शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

शिव के दरवाज़े बैठकर गिरजाघर देखने की साध!

 आज रात विश्व ईश-पुत्र ईसा मसीह का जन्मोत्सव मनाएगा। पता नहीं कितने ईसाइयों और हिंदुओं को यह मालूम है कि इस भारत में एक ऐसा हिंदू संत साक्षात् रह चुका है जिसने ईसा मसीह के प्रेम में आविष्ट होकर उनका साक्षात्कार किया था, ईसा की राह से भी ईश्वर प्राप्त किया था।

पढ़िए करुणामूर्ति जीसू पर परमहंस रामकृष्ण देव का आत्मकथ्य पद्मश्री डा. कृष्ण बिहारी मिश्र की विलक्षण पुस्तक ‘कल्पतरु की उत्सवलीला’ से।
“सुन मास्टर, भीतरी बात तुझसे कहूँ , पंचवटी में एक दिन प्रेममूर्ति जीसू से माँ ने मिलाया। उसने हुलसकर गले लगा लिया था। और सच कहता हूँ उसके प्रेम में विभोर हो गया था, जैसे बाल्यकाल में माँ अपने छोह से नहलाती थी, कुछ वैसा स्वाद। जीसू के प्रेम को समझाना असंभव है मास्टर। वह दिव्य आस्वाद उस सौन्दर्य-राशि के रोम-रोम से झर रहा था। निहाल कर दिया माँ के अनुग्रह ने।
यह जो बाइबिल की और तू जिसे ‘टेस्टामेंट’ कहता है, उसकी , अच्छा, यह ‘न्यू’ क्या है मास्टर? अच्छा, नया, जैसे केशव का ‘नव विधान’ , क्यों? तो यह सारी बातें शम्भू ने मुझे बहूत पहले सुना समझा दी थीं। न्यांगटा (वेदान्तगुरु तोतापुरी) कहता था कि भागवत चर्चा बराबर होनी चाहिए जैसे लोटा को रोज़ मांजना चाहिए। इसीलिए प्रेमी योगी जीसू के प्रसंग सुनाने के लिए तुझसे बीच बीच में आग्रह करता हूँ।
.........
शम्भु और यदुनाथ के घर प्रायः धर्म-चर्चा के लिए अपरान्ह में चला जाता था और देर रात में लौटता था। और शम्भु चरण से बाइबिल सुनकर प्रेम योगी जीसू के दिव्य जीवन पर मन-प्राण अनुरक्त हो गया था। वही दिव्य ज्योति हर क्षण मेरे भाव-लोक को बाँधे रहती। एक दिन माँ से कहा था, ‘माँ, सभी कहते हैं, मेरी घड़ी ठीक चल रही है। ईसाई, हिंदू, मुसलमान सभी कहते हैं, मेरा धर्म ठीक है, परंतु माँ, किसी की भी तो घड़ी ठीक नहीं चल रही है। तुझे ठीक-ठीक कौन समझ सकेगा, परन्तु व्याकुल होकर पुकारने पर, तुम्हारी कृपा होने पर सभी पथों से तेरे पास पहुँचा जा सकता है माँ! तूने मेरी आँख की मैल साफ़ कर दी है माँ, सही राह दिखा दी है तेरी करुणा ने। ...
फिर प्रदोष के दिन शिव मंदिर की सीढ़ियों पर भावाविष्ट दशा में बैठा अपनी माँ से प्रार्थना की थी, ‘माँ , ईसाई लोग गिरजाघरों में तुम्हें कैसे पुकारते हैं, एक बार दिखा देना। परंतु माँ, भीतर जाने पर लोग क्या कहेंगे? यदि कुछ गड़बड़ हो जाए तो? गिरजाघर में जाने से काली मंदिर के पुजारी यदि रुष्ट होकर मंदिर का दरवाज़ा तेरे बालक के लिए बंद कर दें तो फिर गिरिजाघर के दरवाज़े के पास से ही दिखा देना माँ। ‘ और माँ ताली बजाकर हँसने लगी थी, ‘ख़ूब! शिव के दरवाज़े बैठकर गिरजाघर देखने की साध! ख़ूब! यही असली बोध है, इसे ही उन्मीलित नेत्र कहते हैं रे वत्स! सर्च रे मास्टर, अपने गहरे उल्लास से माँ ने अपने भीतू बालक को आश्वस्त कर दिया था। और गिरजाघर दिखा दिया एक दिन। जैसे एक दिन मेरी प्रार्थना से पसीजकर करुणामूर्ति जीसू के दर्शन कराए थे।
