शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

हमें ये सीख मिल गई कि

  अल्लाह के नाम पर “

ट्रेन से यात्रा करते समय एक भिखारी मेरे मित्र के पास आया और बोला.... "अल्लाह के नाम पर कुछ दे दो बाबा"
मित्र ने नजर उठा कर निर्विकार भाव से उसे देखा और बोला .... "मैं अल्लाह को नहीं मानता" तो क्यों दे दूँ ?
उसने घुरकर मेरे मित्र को देखा.. तो....उसके बाद मित्र ने उसे प्रस्ताव दिया कि....
तुम "भगवान राम" के नाम पर मांगो तो मैं तुम्हें 10 रुपया दूँगा!
इस पर वो मेरे मित्र का मुँह ताकने लगा और ट्रेन के आसपास के लोग भी कौतूहल से हमें देखने लगे.
फिर, मित्र ने अपने प्रस्ताव को और अधिक आकर्षक बनाते हुए कहा कि.... अगर वो भगवान राम के नाम पर मांगेगा तो मैं उसे "50 रुपया" दूँगा.
लेकिन, वो भिखारी इसके लिए तैयार नहीं हुआ और भुनभुनाते हुए चला गया
और, मेरा मित्र भी मन ही मन "उसकी कट्टरता को भांपकर, पेपर पढ़ने लगा.
लेकिन, इस घटना से हमें ये सीख मिल गई कि....
एक भिखारी जिसके पास खाने को कुछ नहीं है और भीख मांगकर अपना जीवन-यापन करता है, वो भी
"धन के कारण, अपने धर्म से समझौता"
नहीं करता है !
तो क्या हम हिन्दू एक भिखारी से भी ज्यादा गए-बीते हैं ?
.... जो अपने निजी स्वार्थ (धन अथवा पद) की लालच में अपने धर्म से गद्दारी करने व सेक्यूलर बनने को हमेशा एक पैर पर खड़े रहते हैं !
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उन्हें देश की सुरक्षा,संप्रभुता,अखंडता की चिंता है !

 भारत की उच्च मध्यम वर्गीय युवा पीढ़ी पर्याप्त एडवांस और स्मार्ट है, उसे मेंहगाई, बेरोजगारी और रुपये के अवमूल्यन की फिक्र नहीं ! इस पीढ़ी में जो योग्य हैं, वे पद प्रतिष्ठा, धन मान अर्जित कर लेते हैं! अमेरिका, इंग्लैंड एडवांस मुल्कों और वे मल्टीनेशनल कंपनियों में छा रहे हैं !

किंतु निम्न वर्ग के जो अर्ध शिक्षित बेरोजगार हैं, अधुनातन तकनीकी में अकुशल हैं, उनमें से कुछ वे अपराध जगत ज्वाइन कर लेते हैं! कदाचित मोदीयुगीन भारत में भूखा कोई नही रहता !जगह जगह लंगर भंडारे चलते रहते हैं । तथाकथित 80 करोड़ *गरीब*मुफ्त का मलीदा जीम रहे हैं! यह सर्वहारा के शोषण और शोषित समाज वाले भारत में 'वर्ग संघर्ष'को भोंथरा कर रहे हैं ! अब LPG/PPP और वैश्विक अस्थिरता के दौर में चारों तरफ बाजारबाद फैल चुका है! आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( AI) के अवतरण से मेहनतकश जनता के हाथों का काम छिन जाने का खतरा मंडरा रहा है।
बहरहाल भारत की आधी आबादी आरक्षण के मजे ले रही है! आधी आबादी जो भाजपा के साथ है, भले ही इस कतार में नंगें भूखे हों किन्तु उनके लिये रोटी कपड़ा मकान महत्वपूर्ण नही,बल्कि उन्हें देश की सुरक्षा,संप्रभुता,अखंडता की चिंता है ! आधुनिक नव बुद्धिजीवियों को अहिंसा धर्म निरपेक्षता सदाचार पर अवलंबित हिंदुओं की फिक्र होने लगी है!
अपनी मौत से कुछ दिन पहले सुप्रसिद्घ लेखक और वामपंथी विचारक डॉ नामवरसिंह ने माननीय प्रधानमंत्री मोदीजी और गृहमंत्री श्री राजनाथसिंह से अपनी इस आत्म वेदना का इजहार किया था! कश्मीरी हिंदुओं और बांग्लादेश या पाकिस्तान में हिंदुओं के खात्मे से न केवल दक्षिणपंथी हिंदू बल्कि धर्मनिरपेक्ष वामपंथी भी बिचलित हैं!

