं। चूँकि गठबंधन का दौर है ,इसलिए सभी बड़े दल सहमें हुए हैं कि अपने बलबूते तो सरकार बना पाना कदापि सम्भव नहीं है । चूँकि देश की जनता भ्रष्टाचार ,मंहगाई और अव्यवस्था से छुब्ध है इसलिए 'आम आदमी पार्टी' जैसे नए दलों को तेजी से समर्थन बढ़ रहा है। भारतीय राजनीती में 'आप' के उदय से तमाम समीकरण तेजी से बदल रहे हैं । स्थापित पार्टियां और नेता 'आप' से डरे हुए हैं। 'आप' की सम्भावनाएं तेजी से परवान चढ़ रही हैं।
विगत दिनों सम्पन्न हुए ५ राज्यों -दिल्ली, छ्ग ,मिजोरम ,राजस्थान और मध्यप्रदेश-के विधान सभा चुनाव परिणामों को सेमी फायनल याने आधार मानकर कुछ लोग आगामी लोक सभा चुनावों के मद्देनजर ख्याली घोड़े दौड़ाने में जुट गए हैं । अभी तक तो देश की राष्ट्रीय राजनीती में प्रमुखतः नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी या यूपीए बनाम एनडीए ही माना जा रहा था. कभी- कभार तीसरे मोर्चे की और से नीतीश या अन्य किसी कद्दावर नेता के नाम को भी खबरों के जखीरे में थोड़ी सी जगह मिल जाया करती थी । इस विमर्श में भी मोदी को ही हर तरह से बढ़त में दिखाया जाता रहा है। किन्तु दिल्ली में 'आप' की आंशिक सफलता और केजरीवाल के नेत्तव में उनके शुरुआती कार्यक्रम , नीतिगत फैसलों और ईमानदाराना कोशिशों के बरक्स देश भर में 'आम आदमी पार्टी' के प्रति सकरात्मक रुझान आया है। इससे उत्साहित होकर मीडिया के एक हिस्से ने नए किस्म के विमर्श की और देश का ध्यानाकर्षण किया है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक सीमित सर्वे में मोदी को राहुल या नीतीश से नहीं बल्कि केजरीवाल से चुनौती मिलने की सूचना है। निसंदेह मोदी अभी भी अव्वल बताये जा रहे हैं ,दूसरे नंबर पर अरविन्द केजरीवाल और तीसरे नंबर पर राहुल गांधी बताये जा रहे हैं। किन्तु मात्र एक हफ्ते पुरानी 'आप' की सरकार का मुखिया , मात्र एक साल पुरानी 'आप' पार्टी का नेता यदि इतने कम समय में कांग्रेस और भाजपा के नेताओं को चुनौती देने की स्थति में आ गया है तो आगामी ५ महीनों में वो देश का प्रधान मंत्री क्यों नहीं बन सकता ?
