इस प्रकार जब ब्रह्मचारी दोनों आश्रमों के बीच की संधि से गुजरता है ,जब ग्रहस्थि वानप्रस्थ में प्रवेशब करता है तब वह गृहस्थ और वानप्रस्थ की संधि से होकर गुजरता है तब ओह वानप्रस्थ तथा संन्यास की समृद्धि से गुजरता है। इस प्रकार तीनो अग्नियों को नचिकेत अग्नि कहा जाता है।
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