शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

मैं हद से बढ़ गया हूँ मुझे मार दीजिए !

 काफ़िर हूँ, सिर फिरा हूँ मुझे मार दीजिए

मैं सोचने लगा हूँ, मुझे मार दीजिए
है एहतराम हज़रते-इंसान मेरा दिल
बेदीन हो गया हूँ मुझे मार दीजिए
मैं पूछने लगा हूँ सबब अपने क़त्ल का
मैं हद से बढ़ गया हूँ मुझे मार दीजिए
करता हूँ मुल्लाओं से मैं सब सवाल
गुस्ताख़ हो गया हूँ मुझे मार दीजिए
ख़ुशबू से मेरा रब्त है जुगनू से मेरा काम
कितना भटक गया हूँ मुझे मार दीजिए
बे दीन हूँ मगर हैं ज़माने में जितने धर्म
मैं सब को मानता हूँ मुझे मार दीजिए
ये ज़ुल्म है कि ज़ुल्म को कहता हूँ साफ़ ज़ुल्म
क्या ज़ुल्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिए
ज़िंदा रहा तो करता रहूँगा हमेशा प्यार
मैं साफ़ कह रहा हूँ, मुझे मार दीजिए
है अमन मेरी शरीयत तो मुहब्बत मेरा जेहाद
बाग़ी बहुत बड़ा हूँ, मुझे मार दीजिए
बारूद का नहीं मेरा मसलक है दारुद
मैं ख़ैर मनाता हूँ, मुझे मार दीजिए

फरहाद अहमद

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