विगत विधान सभा चुनावों के दौरान- ख़बरों के आदान -प्रदान में एक वानगी शिद्दत से हरेक की जुवान पर या लेखन में थी कि 'ये विधान सभा चुनाव - आगामी २०१४ के लोक सभा चुनावो का सेमी फायनल' है। मीडिया या राजनीति के जिस किसी भी शख्स ने यह 'वानगी ' सर्वप्रथम पेश की हो वो अवश्य ही इंटलेक्चुअल' ही होगा । क्योंकि उसके इस सैद्धांतिक कथन का जमीनी हकीकत से प्रमाणीकरण होने जा रहा है। क्योंकि जिन पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव हुए उनमें सभी राज्यों के अपने-अपने सामाजिक , आर्थिक ,जातीय , राजनैतिक चरित्र और एंटीइनकम्बेन्सी फेक्टर के अनुरूप जीत-हार के परिणाम आये हैं। किसी की कोई लहर नहीं थी। वेशक ! दिल्ली और मिजोरम में ट्रिंगुलर फाइट थी । किन्तु राजस्थान ,मध्यप्रदेश और छ्ग में कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर थी। इन राज्यों में भाजपा की सफलता उनके स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं की अपनी मेहनत और कांग्रेस की अपनी[कु] करनी का परिणाम है इसमें मोदी के प्रभाव का कहीं कोई प्रमाण नहीं है। अखिल भारतीय पैमाने पर दीगर राज्यों में भाजपा की ऐंसी स्थति नहीं है. शेष राज्यों में मोदी की लोकप्रियता भी केवल प्रायोजित ही है। सुना है कि राहुल गांधी भी अब नमो की तर्ज पर अपना ' सार्वजनिक चेहरा' प्रस्तुत करने जा रहे हैं। चूँकि केजरीवाल को केवल जनता का ही सहारा है और वे भृष्टाचार ,मंहगाई तथा कुव्यवस्था के लिए भाजपा और कांग्रेस को बराबर का साझीदार मानते हैं ,इसलिए 'आप' और केजरीवाल के पक्ष में जनता का रुझान तेजी से बढ़ रहा है । प्रधानमंत्री पद के सर्वे में केजरीवाल अभी नंबर दो पर हैं किन्तु यदि अन्ना हजारे ,तीसरा मोर्चा और वाम मोर्चा उनका समर्थन करे तो वे मोदी का विजय रथ रोक सकते हैं।
नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री नहीं बन पाएंगे; क्योंकि -२
विगत विधान सभा चुनावों के दरम्यान मध्यप्रदेश में एक खास बात उभरकर सामने आई थी , जिसे मीडिया ने जाने-अनजाने नजर अंदाज किया है। अन्य राज्यों के बरक्स मध्यप्रदेश में नरेद्र मोदी कि जितनी भी चुनावी सभाएं कराईं गईं उनमें से किसी में भी शिवराज सिंह चौहान ने मंच शेयर नहीं किया। मध्यप्रदेश छ्ग और राजस्थान विधान सभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित सफलता को भाजपा और संघ परिवार ने ' नरेंद्र मोदी लहर' का परिणाम सिद्ध करने की कोशिश की है। हालाँकि संघ परिवार और भाजपा नेताओं के - दिल्ली और मिजोरम में असफलता पर - अपने अलग मापदण्ड हैं। खुद मोदी की गुजरात में सत्तात्मक हैसियत उतनी सटीक नहीं है जो उनके आतंक युक्त चाल-चलन और जर -खरीद प्रचार तंत्र के मार्फ़त देश और दुनिया को बताई जा रही है। जबकि शिवराज सिंह चौहान ने कभी भी किसी भी मंच पर यह 'मोदी लहर' के असर का 'महाझूठ' स्वीकार नहीं किया।
वास्तविकता यह है कि गुजरात और राजस्थान की तरह ही मध्यप्रदेश में संघ परिवार का अपना मजबूत ताना बाना पहले से ही है। इधर भारी भ्रष्टाचार और अपराधीकरण के वावजूद - शिवराज सिंह चौहान का भी लगातार चुनावी धुंआधार प्रचार साल भर से जारी था। उधर मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन में आपस की फूट अपने चरम पर थी इन सब कारणों से मध्य प्रदेश में न केवल शिवराज की हेट्रिक बनी बल्कि शिवराज को मोदी से ज्यादा बेहतर कामयाबी भी मिली। यह सर्वविदित है कि गुजरात विधान सभा में मोदी की ताकत याने विधायक संख्या में क्रमशः घटत दर्ज हुई है । जबकि शिवराज ने अतीत के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर अब तक के सर्वाधिक विधायक मध्यप्रदेश विधान सभा में पहुंचाए हैं।
शिवराज की इस शानदार सफलता के बाद राजनैतिक गलियारों में चर्चा थी कि भाजपा उन्हें अपने संसदीय बोर्ड में नरेद्र मोदी की तरह ही शामिल कर लेगी। लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज भी यही चाहते होंगे ! किन्तु नए साल की शुरुआत में हुई भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के समक्ष प्रस्तुत किये गए इस प्रस्ताव को 'नमो' ने वीटो कर दिया है।जो शिवराज कल तक भाजपा की धर्मनिरपेक्ष छवि और विनम्र व्यवहार के प्रतीक थे वे भाजपा और संघ के थिक टैंक की सनद के वावजूद भाजपा संसदीय बोर्ड के द्वार से बे आबरू लौटा दिए गए हैं। शिवराज अपनी ही पार्टी के सर्वोच्च नीतिनिर्धारक फोरम में यदि शामिल नहीं हो सके हैं तो यह उन लोगों की- समझ का सर्टिफिकेशन है- जो पहले से ही 'नमो' के अधिनायकवादी तौर तरीके को घातक मानते आ रहे हैं.
