गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

वक्त तमाशे दिखा रहा है, देख रही है नई दिल्ली...

संसद ठप्प है बीस दिनों से ,बनी तमाशा नई दिल्ली .

सी बी आई जोश दिखाए ,.थर -थर काँपे नई दिल्ली ..

राजा-राडिया वैजल मोझी ,स्पेक्ट्रम के हैं वारे न्यारे .

तन मन धन से चुका रही है,.देश क़ी कीमत नई दिल्ली ..



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यह कोई आसान नहीं है भूख सताए जन- गन को .

मगर अदालत क़ी नहिं सुनती .सुन -बहरी है नई दिल्ली

सुनते रहते चीन अमेरिका ,बाजारों क़ी आहट को ,

पलक पांवड़े उन्हें विछाती लुटी पिटी सी नई दिल्ली ..

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जनता का धन लूटा खाया, धत्ता बताया जनता को,

संघर्षों का पता पूछती, अलख जगाती नई दिल्ली,

नागनाथ से पीछा छूटा, सांपनाथ ने घर पकड़ा,

वक्त तमाशे दिखा रहा है, देख रही है नई दिल्ली

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