गुरुवार, 22 मई 2025

श्रीकृष्णजी के बारे में संछिप्त जानकारी:-

-: भगवान् श्री कृष्ण को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामों से जाना जाता है,मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश,छ.ग.में कृष्ण या गोपाल गोविन्द, स्याम सुंदर इत्यादि नामो से जानते हैं। राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते हैं। महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते हैं। उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते हैं। बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते हैं। दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते हैं। गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते हैं।असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।मलेशिया, वर्मा इंडोनेशिया,अमेरिका, इंग्लैंड,फ़्रांस इत्यादि देशों में कृष्ण नाम ही विख्यात है।गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।
श्रीकृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था, श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था, श्रीकृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए
श्रीकृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था, श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी । जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्रीकृष्ण का शत्रु । दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।
श्रीकृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। श्रीकृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।। श्रीकृष्ण की कुल 87 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा श्याम वर्ण था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोर मुकुट शोभा देताथा। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था। श्रीकृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे। श्रीकृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था। श्रीकृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्रीकृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध किया था।
श्रीकृष्ण ने सौराष्ट्र( गुजरात) के समुद्र के बीचों बीच द्वारिका नाम की नगरी बसाई थी। द्वारिका पूरी बहुत सम्रद्ध थी और उसका निर्माण महान शिल्पकार विश्वकर्मा ने किया था। कालांतर में आपसी कलह और यादवों के आपसी संग्राम से दुखी होकर, बचे खुचे यादवों के साथ योगेश्वर श्रीकृष्ण अपने मित्र अर्जुन के साथ द्वारकापुरी छोड़कर हस्तिनापुर जा रहे थे।रास्ते में श्रीकृष्ण के कारवां को एक जंगली जाति के शिकारियों ने लूट लिया। दैवयोग से भगवान् श्रीकृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा । जन श्रुति है कि वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।
इस दुखद अंत से पूर्व महाभारत के युद्ध के प्रारंभ में भगवान् श्रीकृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का संछिप्त ज्ञान रविवार शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन मात्र 15 मिनट में दे दिया था। कालांतर में श्री वेद व्यास और उनके विद्वान शिष्यों ने भगवद्गीता को विस्तार से काव्यात्मक रूप दिया।
श्रीकृष्ण के अनुसार गौ हत्या करने वाला असुर है और उसको जीने का कोई अधिकार नहीं। श्री कृष्ण अवतार नहीं थे बल्कि अवतारी थे जिसका अर्थ होता है "पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्"। उनका जन्म साधारण मनुष्य की तरह ही हुआ था और उनकी मृत्यु भी रक्तस्राव से हुयी थी। भगवान् ने अर्जुन को भगवद्गीता में शानदार उपदेश दिया। चाहे देश हो या परदेश अधिकांश हिन्दू भगवद्गीता का नित्य पाठ करते हैं।
"सर्वान् धर्मान परित्यजम मामेकं शरणम् व्रज,
अहम् त्वम् सर्व पापेभ्यो मोक्षष्यामी मा शुच:!"
( भगवद् गीता अध्याय 18 )
:-जय श्रीकृष्णा
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