तुम अकेले ही चले थे आसमां को चूमने,
नीहारिका में अंजुमन को तुमने सजा लिया !
दुर्दिन गुलामी भार ढोते हंसते रोते कट गये,
तुमने हंसी-हंसी में, हर ग़म को भुला दिया!!
शातिर लुटेरे जब वतन की आत्मा में घुस गये,
तुमने बंदीगृह को फिर से मंदिर बना दिया!
सोचते होंगे आप कि दिन फिरेंगे फिर वतन के,
फ़ांकाक़शी को इसलिये सत्याग्रह बना लिया!!
सुखी रहें भावी पीढ़ियां बने ये भारत महान,
अमर शहीदों ने इसलिये खुद को मिटा दिया।
श्रीराम तिवारी
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