सोमवार, 27 दिसंबर 2010

ठेके से राष्ट्र निर्माण बनाम श्रम शोषण के निहितार्थ .

वर्तमान  वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण  के बरबस दबाव  में भारत की आर्थिक नीति बेहद बेलगाम हाथों में सिमट चुकी है .आधुनिक  संचार एवं सूचना तकनालाजी में क्रांतीकारी विकास  के चलते मानवीय श्रम की गुणवत्ता तो बढ़ती जा रही है किन्तु जनसँख्या विस्फोट और कड़ी बाजारगत स्पर्धा के चलते भयानक बेरोजगारी ने वर्तमान युवा पीढी के  भविष्य का मुहँ इतिहास की अँधेरी सुरंग की ओर कर दिया है .तकनीकी  दक्षता में निष्णांत भारतीय युवाओं को आज के नव्य उदारवादी युग में अमेरिका ,यूरोप के लिए  खतरा और चीन के लिए विश्व बाजार में प्रतिद्वंदी घोषित किया जा रहा है .देशज नीतियां इस प्रकार गढ़ी जा रही हैं की उदारीकरण ,निजीकरण और समग्र भूमंडलीकरण के परिणाम स्वरूप स्थाई रोजगार समाप्त होते जा रहे हैं .संसाधनों ,उत्पादन सम्बन्धों ,उपरोक्त प्रतिगामी मानव श्रम हन्ता नीति नियंताओं ,मुनाफाखोरों और इस भ्रष्ट व्यवस्था के निर्माणकर्ताओं की तदाम्यता  के परिणाम स्वरूप शोषण का नया घ्रणित तंत्र परवान चढ़ चुका है ,जिसे ठेका प्रथा नाम दिया गया है .
                भारत के समस्त सार्वजनिक उपक्रम ,निजी क्षेत्र ,सरकारी क्षेत्र ,अर्ध सरकारी क्षेत्र  और तथा कथित -पब्लिक -प्राइवेट -पार्टनरशिप ,सभी जगह स्थाई प्रकृति  के कार्यों को -चाहे वे श्रम मूलक हों अथवा मानसिक वृत्ति मूलक हों सभी में ठेका पद्धति का बोलबाला है .इस तरह के अमानवीय शोषण के  खिलाफ वर्तमान युवा पीढी में न तो कोई दिलचस्पी है और न ही कोई संगठन या वैचारिक चेतना  का बीजान्कुरण  उभरकर सामने आ पा रहा है .
     केंद्र और राज्य सरकारें इन युवाओं के हित में क्या कर रहीं हैं ?इस अमानवीय सिलसिले को और बृहदाकार दिया जा रहा है .अधिकांश सरकारी विभागों में भी ठेकेदारी और आउट सोर्सिंग के जरिये देश के करोड़ों -मजबूर ,बेबस युवाओं  /युवतीओं को बंधुआ मजदूर जैसा बना कर देश में   उनका सामाजिक -सांस्कृतिक -साहित्यिक
सरोकार लगभग समाप्त कर दिया गया है .वे सिर्फ इस पूंजीवादी प्रजातंत्र के लिए या तो वोटर हैं या मुनाफाखोरों के उत्पादन का संसाधन .भीषण बेरोजगारी के शिकार असंख्य युवाओं के जीवन को निगलती जा रही यह पतनशील पूंजीवादी व्यवस्था सिर्फ एक लक्षीय ,एक ध्रुव सत्य के लिए समर्पित है -जिसका नाम है -मुनाफा ...
  करोड़ों युवाओं को ठेका पद्धति की भट्टी में झोंक दिया गया है और आह तक नहीं निकल रही उनके मुख से जो लोकतंत्र  के स्वनाम धन्य बौद्धिक  पहुरिये हैं .इस अमानवीय लूट  से आज करोड़ों परिवारों का भविष्य अँधेरी सुरंग की ओर बढ़ता जा रहा है
                                        वर्तमान दौर की भीषण महंगाई में ३०००-४००० रूपये की मासिक आमदनी से न्यूनाधिक  चार सदस्यों का परिवार कैसे भरण पोषण करे ?कैसे शिक्षा ,स्वास्थ्य और जीवन की दीगर आवश्यकताओं को पूरा करे ? अधिकांश  ठेका मजदूर १० से १२ घंटे रोज काम करने के उपरान्त बमुश्किल  काम  अगले दिन भी मिलेगा की नहीं इस अनिश्चयता से भयाक्रांत रहते हैं .इस देश में जहाँ कतिपय भ्रष्ट सरकारी अफसरों और दलालों के बैंक लाकर सोना उगल रहे हैं ,उनके नौनिहाल  अमेरिका और यूरोप से लेकर भारत के सम्पन्न महानगरों के महंगे होटलों में नव वर्ष पर अय्याशी  के लिए करोड़ों खर्च करेंगे ,वहाँ दूसरी ओर अँधेरी बदबूदार शीलन भरी खोली में कड़ाके की ठण्ड
में ,पूस की रात में  जब किसी  ठेका मजदूर या आउट सोर्सिंग करने वाले निम्न मध्यम  आय वर्ग के बच्चे को रोटी और कांदा भी नसीब  हो पाना सुनिश्चित नहीं है क्योंकि अब तो कांदा याने प्याज भी अमीरों की अय्याशी  में शामिल हो चुकी है .
