१ ;- उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत !
छुरस्य धारा निशिता दुरत्या ! दुर्गम पथस्थ; कवयो बदन्ति ! [कठोपनिषद ]
२;-"ॐ असतो मा सद्गमय !तमसो मा ज्योतिर्गमय !
मृत्योर्मा अमृतं गमय ! ॐ शांतिः शांतिः शांतिः !! "[वृहदारण्यक उपनिषद ]
३ ;- ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किंचित जगत्यां जगत!
तेन त्यक्तेन भुजीनथा मा गृध: कस्यस्विदधनं !! [ईशावास्योपनिषद ]
४ :-चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊँ।
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ।।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं !
चाह नहीं देवों के सर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ !!
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक।।
* [एक फूल की चाह ] माखनलाल चतुर्वेदी
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अमृत बचन -२
१ :- धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्मात् धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोअवधीत !!
{मनुस्मृति अध्याय ८ ,श्लोक १५ ]
२ - पुरवा हुम् हुम् करे ,पछुआ गुन गुन करे,पटापेक्ष आतंकी कहानी हो।
बीते पतझड़ के दौर.झूमें आमों में बौर,कुंके कुंजन में कोयलिया कारी हो !!
वन महकते रहें,तरु प्रफुल्लित रहें, चम्पा गुलमोहर पै छाई जवानी हो!
करे धरती श्रंगार,फूले बेला कचनार, सदा खुशहाल सबकी जिंदगानी हो !!
फलें फूलें दिगंत,गाता आये बसंत ,हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो!!
राष्ट्र अक्षुण रहे ,पथ निष्कंटक बने,भारतीय लोकतंत्र की न सानी हो!!
:-श्रीराम तिवारी
३ :-यमुना कल कल करे ,गंगा निर्मल बहे ,कभी रीते न रेवा का पानी हो !
मा की तश्वीर हो,माथे कश्मीर हो,ह्रदय गोदावरी कृष्णा कावेरी हो !!
दायें कच्छ के रण ,बाएं अरुणांचल,धोये चरणों को सागर का पानी हो !
पुरवा गाती रहे,पछुआ गुन गुन करे, मानसून की सदा मेहरवानी हो!!
सावन सूखा न हो, भादों रीता न हो, खेतों खलिहानों में हरियाली हो !
उपवन खिलते रहें ,वन महकते रहें,नाचे वन वनमें मोर मीठी बानी हो !!
बीतें पतझड़ के दौर.झूमें आमों में बौर,कूंकें कुँजन में कोयलिया कारी हो !
हिन्दू वन्दनीय हो, भारत रमणीय हो , हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो !!
:-श्रीराम तिवारी
४ :-भारत हमारा कैसा सुन्दर सुहा रहा है ?
शुचि भाल पै हिमालय,चरणों में सिंधु अंचल।
उन पर विशाल सरिता ,सित हीर हार चंचल।
मणि बद्ध नील नभ का विस्तीर्ण पट अचंचल।
सारा सुदृश्य वैभव मन को लुभा रहा है।
भारत हमारा कैसा सूंदर सुहा रहा है ?
:-श्यामलाल गुप्त
५ :-
ये वो धरती है जिसने हर प्राणी को स्थान दिया।
ये वो धरती जिसने रामायण गीता का ज्ञान दिया।
आयुर्वेद योग दर्शन का पाठ पढ़ाया दुनिया को।
अर्थशास्त्र विज्ञानं गणित का मर्म सिखाया दुनिया को।
:-प्रथमेश व्यास
६ :-है प्रणाम संघ ध्वज को,जिससे हिन्दू की शान है।
भारत का सर ऊँचा रख्खो ,जब तक तन में प्राण हैं।
:-श्रीराम तिवारी