नोबल पुरष्कार से सम्मानित ,भारत रत्न और प्रख्यात अर्थशाष्त्री प्रोफ़ेसर अमरत्य सेन ने इन दिनों राजनीति में हस्तक्षेप करते हुए , शानदार ऐतिहासिक भूमिका अदा कर देश को सही दिशा दी है . संघ परिवार द्वारा प्रोत्साहित भाजपा चुनाव समिति के प्रमुख और गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी को बचे-खुचे एनडीए की ओर से भावी प्रधान मंत्री प्रस्तावित करने पर प्रोफेसर अमर्त्य सेन को एतराज है . वे नरेन्द्र मोदी को गुजरात दंगों के लिए निर्दोष नहीं मानते . वे मोदी को धर्मनिरपेक्ष भी नहीं मानते . उन्हें मोदी का प्रजातंत्र के प्रति अनादरभाव भी पसंद नहीं . इन तीनों खामियों के अलावा एक ओर खतरनाक बुराई मोदी में है जो प्रोफ़ेसर अमर्त्य सेन या तो बताना भूल गए या जान बूझकर नजर अंदाज कर गए , वो है नरेन्द्र मोदी का अर्थशास्त्र- जिसमें केवल अम्बानियों ,बजाजों , बिड़लाओं ,मित्तलों,जिन्दलों , रेड्डीयों ,और टाटाओं को ही नहीं बल्कि देशी -विदेशी तमाम पूँजीपतियों को भरपूर संभावनाएं और संरक्षण सुनिश्चित है . लेकिन इस खूंखार अर्थशाश्त्र का चेहरा तो विश्व बेंक के आईने में , एमएनसी के आईने में विगत बीस सालों से भारत की निर्धन जनता देखती ही आ रही है और और इस भयानक अर्थशाश्त्र का दिग्दर्शन कराने वाले का नाम है डॉ . मनमोहनसिंह ! प्रोफेसर अमर्त्य सेन इसकी भी आलोचना करते तो एक ही वार से यूपीए और एनडीए धुल धूसरित नजर आते , किन्तु प्रोफेसर अमर्त्य सेन का झुकाव शायद कांग्रेस की ओर है अतएव केवल धर्मनिरपेक्षता ,प्रजातंत्र और गुजरात के दंगों तक ही उन्होंने अपनी बात सीमित रखी. ऐंसा करने से केवल नरेन्द्र मोदी को ही घेरा जा सकता था और यदि विकृत पूंजीवादी -उदारीकरण की आर्थिक नीति पर भी वे अपना रोष प्रकट करते तो मोदी और मनमोहन दोनों को झटका लगता किन्तु प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने केवल नागनाथ को जहरीला बताया है जबकि 'सांपनाथ ' जी साफ़ बच गए जबकि आधनिक भारत में चंद अमीरों की अमीरी बढाने और ६ ० फीसदी जनता को निर्धन बनाने के लिए डॉ मनमोहन सिंह की ही आर्थिक नीतियाँ जिम्मेदार हैं भले ही कल को मोदी जी या कोई अन्य भी यही नीति अपनाएँ किन्तु अभी तो जिम्मेदारी यूपीए और कांग्रेस की है और इसके लिए वे अकेले डॉ मनमोहन सिंह को ही नहीं बल्कि यूपी ऐ और बाहर से समर्थन करने वालों को भी जनता के बीच 'उघाड़' सकते थे . किन्तु प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने अकेलें मोदी की आलोचना कर न केवल अपना रुतवा नीचे गिराया बल्कि मोदी को कुछ ज्यादा ही 'वेटेज' दिला दिया . संघ परिवार , भाजपा और उनके खडाऊं उठाऊ चन्दन मित्र को तो प्रोफेसर अमर्त्य सेन का शुक्र गुजार होना चाहिए .
प्रोफ़ेसर अमर्त्य सेन ने नरेन्द्र मोदी को साम्प्रदायिकता ,व्यक्तिवाद और अलोक्तान्त्रिकता के मुद्दे पर तो भूलुंठित किया किन्तु वैश्विक आर्थिक संकट के पिछलग्गू वाले पूँजीवादपरस्त नरेन्द्र मोदी को दिगम्बर नहीं किया क्यों ? शायद प्रोफ़ेसर अमर्त्य सेन को वैकल्पिक आर्थिक नीतियों और परम्परा गत आर्थिक सुधारों के अन्तर्विरोध को देश के सामने लेने के लिए कुछ और वक्त चाहए .जबकि आम चुनाव नजदीक है और देश आर्थिक संकट में चौतरफा फंसता जा रहा है . यदि यूपीए की जगह एनडीए को सत्ता का अवसर मिलता है तो निसंदेह नरेन्द्र मोदी की ही ताजपोशी होगी और तब यह प्रश्न ही नहीं उठता कि उनकी आर्थिक नीतियाँ क्या होंगी ? वे समाजवाद से कोसों दूर हैं फिर भी गाहे -बगाहे गरीबो- मजदूरों - किसानों की चर्चा तो करते हैं किन्तु आचरण में अटल नीति एनडीए की तरह घोर पूंजीवाद परस्त हो जायंगे . अभी तक उन्होंने वह खुलासा नहीं किया कि जब वे प्रधानमंत्री होंगे तो किस तरीके से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगायेंगे ?किस तरह गाँव के गरीब को २ ६ रूपये से उपर और शहरी गरीब को ३ ६ रूपये से ऊपर की क्रय क्षमता पर ले जायेंगे ? कांग्रेस और यु पी ऐ ने तो वामपंथ के सुझावों में से कुछ पर अमल करते हुए गाँव में २ २ रूपये से २ ६ रूपये और शहर में ३ २ से ३ ६ रूपये की तरक्की करा दी है . ये बात अलहदा है कि रूपये की इतनी दुरगति हो गई है कि डालर के सापेक्ष यह तरक्की झूंठ का दस्तावेज मात्र है .
गनीमत है कि चन्दन मित्रा और संघ परिवार के पिछलग्गुओं ने प्रोफ़ेसर अमर्त्य सेन से केवल 'भारत रत्न ' ही वापिस माँगा है, उनका वश चलता तो' नोबल ' भी वापिस मांग लेते . प्रोफेसर अमर्त्य सेन साहब ने अपने तूणीर में अर्थशाश्त्र के जो तीर रख छोड़े हैं वे शायद किसी खास दौर और खास मकसद के लिए होंगे वरना वे नरेन्द्र मोदी को इतने सस्ते में नहीं निपटाते बल्कि वे चाहें तो अपनी विद्वता और विचार शक्ति से राजनैतिक धुर्वीकरण की दिशा भी बदल सकते हैं .
श्रीराम तिवारी
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