                     ठेका और आउट सोर्सिंग मजदूर -कर्मचारियों से मिलता जुलता भविष्य उन युवाओं का भी है जो एन -केन-प्रकारेण ऊँची तालीम हासिल कर और दुर्धर्ष कम्पीटीशन से गुजरकर तथाकथित पैकेज पर विभिन्न राष्ट्रीय -बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में १० -१२  घंटे खटते हुए ,अपना भविष्य दाव पर लगाकर अपनी श्रम शक्ति बेच रहे हैं भले ही इन्हें कहने को लाखों का पैकेज होता है किन्तु इन सभी का जीवन ठेका मजदूरों से जुदा नहीं है .मालिक का खोफ ,सी ई ओ का खोफ ,नौकरी से हटा देने का डर ,यदि महिला है तो उसे निजी क्षेत्र में चारों ओर संकट ही संकट से जूझना है .कई घटिया और दोयम दर्जे के ठेकेदार या कम्पनी मालिक अपने कामगारों को समय पर वेतन भी नहीं देते .पी ऍफ़ का पैसा काटने के बाद उसे उचित फोरम में जमा न करने की प्रवृत्ति आम है .आजकल सरकारी और सार्वजानिक  उपक्रमों में अधिकांश  काम ठेके से ही करवाया जा रहा है .ठेकों /संविदाओं में क्या गुल गपाड़ा चल रहा है ये तो सरकार ,क़ानून मीडिया सभी को मालूम है किन्तु इन चंद मुठ्ठी भर लोगों की खातिर देश के करोड़ों नौजवानों का भविष्य नेस्तनाबूद किया जा रहा है उसकी किसे खबर है ?यदि जिम्मेदार प्रशासन  और सरकार से शिकायत करो तो कहा जाता है की ये तो नीतिगत मामला है .गरज हो तो काम करो वर्ना भाड़में जाओ ..
                         सीटू ने विगत ९० के दशक से ही इन आर्थिक सुधारों की आड़ में किये जा रहे ठेका करण प्रयासों के विरोध में लगातार संघर्ष चलाया और कई राष्ट्र व्यापी हड़तालें  भी की .संसद में यु पी ए प्रथम के दौरान वामपंथ ने अपनी जोरदार संघर्ष की बदौलत देश के सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण नहीं होने दिया ,भारत संचार निगम ,नेवेली लिंग नाईट ,कोल इंडिया और एयर पोर्ट अथोरिटी  जैसे कई उदहारण हैं इसके अलावा श्रमिक वर्ग के पक्ष में कुछ कानूनी संशोधन भी कराये थे किन्तु उन्हें अमल में लाये जाने से पूर्व ही वाम का और कांग्रेस का -एतिहासिक १ २ ३  एटमी करार पर झगडा हो गया तो अमेरिका और भारत के कम्पनी जगत की युति ने कतिपय भाजपा -बसपा -सपा और अन्य निर्दलियों को खरीदकर सरकार बचा ली थी .२८ जुलाई -२००८ की शाम प्रधानमंत्री श्री मनमोहनसिंह जी ने कहा था की" वाम से छुटकारा मिला अब आर्थिक सुधारों में तेजी लाइ जाएगी 'इसका क्या मतलब था सारा देश जानता था किन्तु आपसी कुकरहाव के वावजूद संसद में इन पूंजीवादी -सुधारवादी आर्थिक नीतियों पर यु पी ए और प्रमुख विपक्षी भाजपा एकमत हैं ,दोनों ही अमेरिकी नीतिओं के कट्टर समर्थक है .विडंबना यह है की देश का वर्तमान शहरी युवा तो पैकेज रुपी गुलामी के नागपास में बांध चुका है ,गाँव का अशिक्षित भूमिहीन खेतिहर मजदूर ठेका प्रथा रुपी अजगर का आहार वन चुका है .इनके विमर्श भी अब देश के आदिवासिओं  की मार्फ़त नक्सलवादियों तक सीमित हैं जो संघर्ष के हिंसात्मक तौर तरीके के कारण  वैसे भी भारतीय जन -गण के अनुकूल नहीं हैं .
               सीटू और अन्य श्रम संगठनों ने इस विकराल स्थिति को पहले ही भांप लिया था अतएव संगठित क्षेत्र की तरह ठेका मजदूरों ,आउट सोर्सिंग कामगारों ,पार्ट टाइम कामगारों ,निजी कम्पनियों के पैकेज  होल्डर्स और देश के तमाम शहरी और ग्रामीण मेहनत कशों को एकजुट संघर्ष के लिए लामबंद करने का आह्वान किया है .
  सरकार को ऐसी श्रम नीति बनाने , क़ानून बनाने के लिए की चाहे वो सरकारी क्षेत्र हो या निजी या सार्वजानिक -कहीं भी अस्थायी मजदूर नहीं होगा ,सभी को स्थाई किया जाये .सभी को सरकारी क्षेत्र की तरह पेंसन ,भत्ते और चिकित्सा इत्यदि की प्रतिपूर्ति उपलब्ध हो .यह एक दिन का या एक संगठन का काम नहीं यह लगातार संयुक संघर्ष से ही संभव  हो पायेगा .वर्तमान युवाओं को अपने भविष्य को समेकित राष्ट्रीय परिदृश्य में मूल्यांकित करना होगा और इसके लिए अपने और देश के हितों को एकमेव करना होगा .देश में यदि विकास  हुआ है तो उस पर सभी को हक़ है यदि बराबर नहीं तो कम ज्यादा ही सही किन्तु विकास  की सुगंध हर भारतीय के तन -मन को पुलकित करे यही भारतीय संविधान की पुकार है...श्रीराम तिवारी
  

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