वैसे तो कांग्रेस ने पचास साल तक सिर्फ पैसे वालों,जमीन्दारों और रिश्वतखोरों को ज्यादा तवज्जो दी है। किन्तु यूपीए-1 के दौर में वाम के प्रभाव से कुछ गरीब परस्त काम भी किये गए थे!यदि आज आरटीआई,मनरेगा और मिड डे मील,पीड़ित किसानोंको बोनस सब्सिडी इत्यादि थोड़ा सा जो कुछ भी मिल रहा है तो उसका कुछ श्रेय वामपंथ को भी जाता है । लेकिंन मीडिया के साम्प्रदायिक दुष्प्रचार और मजहबपरस्तों की स्वार्थ लिप्सा ने आम बहस को अर्थनीति के बजाय अंधराराष्ट्रवाद की अँधेरी सुरंग में धकेल दिया है! सत्ता में आने के बाद कांग्रेस पार्टी-भाजपा जैसी साम्प्रदायिक और दक्षिणपंथी हो जाती है !और भाजपा भी सत्ता में आने के बाद काँग्रेस जैसी नकली धर्मनिर्पेक्ष और कार्पोरैट परस्त हो जाती है! सत्ता में आने के बाद दोनों में पहचान के लिये केवल झंडे का फर्क रह जाता है! दोनों को निहित सेवार्थ से आगे कुछ भी नजर नही आता ! वामपंथ को बेहतर विकल्प बनाना जनता की प्राथमिक चेष्टा होना चाहिये!
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