यह कहना ग़लत होगा कि धर्म में कोई तर्क नहीं होता और विज्ञान का आधार तर्क होता है। हाँ, यह कह सकते हैं कि विज्ञान और धर्म के तर्क का आधार एक-दूसरे से बिलकुल भिन्न होता है। धर्म का सत्य जमा हुआ (जड़) सत्य होता है और यही उसके तर्क का आधार है; विज्ञान में न तो हमेशा का कोई सत्य है और न ही हमेशा का कोई तर्क। जैसे-जैसे ज्ञान की सीमाएँ फैलती जाती हैं, सत्य बदलता जाता है और तर्क भी। शायद बात घुमावदार हो गई। हम इसे ब्रह्मांड की कहानी से समझने की कोशिश करेंगे ...।"
गौहर रज़ा साहब को मैंने पहले आवेग-भरे कवि के रूप में जाना। फिर जुझारू कार्यकर्ता के नाते। उनका असल पेशा वैज्ञानिक का रहा है — यह बाद में मालूम हुआ।
अब विज्ञान पर उनकी हिंदी में लिखी इस अनूठी किताब ने निहायत जटिल विषय पर उनके सरस गद्य से परिचय कराया है। मुझे लगता था कि विज्ञान मेरा विषय नहीं। इस किताब ने बख़ूबी जता दिया कि वह हम सबका विषय है।
गौहर भाई बताते हैं कि विज्ञान का दायरा प्रकृति से लेकर विकास, भाषा और लिपियों तक फैला हुआ है। धार्मिक आस्थाओं के विचलन और अंधविश्वासों के अनवरत चलन ने तर्क और आस्था के बीच बड़ा झोल पैदा कर दिया है, जिसे समझना हर जागरूक नागरिक का दायित्व है।
यह किताब हर घर में रहनी, पढ़ी जानी चाहिए। ऐमेजॉ़न पर 268 रु. की है। आप भी मँगवा लीजिए। इसे किताब का प्रचार नहीं, काम की जानकारी समझें।
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