दरसल कांग्रेस से ,तीसरे मोर्चे से और नवोदित 'आप' से जो व्यक्ति रंच मात्र भी नहीं डरता उसका नाम शिवराज सिंह चौहान है. निसंदेह शिवराज के राज में मध्यप्रदेश की संसदीय सीटें गुजरात से ज्यादा ही होंगी ! यहाँ कांग्रेस,आप पार्टी या तीसरा मोर्चा कोई खास भूमिका अदा कर पाने की स्थति में नहीं है। मध्यप्रदेश में भाजपा और शिवराज हिंदुतव के नहीं धर्मनिरपेक्षता के झंडावरदार बन चुके हैं। पूँजीपति वर्ग में शिवराज सिंह चौहान अब मोदी से ज्यादा वांछनीय नेता सावित हो चुके हैं। यदि भाजपा और संघ परिवार ने मोदी के साथ-साथ शिवराज को भी आगामी १०१४ के लोक सभा चुनाव के मद्देनजर वैकल्पिक 'पी एम् इन वैटिंग 'रखा होता तो संघ परिवार की सत्ता अभिलाषा पूरी होने के ज्यादा चांस हो सकते थे। राज ठाकरे , प्रशांत भूषण और धर्मनिरपेक्ष कतारों में विभिन्न नेताओं और वर्गों ने जो आरोप मोदी पर लगाए हैं वे शायद शिवराज पर नहीं लग पाते ! तब एनडीए के पास एक ऐंसा नेता होता जो अटल बिहारी के जैसा नहीं तो उनके शिष्य तुल्य तो अवश्य ही होता। और तब केजरीवाल या किसी ओर की जगह भाजपा और एनडीए का प्रधानमंत्री होता।
किन्तु शिवराज को रोककर भाजपा ने अपने ही पैरों पर कुल्हड़ी मार ली है। उसने कांग्रेस की ही राह पकड़ ली है याने जो भविष्य कांग्रेस और राहुल गांधी का है वही भाजपा और नरेंद्र मोदी का होने के आसार बनते जा रहे हैं। 'आप' के उदय से तीसरे मोर्चे के ,वाम मोर्चे के और क्षेत्रीय दलों के होसले अंगड़ाई लेने लेगे हैं। चूँकि धर्मनिरपेक्षता और जनतांत्रिकता में मोदी बहुत कमजोर हैं , निरंतर हार की और अग्र्सर कांग्रेस का समर्थन गैर भाजपा को ही मिलेगा और तब नरेद्र मोदी की हालत डॉ हर्षवर्धन जैसी हो कर रह जायेगी। इस दौर में नवोदित आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के सभी गृह बलवान हैं उसका दिल्ली फार्मूला [कांग्रेस का बाहर से समर्थन ] पूरे भारत में भी सफल हो जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। तब मोदी भी आडवाणी की तरह 'पी एम् इन वैटिंग ' ही रह जायंगै। शायद तब आडवाणी जी को भी प्रशन्नता ही होगी !
