गुरुवार, 14 नवंबर 2019

प्राच्य 'अध्यात्म दर्शन' मनुष्य का अंतिम ब्रह्मास्त्र है!

वास्तव में ईश्वर,GOD,अल्लाह सिर्फ वैसा ही नही होता,जैसा किसी खास बुद्धि की कल्पना में होता है ! अपितु ईश्वर कुछ न होते हुए भी सब कुछ हो सकता है!वह सिर्फ हमारे बौद्धिक चेतना पटल पर आभासी इमेज मात्र नही है!बल्कि वही ऋग्वेद का 'ऋत'है, वही जेंदावस्ता का 'अहूरमज्दा' है, वही लाओत्से का 'ताओ' है, वही डार्विन का 'Order of Universe' है! वह गुरू नानक देव के 'हुक्म रजाई चालण' का् सूत्रधार धार है! वह मानवीय भौतिक एवं आधिभौतिक चेतना,समय,त्रिगुणात्मक प्रकृति और मृत्यू से परे है! जो इसे मानते हैं, उनके लिये तो वह अवश्य है और जो नही मानते ,उनके लिये बिल्कुल नही है! वैसे धरती पर इंसान ने ही उसको मूर्तन रूप दिया है,इसलिये मनुष्य को ईश्वर का स्रजनहार भी कहा जा सकता है! वेशक ईश्वर के बिना अध्यात्म विद्या संभव नही है और अध्यात्म विद्या के बिना मनुष्य काे परम शांति कभी नही मिल सकती ! यदि कदाचित किसी खास क्रांति के द्वारा आर्थिक,सामाजिक,असमानता मिटा भी दी जाय,तब भी मन की शांति के लिये ,ह्र्दय की आनंदानुभूति के लिये प्राच्य 'अध्यात्म दर्शन' मनुष्य का अंतिम ब्रह्मास्त्र है!अत: ईश्वरीय अस्तित्व पर बहस निर्थक है!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें