शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

मन नाम की कोई (सत्य) वस्तु नही है!

 "मानसं तु किं मार्गणे कृते,नैव मानसं मार्ग आर्जबात !

वृत्तयस्त्वहं वृत्तिमाश्रिता:वृत्तयो मनो विद्धयहं मन:!!"
अर्थ:-यह मन क्या है? इस प्रकार विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि मन नाम की कोई (सत्य) वस्तु नही है! केवल वृत्तियों का प्रवाह ही मन है! सारी वृत्तियां एक अहंवृत्ति पर आश्रित होती हैं,इसलिये इस अहं वृत्ति को ही *मन* जानों!
:-महर्षि अरविंद : भाष्य ( कठोपनिषद आधारित

चित्त में सत्य की ही बोनी करनी चाहिए। क्यों कि*मन से ज्यादा उपजाऊ और कुछ नहीं है! यहां जो कुछ बोया जाए,वो बढ़ता जरूर है!फिर चाहे वो बैर हो,प्रीत हो या सुंदर सार्थक विचार हो!"
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All reactजिन कारणों से मनुष्य स्वार्थी हुआ और प्रकृति का बिनाशक बना, जिन आविष्कारों से प्राणिमात्र के अस्तित्व को खतरा हुआ,जिन वीभत्स वैज्ञानिक अनुसंधानों से धरती की जीवन्तता को खतरा बढ़ा, जिन-जिन कारणों से जल-जंगल -जमीन का क्षरण हुआ,जिन कारणों से सामाजिक विषमता और निर्धनता बढ़ी, जिन कारणों से एक ताकतवर -बदमाश व्यक्ति दूसरे कमजोर और सचरित्र मनुष्य का शोषण-उत्पीड़न करता है,जिन कारणों से इस दुनिया में महायुद्ध और तथाकथित धर्मयुध्द लड़े जाते रहे हैं,जिस वजह से भाई-भाई में भी बैरभाव उत्पन्न हो जाता है ,उसे सनातन परंपरा में नरक का द्वार याने लोभ -लालच,अज्ञान और भोगलिप्सा कहते हैं!
पाश्चात्य अकादमिक विद्वान लोग इसे विज्ञान का क्रमिक विकास कहते हैं, जबकि प्रकृति प्रेमी और सनातन धर्म मानने वाले लोग इसे विनाश कहते हैं।जय हिन्द,जय भारत, जय जगत!

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