श्रीराम तिवारी
हालांकि भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था में प्रधानमंत्री का चुनाव सांसद करते हैं। सांसदों का चुनाव जनता करती है। बहुमत दल का नेता या उमीदवार लोकसभा में २७६ सांसदों का समर्थन सिद्ध कर देश का प्रधानमन्त्री बन सकता है। फिर भी कुछ अप्रजातांत्रिक किस्म के लोग आटोक्रेसी के अनुरूप व्यक्ति बनाम व्यक्ति की काल्पनिक टक्कर पेश कर देश में भ्रामक तस्वीर पेश करते रहते हैं। वे अमेरिका या फ़्रांस के राष्ट्रपतियों के चुनाव की मानिंद भारतीय लोकतंत्र का प्रारूप बना देना चाहते हैं। चूँकि गठबंधन का दौर है ,इसलिए सभी बड़े दल सहमें हुए हैं कि अपने बलबूते तो सरकार बना पाना कदापि सम्भव नहीं है । चूँकि देश की जनता भ्रष्टाचार ,मंहगाई और अव्यवस्था से छुब्ध है इसलिए 'आम आदमी पार्टी' जैसे नए दलों को तेजी से समर्थन बढ़ रहा है। भारतीय राजनीती में 'आप' के उदय से तमाम समीकरण तेजी से बदल रहे हैं । स्थापित पार्टियां और नेता 'आप' से डरे हुए हैं। 'आप' की सम्भावनाएं तेजी से परवान चढ़ रही हैं।
विगत दिनों सम्पन्न हुए ५ राज्यों -दिल्ली, छ्ग ,मिजोरम ,राजस्थान और मध्यप्रदेश-के विधान सभा चुनाव परिणामों को सेमी फायनल याने आधार मानकर कुछ लोग आगामी लोक सभा चुनावों के मद्देनजर ख्याली घोड़े दौड़ाने में जुट गए हैं । अभी तक तो देश की राष्ट्रीय राजनीती में प्रमुखतः नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी या यूपीए बनाम एनडीए ही माना जा रहा था. कभी- कभार तीसरे मोर्चे की और से नीतीश या अन्य किसी कद्दावर नेता के नाम को भी खबरों के जखीरे में थोड़ी सी जगह मिल जाया करती थी । इस विमर्श में भी मोदी को ही हर तरह से बढ़त में दिखाया जाता रहा है। किन्तु दिल्ली में 'आप' की आंशिक सफलता और केजरीवाल के नेत्तव में उनके शुरुआती कार्यक्रम , नीतिगत फैसलों और ईमानदाराना कोशिशों के बरक्स देश भर में 'आम आदमी पार्टी' के प्रति सकरात्मक रुझान आया है। इससे उत्साहित होकर मीडिया के एक हिस्से ने नए किस्म के विमर्श की और देश का ध्यानाकर्षण किया है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक सीमित सर्वे में मोदी को राहुल या नीतीश से नहीं बल्कि केजरीवाल से चुनौती मिलने की सूचना है। निसंदेह मोदी अभी भी अव्वल बताये जा रहे हैं ,दूसरे नंबर पर अरविन्द केजरीवाल और तीसरे नंबर पर राहुल गांधी बताये जा रहे हैं। किन्तु मात्र एक हफ्ते पुरानी 'आप' की सरकार का मुखिया , मात्र एक साल पुरानी 'आप' पार्टी का नेता यदि इतने कम समय में कांग्रेस और भाजपा के नेताओं को चुनौती देने की स्थति में आ गया है तो आगामी ५ महीनों में वो देश का प्रधान मंत्री क्यों नहीं बन सकता ?