सच कहता हूँ, पहली बार तो उस दिव्य पुरुष के प्रभाव से मैं काँप गया था। वह यदु का घर दिखाया था न तुझे, वहाँ जब-तब जाता था। यदु नहीं रहता था तब भी कभी-कभार जाकर कुछ समझ बैठता था। एक दिन जीसू के चित्र पर दृष्टि गड़ी रह गई। वही चित्र जो तुझे दिखाया था। माता मेरी की गोद में शिशु जीसू की मोहिनी छवि। एकाएक देखता क्या हूँ मास्टर कि वह चित्र जीवित और ज्योतिर्मय हो उठा है। और देव-जननी मैरी और देव-शिशु ईसा के अंगों की ज्योति रश्मियाँ मेरे हृदय को अभिभूत करने लगीं और मेरे मन की दशा में आलोड़न शुरू हो गया। नैसर्गिक संस्कारों का लोप होने लगा और एक अपरिचित संस्कार मुझे दबाने लगा। पहले तो अपने को संभालने की कोशिश की पर जब नई संस्कार-ज्योति के प्रभाव से हारने लगा तो घबराकर अपनी माँ को हाँक लगायी, ‘माँ, तू आज मुझे यह क्या कर रही है? कहाँ ले जा रही है माँ? और वह हँस रही थी मास्टर! हताश होते बड़े ज़ोर से डाटा माँ को, ‘तेरा बेटा डूब रहा है और तू पागल की तरह ताली बजाकर हँस रही है!’ मेरी भाषा माँ से सही नहीं गई। हँसी पर विराम देते मुझे छोह से झिड़कना शुरू किया, ‘यह क्या रे! ईसा के लिए पागल बना था, आर्त्त होकर उस दिन उसको पाने की भीख माँग रहा था! वह मिला तो झोली में जगह नहीं बनाना चाहता, आतंकित है। छि:। तेरी कौन सी सम्पदा बिला रही है जो इस तरह काँप रहा है? संस्कार के संहार से डर रहा है? उसके मरे बिना दिव्य ज्योति को ग्रहण कैसे करेगा? इतनी सी बात नहीं समझता और प्रभु-पुत्र के साक्षात्कार की तेरी व्याकुल भूख! दिव्य ज्योति का मालिक बनना चाहता है? छि:! कूड़ा के प्रति इतना मोहासक्त है। संस्कार की ज़मीन को ढहते-डूबते देख कर इस तरह से काँप रहा है। आँख की मैल साफ़ कर, ज्योति का साक्षात्कार करना चाहता था। और सुन, कूड़ा कचरा में दिव्य चेतना नहीं उतरती। देख, यह प्रेम मूर्ति जीसू अपने साथ करूणा का सागर लिए तेरे सामने खड़ा है। इसमें डूब कर जीवन को धन्य कर। ‘ और मेरे भीतर बल रचकर माँ एकाएक अदृश्य हो गई। जाने किस लोक में ग़ायब हो गई कि मैं उसका नाम तक भूल गया। उसके मंदिर के सामने माथा पटकता रहा, पर न माँ दिखाई पड़ती और न तो उसका नाम मेरे कण्ठ से फूटता। प्रेमी योगी जीसू के सिवा मुझे कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता। केवल उसी की सुधि में डूबा रहता। हां रे मास्टर, जीसू की लहर ने ऐसा आबिद्ध कर लिया था कि कमरे की सारी देव-छवियों को बाहर निकलवा दिया। देख मास्टर, मेरी माँ का कौतुक! दिखाया उसने कि पादरी लोग गिरजाघर में ईसा की मूर्ति के सामने धूप-दीप जलाकर आर्र्त स्वर में प्रार्थना कर रहे हैं। और मेरा भी राग उसी से जुड़ गया है। यह जो भाव तरंग माँ ने जगायी थी वह तीन दिनों तक मुझे बाँधे रही, मास्टर। उसके बाद पंचवटी में टहल रहा था। माँ ने अपूर्व दृश्य दिखाया। देखता क्या हूँ कि एक अपूर्व सुंदर ग़ौर वर्ण देव-मानव स्थिर दृष्टि से मुझे निहार रहा है और धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ता चला आ रहा है। चकित अभिभूत दृष्टि से उसे देखने लगा। समीप पहुँचते ही मेरे मुँह से अनायास निकल पड़ा, ‘ईसा मसीह!’ और उसने मुझे अपने आलिंगन में भरकर मुझे अपनी दिव्यता से सींच दिया। रोम-रोम पुलकित और क्षण भर में देश-काल का बोध मर गया। मैं महाभाव में प्रवेश कर सगुण विराट ब्रह्म के साथ एकीभूत हो गया। ईसा की दिव्य विभूति से तू सुपरिचित है मास्टर। माँ ने मुझे उसके सत्य का साक्षात्कार कराया था। सच मास्टर, वह दैवी प्रकाश जीव के यातना-मोचन के लिए मेरी की कोख से पृथ्वी पर उतरा था।
और मेरी माँ का अनुग्रह देख अपने बालक को उसके आलिंगन की दिव्य ज्योति में बँधने का सुयोग रच दिया था। और इसी प्रकार गिरजा दिखाने के पहले माँ ने अल्लाह की राह दिखाकर मस्जिद में दौड़ाया था। वह प्रसंग तो तुझे बताना ही भूल गया। बताऊँगा किसी दिन।...”

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें