गुरुवार, 25 सितंबर 2025

किसी की आरज़ू में लाजिमी है बेबसी होना।

 तड़प दिल में जरूरी है आंखों में नमी होना,

किसी की आरज़ू में लाजिमी है बेबसी होना।
अब समझ आया कि बेखौफ सच क्यों बोलो?
नहीं चाहिए अब इसमें ज़रा सी भी कमी होना।
अंधेरी रात उस पर भी घुमड़ आयी काली घटा,
जरूरी है अब भयानक बिजलियों का कोंधना।
चिरागों को खबर कर दो ये आंधियों का दौर है,
कोई मतलब नहीं बिना आंखों रोशनी का होना ।
हिंदुओ एक हो जाओ कि अभी भी वक्त बाकी है
जरूरी है इतिहास से सबक सीखकर सजग होना।
जिनके जुल्म से अतीत में बहते रहे दरिया लहू के,
किसीभी हालमें बाजिब नहीं विश्वास उनपर करना
नहीं तुम पोंछ सकते गर किसी की आंख के आंसू,
गले मिल साथ में रो लो यही है ज़िन्दगी का होना।
लिखा था 'आहत*' होना मेरी तक़दीर में शायद,
बहुत मुश्किल हुआ है आदमी का आदमी होना।
*श्रीराम तिवारी

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