विगत विधान सभा चुनावों के दौरान- ख़बरों के आदान -प्रदान में एक वानगी शिद्दत से हरेक की जुवान पर या लेखन में थी कि 'ये विधान सभा चुनाव - आगामी २०१४ के लोक सभा चुनावो का सेमी फायनल' है। मीडिया या राजनीति के जिस किसी भी शख्स ने यह 'वानगी ' सर्वप्रथम पेश की हो वो अवश्य ही इंटलेक्चुअल' ही होगा । क्योंकि उसके इस सैद्धांतिक कथन का जमीनी हकीकत से प्रमाणीकरण होने जा रहा है। क्योंकि जिन पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव हुए उनमें सभी राज्यों के अपने-अपने सामाजिक , आर्थिक ,जातीय , राजनैतिक चरित्र और एंटीइनकम्बेन्सी फेक्टर के अनुरूप जीत-हार के परिणाम आये हैं। किसी की कोई लहर नहीं थी। वेशक ! दिल्ली और मिजोरम में ट्रिंगुलर फाइट थी । किन्तु राजस्थान ,मध्यप्रदेश और छ्ग में कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर थी। इन राज्यों में भाजपा की सफलता उनके स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं की अपनी मेहनत और कांग्रेस की अपनी[कु] करनी का परिणाम है इसमें मोदी के प्रभाव का कहीं कोई प्रमाण नहीं है। अखिल भारतीय पैमाने पर दीगर राज्यों में भाजपा की ऐंसी स्थति नहीं है. शेष राज्यों में मोदी की लोकप्रियता भी केवल प्रायोजित ही है। सुना है कि राहुल गांधी भी अब नमो की तर्ज पर अपना ' सार्वजनिक चेहरा' प्रस्तुत करने जा रहे हैं। चूँकि केजरीवाल को केवल जनता का ही सहारा है और वे भृष्टाचार ,मंहगाई तथा कुव्यवस्था के लिए भाजपा और कांग्रेस को बराबर का साझीदार मानते हैं ,इसलिए 'आप' और केजरीवाल के पक्ष में जनता का रुझान तेजी से बढ़ रहा है । प्रधानमंत्री पद के सर्वे में केजरीवाल अभी नंबर दो पर हैं किन्तु यदि अन्ना हजारे ,तीसरा मोर्चा और वाम मोर्चा उनका समर्थन करे तो वे मोदी का विजय रथ रोक सकते हैं।
नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री नहीं बन पाएंगे; क्योंकि -२
विगत विधान सभा चुनावों के दरम्यान मध्यप्रदेश में एक खास बात उभरकर सामने आई थी , जिसे मीडिया ने जाने-अनजाने नजर अंदाज किया है। अन्य राज्यों के बरक्स मध्यप्रदेश में नरेद्र मोदी कि जितनी भी चुनावी सभाएं कराईं गईं उनमें से किसी में भी शिवराज सिंह चौहान ने मंच शेयर नहीं किया। मध्यप्रदेश छ्ग और राजस्थान विधान सभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित सफलता को भाजपा और संघ परिवार ने ' नरेंद्र मोदी लहर' का परिणाम सिद्ध करने की कोशिश की है। हालाँकि संघ परिवार और भाजपा नेताओं के - दिल्ली और मिजोरम में असफलता पर - अपने अलग मापदण्ड हैं। खुद मोदी की गुजरात में सत्तात्मक हैसियत उतनी सटीक नहीं है जो उनके आतंक युक्त चाल-चलन और जर -खरीद प्रचार तंत्र के मार्फ़त देश और दुनिया को बताई जा रही है। जबकि शिवराज सिंह चौहान ने कभी भी किसी भी मंच पर यह 'मोदी लहर' के असर का 'महाझूठ' स्वीकार नहीं किया।
वास्तविकता यह है कि गुजरात और राजस्थान की तरह ही मध्यप्रदेश में संघ परिवार का अपना मजबूत ताना बाना पहले से ही है। इधर भारी भ्रष्टाचार और अपराधीकरण के वावजूद - शिवराज सिंह चौहान का भी लगातार चुनावी धुंआधार प्रचार साल भर से जारी था। उधर मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन में आपस की फूट अपने चरम पर थी इन सब कारणों से मध्य प्रदेश में न केवल शिवराज की हेट्रिक बनी बल्कि शिवराज को मोदी से ज्यादा बेहतर कामयाबी भी मिली। यह सर्वविदित है कि गुजरात विधान सभा में मोदी की ताकत याने विधायक संख्या में क्रमशः घटत दर्ज हुई है । जबकि शिवराज ने अतीत के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर अब तक के सर्वाधिक विधायक मध्यप्रदेश विधान सभा में पहुंचाए हैं।
शिवराज की इस शानदार सफलता के बाद राजनैतिक गलियारों में चर्चा थी कि भाजपा उन्हें अपने संसदीय बोर्ड में नरेद्र मोदी की तरह ही शामिल कर लेगी। लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज भी यही चाहते होंगे ! किन्तु नए साल की शुरुआत में हुई भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के समक्ष प्रस्तुत किये गए इस प्रस्ताव को 'नमो' ने वीटो कर दिया है।जो शिवराज कल तक भाजपा की धर्मनिरपेक्ष छवि और विनम्र व्यवहार के प्रतीक थे वे भाजपा और संघ के थिक टैंक की सनद के वावजूद भाजपा संसदीय बोर्ड के द्वार से बे आबरू लौटा दिए गए हैं। शिवराज अपनी ही पार्टी के सर्वोच्च नीतिनिर्धारक फोरम में यदि शामिल नहीं हो सके हैं तो यह उन लोगों की- समझ का सर्टिफिकेशन है- जो पहले से ही 'नमो' के अधिनायकवादी तौर तरीके को घातक मानते आ रहे हैं.
