सोमवार, 13 दिसंबर 2010

विकिलीक्स के भारतीय संस्करण की ज़रूरत नहीं...

  देश विदेश के विभिन्न सूचना माध्यमों में विकिलीक्स ने खासा स्थान बना लिया है .कुछ  भारतीय मनचलों ने तो इसके भारतीय संस्करण की आवश्यकता भी रेखांकित की है .दिसंबर २०१० का आगाज दो बातों के लिए इतिहास में दर्ज रहेगा .एक -भारत में सत्ता और पूंजीवादी विपक्ष का  लज्जास्पद कुकरहाव .
               दो -विकिलीक्स द्वारा लाखों की तादाद में तथाकथित सम्वेदनशील और गोपनीय सूचनाओं का खुलासा .
 इस साल की समाप्ति पर सारे दृश्य -श्रव्य -पाठ्य -छप्य मीडिया   को इन दो घटनाओं ने मानो हाईजेक  कर लिया है .. विगत २० दिन संसद का न चलना और भृष्टाचार पर सम्पूर्ण व्यवस्था की पोल खुलना ऐसा ही जैसे की गूलर के फल का फोड़कर भक्षण .करना .स्मरण रहे की गूलर के फल के अन्दर लाखों बारीक कीड़े रहते हैं .यह सभी सयाने जानते हैं .की उसे फोड़कर देखेंगे तो खाया न जा सकेगा .और बिना फोड़े खाना भी सिर्फ तसल्ली भर है है की गूलर सुन्दर है ...अर्थात मूंदहु आँख कतहूँ कोऊ नाहीं.....
      जिस मुद्दे पर संसद नहीं चली वो २-G  स्पेक्ट्रम घोटाला किसे मालूम नहीं था ?सत्ता पक्ष ,विपक्ष मीडिया ,वुद्धिजीवी वर्ग और सचेत न्याय पालिका में इस घटनाक्रम की अधिकांस जानकारी थी जिस पर संसद भी नहीं चलने दी गई .फिर प्रश्न यही उठता है की गूलर फोड़ने के निहतार्थ क्या  वाकई देशभक्तिपूर्ण थे ?
   इसी तरह दुनिया के सामने विकिलीक्स ने जो खुलासा किया वो किसे मालूम नहीं था ? अमेरिका और उसके सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट ,सभी सीनेटर ,डेमोक्रेट्स ,रिपब्लिकन ,अंतर रास्ट्रीय मुदा कोष ,विश्व बेंक और कार्पोरेट कम्पनियों के सी ई ओ क्या इन ख़बरों से अनभिग्य थे जो विकिलीक्स ने उद्घाटित किये हैं ?क्या पाकिस्तान की आई एस आई .मिलिटरी ,आतंकवादी वो सब नहीं जानते थे जो विकिलीक्स ने परोसा है .क्या भारत के शाशक,विपक्षी ,मीडिया वो सब नहीं जानते थे जो जुलियन असान्ज के खबरचियों ने पेंटागन या भाईट हॉउस से चुराया है ? कम से कम मुझे तो विकिलीक्स की एक भी सूचना ऐसी नहीं लगी की में कह सकूँ की हाँ ये मुझे मालूम न था .हालांकि में न तो पत्रकार हूँ और न ही किसी सूचना माध्यम का हिस्सा और विकिलीक्स की खबरों को वामपंथ द्वारा समय -समय पर दी गई चेतावनी के रूप में की अमेरिका के झांसे में मत आओ ,१ २ ३ एटमी करार धोखा है ..अमेरिका ने ईराक पर हमला इसलिए किया की वो मध्य पूर्व के तेल क्षेत्र पर एकाधिकार चाहता है ..पाकिस्तान का अमेरिका प्रेम और तालिवान ,अलकायदा ये सभी अमेरिकन साम्राज्वाद की ओउरस संताने हैं ..वगेरह ...वगेरह ..अब सारे देश को आइना दिख गया की वामपंथ के आरोप सही थे .
         जो सूचनाएँ उद्घाटित की गईं उनमें सभी देशों ,खास तौर से भारत विरोधियों की नंगी तस्वीर और अमेरिकी आकाओं का मुंबई के शहीदों के प्रति मगर मच्छ के आंसू  बे नकाब हो चुकें हैं .जो अमेरिकी नेताओं के सामने नतमस्तक होते रहे वे भले ही चक्राएँ किन्तु जिन्हें इतिहाश वोध है .दुनिया के राष्ट्रीय मुक्ति संग्रामों का इतिहास मालूम है ,ऐसे लोग विकिलीक्स या किसी अन्य सूचना विस्फोट से न तो आश्चर्य चकित होते है और न उसके देशी संस्करण के अभिलाषी हुआ करते हैं .
        जुलियन असान्ज की पिछली जिन्दगी की चूकों को आधार बनाकर अमेरिका और उसके वैश्विक बगलगीर  दोनों मोर्चे पर घ्र्नास्पद हरकतें कर रहे हैं .एक ओर तो भारत जैसे आदर्शवादी  देश को समझा रहे हैं की विकिलीक्स की बातों में मत आना ये तो सब वकवाश है दूसरी ओर विकिलीक्स के प्रमुख जुलियन असान्ज  को काल कोठरी में डाल दिया .
     इस एतिहाशिक सूचना विस्फोट के परखचे अभी तक कूटनीत की प्रयोग शालाओं  में सहेजे जा रहे हैं ..इन खुलासों और विकृत सूचनाओं की वीभत्स तस्वीर से सारा संसार तो नहीं किन्तु दक्षिण एशिया जरुर  भयभीत है .
अधिकांश ख़बरों में अमेरिकी कुटिलता ,पाकिस्तानी छिछोरापन ,चीन की चालाकी और आतंकियों के नापाक मंसूबे  इन्द्राज हैं .सुरक्षा परिषद् में स्थाई सीट के लिए भारत की दावेदारी पर श्रीमती क्लिंटन  द्वारा भारत का  उपहास ,वो भी इस्लामाबाद में -नाकाबिले बर्दास्त  है किन्तु भाजपा और कांग्रेस मौन हैं हैं .
     अमेरिकी हितों की परिभाषा बहुत व्यापकतर की गई है .जैसा की समय समय पर देश के वामपंथी बुद्धिजीवियों ने पूर्व में  भी चेताया था की साम्रज्यवादी उदारवाद के पीछे नव उपनिवेश की अवधारण ही काम कर रही है ,वो ही तो सही सवित होता जा रहा है .कश्मीर की समस्या के पीछे कौन ?गुजरात की फलां केमिकल कम्पनी पर या उडीसा -कर्नाटक की फलां कम्पनी पर यदि विदेशी आतंकवादी हमला करेंगे तो अमेरिका के हितों को कितना नुक्सान संभावित है कुछ इस तरह की सूचनाएँ अवश्य भारत की सचेत जनता तक मीडिया के मार्फ़त पहुंचनी चाहिए ताकि जनता पूँछ सके की हे भारत भाग्य विधाताओ,हे अमरीकी आकाओ,हे वैशिक  चिंतको बताओ की तुम्हारी चिंताओं में भारत की और उसके एक अरब बीस करोड़ जनता जनार्दन की चिंता कहाँ है
      भारत के इलेक्ट्रानिक मीडिया वालो ,सूचना माध्यमो के अलम्बरदारो ,  तुम सच कब बोलोगे ?
    तुम्हारी भी पोल खुल चुकी है ,कुछ ईमानदार चेनलों और पत्रकारों को छोड़कर बाकि सारा सूचना तंत्र बजबजा रहा है .पूंजीपति वही कर रहे हैं जो अमेरिका चाहता है .आपसी व्यापारिक और राजनेतिक प्रतिद्वंदिता के वावजूद आम तौर पर जिन बातों पर उनका आपस में एक है .वो इस प्रकार हैं .;
एक -वे भारत के वामपंथ  को आगे नहीं बढ़ने देंगे .
दो -वे एकजुट होकर भारत में ओद्द्योगिक और श्रम कानूनों को अपने पक्ष में और मजदूर के विरोध में कर चुके हैं .
तीन -संसदीय लोकतंत्र के मार्फ़त राज्य सत्ता पर परोक्ष नियंत्रण और मीडिया को हथियार की तरह इस्तेमाल करना .
 चार -संगठित होकर अमेरिका के स्वर में स्वर मिलाना ताकि समय पर काम आवे .
     विकिलीक्स के खुलासे का निचोड़ यही है की पूरी दुनिया के पूंजीवादी तंत्र ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के अम्ब्रेला की छाँव में ठिकाना बना रखा है .अधिकांश सत्ता के शिखर पर शर्मनाक नग्नता का बोलवाला है .आर्थिक उदारीकरण के हम्माम में सभी नंगे हैं .
   भारत में इस पतनशील सभ्यता का असर जरा ज्यादा ही हो चला है .
यहाँ हर पांचवां व्यक्ति खरीदा जा सकता है ,खरीदने बाला चाहिए ..अमेरिका और पाकिस्तान सबसे बड़े खरीद दार हो गए है .
सब कुछ खुला -खुला है मेरे देश में ....कुछ भी गोपनीय नहीं है ...जुलियन असान्ज को मालूम हो की  यहाँ सत्ता के गलियारों में सेकड़ों बिक चुके हैं ...विकिलीक्स की खबरें यहाँ सब की सब वासिं हैं .यहाँ प्रधानमंत्री या देशभक्तों को बहुत बाद में मालूम पड़ता है पहले बाबाओं .स्वामियों .रादियों .बर्खाओं .राजाओं .अम्बानियो .टाटा ओं और सता के दलालों को पहले से ही सब कुछ पता रहता है वो भी जो विकिलीक्स बता रहा है ,वो भी जो विकिलीक्स को नहीं मालूम .सी आई ये को नहीं मालूम वो भारत के राष्ट्रपति को भी नहीं मालूम होती जो भारत से बहार बैठे भारत के दुश्मनों को पहले से मालूम होती है .क्योंकि अधिकांस दुखद घटनाओं और ख़बरों के जनक भी तो वही हुआ करते हैं
       यहाँ सूचना का अधिकार ,यहाँ देश के विरोध में वोलने का अधिकार .यहाँ संसद में पैसे लेकर वो सवाल पूंछने का अधिकार जो भारत के हित में भले न हो दुश्मन देश के काम की सूचना जरुर हुआ करती है .
   यहाँ का हर १०० वाँ  व्यक्ति अमेरिका और पाकिस्तान के चरण चांपने को  आतुर है .यहाँ से सब कुछ जाना जा सकता है .यहाँ से सब कुछ देखा जा सकता है .फिर .विकिलीक्स के भारतीय संस्करण की दरकार क्यों है ....
   श्रीराम   तिवारी ........

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