रतन टाटा जी को हमारी श्रद्धांजलि।

 रतन टाटा जी के निधन की खबर सुनकर बहुत दुःख हुआ। वह एक महान उद्योगपति और समाज सेवी थे, जिन्होंने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनका जीवन और कार्यकाल बहुत प्रेरणादायक था ¹।

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था। उन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। वह 1991 में टाटा संस के अध्यक्ष बने और 21 वर्षों तक इस पद पर रहे। उनके नेतृत्व में टाटा समूह का राजस्व 40 गुना से अधिक बढ़ गया और लाभ 50 गुना से अधिक बढ़ गया ¹।
उन्होंने कई समाज सेवी कार्य भी किए, जैसे कि शिक्षा, चिकित्सा और ग्रामीण विकास में योगदान देना। उन्हें पद्म विभूषण और पद्म भूषण जैसे सम्मान भी मिले ¹।
रतन टाटा जी को हमारी श्रद्धांजलि। उनकी आत्मा को शांति मिले।
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अपना परिचय दो।

 कालिदास बोले :- माते!पानी पिला दीजिए, बड़ा पुण्य होगा.

स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।
कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
.
(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)
कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?
(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)
कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।
.
स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?
(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)
कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।
.
स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।
मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।
(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)
वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)
माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।
.
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।
शिक्षा :-
विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।
दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....
अन्न के कण को
"और"

भारतीय संप्रदायों की गौरवमयी कहानी!

 एक प्रश्न यह उठता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में जब इतने संप्रदाय थे। शिव, शक्ति, विष्णु, सूर्य गणेश इत्यादि सब की उपासना अलग-अलग होती थी, तो फिर आज सभी देवी देवता एक ही मंदिर में विराजमान क्यों दिखते हैं? इसका श्रेय जाता है, आदि शंकराचार्य को और उनके अद्वैतवाद को।

इसीलिए आज का हिंदुत्व अथवा सनातन धर्म उन्हीं को समर्पित है। इसमें किसी भी संप्रदाय के लिए पराये पन का कोई भाव नहीं है। आदि गुरु शंकराचार्य जी ने अद्वैत वेदांत से यात्रा आरंभ की थी। रामानुज,मध्वाचार्य,रामानंद,महर्षि अरविंद , रमण महर्षि और स्वामी विवेकानंद ने उस दर्शन को समृद्ध कर आज के हिंदुत्व याने सत्य सनातन धर्म (नव्य वेदांत) को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सभी भारतीय संप्रदायों की गौरवमयी कहानी में आज जानिए अद्वैत संप्रदाय की संपूर्ण गाथा जो कि एक पूर्ण संप्रदाय है और आज का सनातन धर्म इसी पर आधारित है।#PMNarendraModi

आस्तिक दर्शनों में सब कुछ ईश्वर पर आश्रित है !

 सत्य सिर्फ वह नही है,जो हम देखते हैं, जो हम मानते हैं! गोकि अस्तित्व के विस्तार ने सत्य का ठेका किसी एक को नही दिया है ! जिस तरह कोई पक्षी कभी इस पेड़ पर कभी उस पेड़ पर,कभी इस डाल पर, कभी उस डाल पर बैठ जाता है, इसी तरह मानव इतिहास में सत्य रूपी पक्षी कभी *भारतीय आस्तिक दर्शन रूपी वटवृक्ष* पर कभी नास्तिक चार्वाकीय कटीली झाड़ियों पर और कभी अनीश्वरवादी सांख्य,योग, श्रमण दर्शनों की भदेश किंतु मजबूत शाखाओं पर विश्राम करता रहा,विहार करता रहा!

ऐंसा भी नही है कि सत्य का ठेका सिर्फ भारतीय दर्शनों की बपौती रहा हो! दरसल मार्क्स के भौतिकवादी दर्शन को छोड़कर दुनिया के बाकी सभी दर्शन ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार करते हैं! इसीलिये जिन आस्तिक दर्शनों में प्रभू की मर्जी के बिना पत्ता नही डुलता,वे तमाम वैज्ञानिक आविष्कारों और लोकतंत्रात्मक विकास में फिसड्डी रहे! क्योंकि आस्तिक दर्शनों में सब कुछ ईश्वर पर आश्रित है !
जबकि यूनानी और परिवर्ती हीगेलियन इत्यादि पाश्चात्य दर्शनों का मनुष्य या तो ईश्वर से स्वतंत्र रहा है या मानव को समाज के अमानवीय बंधनों से छुटकारा पाना था!इसी बजह से सुकरात,प्लेटो,अरस्तु, एपिक्युरस,यूक्लिड पाइथागोरस,गेलीलियो कोपरनिक्स,नीत्से,फ्रांसीसी क्रांति के जनक रूसो और ग्रेट ब्रिटेन के मेग्नाकार्टा बनाने वालों को किसी गॉड, ईश्वर या उसके ऐजेंट्स पोप की मदद का इंतजार नही करना पड़ा!
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