शस्य श्यामल धरा पर
पुलकित द्रुमदल झूमते देवदार
दहकते सूरज की तपन से
जहां होती हो आक्रांत
कोमल नवजात कोंपले
धूल धूसरित धरतीपुत्रों का लहू
अम्रततुल्य आषाढ़ के मेघ
की नाईं रिमझिम बरसता हो जिन वादियों में
और सुनाई दे
रणभेरी जहां पर अन्याय के प्रतिकार की
आ जाना मैं वहीं मिलूंगा
नवागन्तुक वैश्विक चुनौतियां
दुश्चिंतायें, चाहतें नई-नई
नये नक्शे, नये नाम, नई सरहदें
नई तलाश-तलब-तरंगे
काल के गर्भ में धधकती युध्दाग्नि
डूब जाये-मानवता उत्तंगश्रृंग
हो जाये मानव निपट निरीह नितांत
रक्ताम्भरा विवर्ण मुख वसुन्धरा
करुणामयी आस लिये शांति के कपोतों को
निहारती हो जहां अपलक नेत्रों से
आ जाना मैं वहीं मिलूंगा।
देखो जहां भीषण नरसंहार
सुनाई दे जहां पर जलियांवाला बाग का
मर्मान्तक चीत्कार
और शहीदों के सहोदर
चूमते हों फांसी के तख्ते को
प्रत्याशा में आज़ादी की
सूर्य चंद्र ज्योति फीकी हो गई हो
जिनके तेजोमय प्रदीप्त ललाट के समक्ष
करते हों नमन वंदीजन खग वृंद
देते धरा पर मातृभूमि को अर्ध्य
और नित्य होता बेणीसंहार
निर्मम जहां पर
कारगिल-द्रास और बटालिक की उन पहाड़ियों में
आ जाना मैं वहीं मिलूंगा।
सप्तसिंधू तटबंध तोड़कर
प्रशांत से मिला दे, हिंद महासागर को
सरितायें उद्वेलित हों धरा पर
दूषित लहू और निस्तेज शिरायें
करती हों नेतृत्व राष्ट्र का, विश्व का
महाद्वीप प्रलयगत प्रतिपल
पक्षी नीड़ में
मनुज भीड़ में
हो आतप-संताप दोष दुखदारुन
नैतिकता पतित पाताल गत
मानव मति, गति, क्षतविक्षतहत
हो मत्स्यावतार, बल पौरुण विस्तार
करे जगत जहां जय-जयकार
आ जाना मैं वहीं मिलूंगा।
आल्पस से हिमालय तक
वोल्गा से गंगा तक
समरकंद से सिंधु के मुहाने तक
हड़प्पा और मोहन जोदड़ो
विजित कर ज़मींदोज़ संपूर्ण युग
कालखंड एक स्वर्णिम सभ्यता का
रावी तट पर निहारता
क्रूरकाल नरभक्षी यायावर
सभ्यताओं का सनातन शत्रू
चले आना दाहिर की चिता पर
आनंदपुर साहिब-अमृतसर
की पावन माटी में
जहां दिखे शक्ति अखण्ड तेज
आ जाना मैं वहीं मिलूंगा।
चले आना पानीपत
वाया कुरूक्षेत्र
सूंघते हुए लहलहाते खेतों की
लाल माटी को- चूम लेना
चले आना मथुरा से पाटिलपुत्र
श्रावस्ती राजगृह
वाया कन्नौज
प्रयाग-ग्वालियर कालिंजर
पहुंचना हस्तिनापुर
देखो जहां पर गड़ा हुआ
सप्तधातू का जय स्तंभ
पुराने बरगद की छांव तले
घोड़े की नंगी पीठ पर
अधलेटा दिखे धनुर्धर घायल कोई
शांति की तलाश में
आ जाना मैं वहीं मिलूंगा।
चले आना तक्षशिला से
विक्रमशिला वाया नालंदा
फेंकना एक-एक पत्थर
पुराने कुओं-बावड़ियों में
सुनाई देगी तलहटी से
खनकती चीखें इतिहास की
जौहरवती ललनाओं की
करुण क्रन्दन करती चिर उदात्त आहें
मध्ययुगीन बर्बर सामंतों द्वारा
पददलित विचार अभिव्यक्ति
पानी हवा प्रकाश-हताश दिखे
सुनाई दे बोधि-वृक्ष तले
महास्थिरबोधिसत्व तथागत की
करुणामयी पुकार
आ जाना मैं वहीं मिलूंगा।
दब जाओ पाप के बोझ तले जब
चुक जायें तुम्हारे भौतिक संसाधन
अमानवीय जीवन के
आतंक-हिंसा-छल-छद्म-स्वार्थ
डूबे आकंठ पाप पंक में
सुनना अपनी आत्मा की
चीख-युगान्तकारी कराह
लगे जब देवत्व की प्यास
प्रेम की भूख चले आना
स्वाभिमान की हवा में
देखना आज़ादी का प्रकाश
उतार फेंकना जुआ शोषण का
मिले करुणा की छांव जहां
आ जाना मैं वहीं मिलूंगा।
क्रांतिकारी अभिनन्दन
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में आप का स्वागत है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....मुबारक हो.....!!
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शुभेच्छु
प्रबल प्रताप सिंह
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लाल रंग में लाल लहू की गौरवमयी दास्तान को आपने बहुत ही अच्छे शब्दों में प्रस्तुत किया है...ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है...उम्मीद है आप की कलम निडर और निष्पक्ष हो कर मेहनतकशों की भी बात करेगी और उन मजदूरों का शोषण करने वालों की भी.....शिकागो के शहीदों का सपना साकार हो...इस दिशा में अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है...कुल मिला कर मुबारक भी और लाल सलाम भी....
जवाब देंहटाएंलाल सलाम साथी
जवाब देंहटाएंइस नए ब्लॉग के साथ नए वर्ष में हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. अच्छा लिखते हैं आप .. आपके और आपके परिवार वालों के लिए नववर्ष मंगलमय हो !!
जवाब देंहटाएंमैं वहीं मिलूंगा।
जवाब देंहटाएंमैं वहीं मिलूंगा।
मैं वहीं मिलूंगा।
मैं वहीं मिलूंगा...........मैं वहीं मिलूंगा
Bahut khoob .... aapki sabhi kavitaaye dil ko choo lene wali hai, thatha is sardi ke dino me sharir me krantikaari garmi bhi peda kar rahi hai.... carry on please, whish you very happy new year ....
जवाब देंहटाएंM K Yadav
आप सभी के स्नेह के लिए धन्यवाद... नव वर्ष को वाक़ई मंगलमय हम बना पाएं ऐसी शुभकामनाएं... साथी... श्रीराम तिवारी का अभिवादन....
जवाब देंहटाएंPranam Uncleji,
जवाब देंहटाएंApne Mujhe bahut hi khoobsurat dunia se jod diya, aur aap ki rachnaye padhkar abhibhoot ho gaya, ek mahan vyaktitva ke padosi hone ka ghamand kara diya.
With Regards...