बुधवार, 8 दिसंबर 2010

..हारे को हरिनाम है .......

         अब न देश -विदेश है ,वैश्वीकरण  ही शेष है .
          नियति नटी निर्देश है ,वैचारिक अतिशेष है ..
          जाति -धरम -समाज कि  जड़ें अभी भी शेष हैं .
           महाकाल के आँगन में ,सामंती अवशेष है ..
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        नए दौर  की मांग पर तंत्र व्यवस्था नीतियाँ .
        सभ्यताएं जूझती मिटती नहीं कुरीतियाँ ..
        कहने को तो चाहत  है ,धर्म -अर्थ या काम की .
        मानवता के जीवन पथ में ,गारंटी विश्राम की ..
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        पूँजी श्रम और दाम है ,जीने का सामान है .
         क्यों सिस्टम नाकाम है ,सबकी नींद हराम है ..
           प्रजातंत्र की बलिहारी है ,हारे को हरि नाम है .
           सब द्वंदों से दुराधर्ष है ,भूंख महा संग्राम है ..
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          .    श्रीराम तिवारी ;
          
      

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