"मानसं तु किं मार्गणे कृते,नैव मानसं मार्ग आर्जबात !
वृत्तयस्त्वहं वृत्तिमाश्रिता:वृत्तयो मनो विद्धयहं मन:!!"
अर्थ:-यह मन क्या है? इस प्रकार विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि मन नाम की कोई (सत्य) वस्तु नही है! केवल वृत्तियों का प्रवाह ही मन है! सारी वृत्तियां एक अहंवृत्ति पर आश्रित होती हैं,इसलिये इस अहं वृत्ति को ही *मन* जानों!
चित्त में सत्य की ही बोनी करनी चाहिए। क्यों कि*मन से ज्यादा उपजाऊ और कुछ नहीं है! यहां जो कुछ बोया जाए,वो बढ़ता जरूर है!फिर चाहे वो बैर हो,प्रीत हो या सुंदर सार्थक विचार हो!"
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पाश्चात्य अकादमिक विद्वान लोग इसे विज्ञान का क्रमिक विकास कहते हैं, जबकि प्रकृति प्रेमी और सनातन धर्म मानने वाले लोग इसे विनाश कहते हैं।जय हिन्द,जय भारत, जय जगत!
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