दरसल कांग्रेस से ,तीसरे मोर्चे से और नवोदित 'आप' से जो व्यक्ति रंच मात्र भी नहीं डरता उसका नाम शिवराज सिंह चौहान है. निसंदेह शिवराज के राज में मध्यप्रदेश की संसदीय सीटें गुजरात से ज्यादा ही होंगी ! यहाँ कांग्रेस,आप पार्टी या तीसरा मोर्चा कोई खास भूमिका अदा कर पाने की स्थति में नहीं है। मध्यप्रदेश में भाजपा और शिवराज हिंदुतव के नहीं धर्मनिरपेक्षता के झंडावरदार बन चुके हैं। पूँजीपति वर्ग में शिवराज सिंह चौहान अब मोदी से ज्यादा वांछनीय नेता सावित हो चुके हैं। यदि भाजपा और संघ परिवार ने मोदी के साथ-साथ शिवराज को भी आगामी १०१४ के लोक सभा चुनाव के मद्देनजर वैकल्पिक 'पी एम् इन वैटिंग 'रखा होता तो संघ परिवार की सत्ता अभिलाषा पूरी होने के ज्यादा चांस हो सकते थे। राज ठाकरे , प्रशांत भूषण और धर्मनिरपेक्ष कतारों में विभिन्न नेताओं और वर्गों ने जो आरोप मोदी पर लगाए हैं वे शायद शिवराज पर नहीं लग पाते ! तब एनडीए के पास एक ऐंसा नेता होता जो अटल बिहारी के जैसा नहीं तो उनके शिष्य तुल्य तो अवश्य ही होता। और तब केजरीवाल या किसी ओर की जगह भाजपा और एनडीए का प्रधानमंत्री होता।
किन्तु शिवराज को रोककर भाजपा ने अपने ही पैरों पर कुल्हड़ी मार ली है। उसने कांग्रेस की ही राह पकड़ ली है याने जो भविष्य कांग्रेस और राहुल गांधी का है वही भाजपा और नरेंद्र मोदी का होने के आसार बनते जा रहे हैं। 'आप' के उदय से तीसरे मोर्चे के ,वाम मोर्चे के और क्षेत्रीय दलों के होसले अंगड़ाई लेने लेगे हैं। चूँकि धर्मनिरपेक्षता और जनतांत्रिकता में मोदी बहुत कमजोर हैं , निरंतर हार की और अग्र्सर कांग्रेस का समर्थन गैर भाजपा को ही मिलेगा और तब नरेद्र मोदी की हालत डॉ हर्षवर्धन जैसी हो कर रह जायेगी। इस दौर में नवोदित आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के सभी गृह बलवान हैं उसका दिल्ली फार्मूला [कांग्रेस का बाहर से समर्थन ] पूरे भारत में भी सफल हो जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। तब मोदी भी आडवाणी की तरह 'पी एम् इन वैटिंग ' ही रह जायंगै। शायद तब आडवाणी जी को भी प्रशन्नता ही होगी !
श्रीराम तिवारी
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